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चुनाव लड़ने के लिए शैक्षिक योग्यता कमसेकम १२ कक्षा उतीर्ण होना ही चाहिए

सुशाशन, गुणतंत्र और संघीय नेपाल

अजयकुमार झा, जलेश्वर | वास्तव में सुशासन की अवधारणा राम राज्य के रूप में प्राचीन काल से ही विकसित है। राजा भरत के शासन प्रणाली,वैशाली राज्य के कौशल तंत्र, कौटिल्य, अरस्तु तथा प्लेटो के दर्शन शास्त्र में उल्लेखित आदर्श राज्य। इन में सुशासन की महिमा को देखा जा सकता है।
संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र अर्थात आधुनिक नेपाल के अधिकतर विद्वान् ,समाजसेवी,अधिकारी और संस्थाएँ अपने माध्यम से सुशासन की अवधारणा को व्यवहारिक ,वैधानिक और स्वाभाविक वैधता प्रदान हेतु प्रयत्नरत हैं। सुशासन में विद्यमान अनेक विशेषताएं जैसे कि:- आम जनसहभागिता, विधि का शासन, पारदर्शिता,आम सहमति, न्याय संगत कार्यप्रणाली, प्रभावशीलता, जवाबदेहीता, वैज्ञानिकता और सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय की मौलिक अवधारणा आदि। इसके साथहि गुनतान्त्रिक शाषण पद्धति इसका आधार शिला होता है। वैसा शासन प्रणाली जिसमे शासन का वागडोर ज्ञानियों के हाथ में हो और प्रशासन का वागडोर उसके हाथो में हो; जिसका एक हाथ ज्ञान का और दूसरा हाथ गुण का भण्डार है।
धार्मिक और जातीय व्यस्वस्था को आधुनिक ढाँचा और संवैधानिक परिभाषा दिया जाय। क्योंकि जबतक लोग धर्म और जातियों में बटे हैं तबतक उनमे मानवीय एकता नहीं पनप सकता। जाती और सम्प्रदाय मनुष्य को मनुष्य से तोड़ता है। दुरी बढाता है। संघर्ष पैदा करबाता है। और अंत में उन्माद, दंगा तथा सर्वनास की ओर ले जाता है। अतः नए नेपाल के निर्माण के क्रममे संभावित रोग और बिनाश के जड़ को ही निर्मूल करने का प्रयास किया जाय।
राजनीति में सक्रीय अधिकांश लोग अति महत्वाकांक्षी है या की क्षुद्र बुद्धि के षडयंत्रकारी है। मूढ़ता और उदंडता के धनि आज के तथाकथित समाजसेवी राजनीतिको से हमारे द्वारा दिया गया अधिकार को अब हमें ही छिनना होगा। याद रहे ! अधिकार सौप देना बहुत आसन है,छिनना बहुत कठिन होता है। परन्तु यदि हम ठान ले तो कुछ भी संभव है।

अतः अब स्थानीय चुनाव लड़ने के लिए सदस्यों की शैक्षिक योग्यता कमसेकम 12 कक्षा उतीर्ण होना ही चाहिए। और मुखिया के लिए स्नातक अनिवार्य हो। प्रादेशिक प्रतिनिधि के लिए स्नातकोत्तर और मंत्री के लिए सम्बंधित क्षेत्र में पि एच डी होना अनिवार्य हो। मुख्य मंत्री, प्रधान मंत्री, के लिए दो दो विषयों में (एम् ए और एक से पि एच डी) अनिवार्य हो तथा राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए (पिएच डी डिलीट)अनिवार्य किया जाय। जिससे इनका उच्च प्रमाणपत्र ही भ्रष्ट और पिछलग्गू होने से रोकेगा। और राष्ट्रीय जिम्मेदारी स्वीकार करने को वाध्य करेगा। क्षुद्रता उच्छृंखलता इनसे कोशो दूर रहेगा। सृजनशीलता और सम्यकता राष्ट्रीय संस्कार और नेपाली सभ्यता बन जाएगा।

नोट:- 1 : दो से अधिक बच्चे बालों को कोई भी सार्वजनिक पद के लिए संवैधानिक रूपसे योग्य घोषित किया जाय।)
२ :- किसी भी प्रकार के मादक पदार्थ सेवी को सार्वजनिक पदों से दूर रखा जाय।)
अब हमें मताधिकार के विषय में भी वैज्ञानिक और आधुनिक सोच बिकसित करने होंगे। शारीरिक उम्र के हिसाब से कोई मताधिकार को प्राप्त हो यह अवैज्ञानिक और पशुतावृत्ति का प्रमाण है। अतः समग्र जनता के भविष्य और राष्ट्र के सुरक्षा तथा विकास कार्य जैसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषयों के लिए सर्वश्रेष्ट व्यक्तित्व को चुनने का अधिकार अशिक्षित,मुर्ख तथा ‘ऐरू गैरु नथ्थू खैरु’ के हाथों में कैसे सौपा जा सकता है ! शासन का चुनाव एक बहुत ही कुशल, बुद्धिमत्तापूर्ण काम होना चाहिए। बयस्क के होने पर लोग बच्चे बेशक पैदा कर सकोगे, उसके लिए कोई कुशलता, कोई शिक्षा नहीं चाहिए। जैविकी (प्रकृति) (बायोलॉजी) इन्हें भलीभाँति तैयार करके भेजती है। लेकिन शासन का चुनाव करना, ऐसे लोगों को चुनना जिनके हाथों में हमारे और आप सभी के ऊपर शासन करने की ताकत होगी, और जो देश और दुनिया की नियति तय करने वाले होंगे, उसके लिए केवल शरीर से वयस्क होना निश्चय ही काफी नहीं है।वर्त्तमान का हमारा चुनाव प्रक्रिया बिलकुल मूढ़तापूर्ण है।
वास्तव में हर प्रांत के सभी विश्व विद्यालय सारे उपकुलपतियों और ख्याति प्राप्त प्राध्यापकों की परिषद आयोजित हो। जो प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी वर्ग है, जो कि विश्व विद्यालय में काम नहीं कर रहा होगा: कलाकार, कवि, लेखक, उपन्यासकार, नर्तक, अभिनेता, संगीतज्ञ उन्हें भी आमंत्रित किया जाए। और राष्ट्र के विकास हेतु राजनीति में प्रवेश करने के लिए अभिप्रेरित किया जाय। उनमें प्रतिभा के सारे आयाम है और वे सारे लोग सम्मिलित होंगे जिन्होंने कुछ योग्यता दिखाई हो, (राजनीतिकों को सर्वथा छोड़ कर)। क्योंकि ए लोग उन दुष्ट राजनीतिको के कारण समाज से दूर और शक्तिहीन होते जा रहे हैं।और चोर उचक्के इमानदार लोगों पर हावी होते जा रहे हैं। ए अपनी प्रतिष्ठा बचाते बचाते परेसान हैं। और वो भास्माशुर इन्हें और परेशान करकेे मालामाल हैं।
ऐसा आदमी, जिसने अपना पूरा जीवन शिक्षा और उसकी समस्याओं का चिंतन करने में व्यतीत किया है, शिक्षा का मूलभूत तत्व, शिक्षा के सभी संभव दर्शन और उसकी सूक्ष्म बारीकियां खोजने के लिए यथासंभव कोशिश की है, अगर वह शिक्षा मंत्री होता है तो इसकी संभावना है कि वह कुछ अच्छा करेगा। वहुजन हिताय करेगा। इसी प्रकार से अन्य बिभागो का भी व्यवस्थापन किया जा सकता है। विद्वान् बुद्धिजीवी लोग सहज ही इसका उपाय खोज लेंगे।
अब एक और विषय जो अति महत्वपुर्ण है; वो है किसी भी राष्ट्र की जनसंख्या। जो की परिवार,समाज,राष्ट्र,विश्व और समग्र मानवता को ही प्रभावित करता है। इसपर गहण चिंतन होना आवश्यक है। आज लोग वंश, परिवार,वारिश और धर्म के नामपर बच्चा पैदा करते जा रहे हैं। जब कि यूरोप, अमेरिका,अष्ट्रेलिया,रशिया और चाइना जनसंख्या पर नियंत्रण कर चूका है। कीड़े मकोड़े की तरह बच्चे पैदा करना वर्त्तमान में अराजकता और भविष्य में कुशासन और (gunतंत्र) लादने का दूरगामी षडयंत्र है। आरक्षण की व्यवस्था और सुविधा गरीबी के आधारपर शिक्षा हेतु स्कूल से विश्वविद्यालय तक और दैनिक जीवन को सुविधाजनक बनाने हेतु सरकार द्वारा प्रदत्त आर्थिक,भौतिक और व्यावसायिक क्रियाकलाप में दिया जाय। सिपमुलक शिक्षा 100% अनिवार्य किया जाय। स्वास्थ की निशुल्क व्यवस्था और भविष्य की गारन्टी हो परन्तु किसी भी व्यक्ति को सरकार के किसी भी अंग का स्थाई अधिकारी न बनाया जाय। सब पैकेज और समझौता के आधार पर चले। जो अधिकतम पाँच वर्ष के लिए होगा। दो से अधिक बच्चा कोई भी पैदा नहीं कर सकता क्योंकि सभी बच्चे राष्ट्र के भावी धरोहर होंगे।अतः उसका पूर्णतः जिम्मेवारी राष्ट्र का होगा। पालन-पोषण,शिक्षा-सिप,स्वास्थ-सुरक्षा आदि आदि।
यदि हम इन मुद्दों को नजर अंदाज करते हैं तो विश्व में जिस प्रकार से धार्मिक और प्रांतीय कट्टरता को हवा दिया जा रहा है उस आंधी में सीरिया और ईराक तथा अफगानिस्तान की तरह हमें उड़ते देर नहीं लगेगा। लोग भूखे मर रहे हैं और कोरिया अनुबम विस्फोट कर रहा है। भारत की एक चौथाई आवादी रात को भूखे पेट सोने को वाध्य है;और सरकार हजारो ख़रब डालर का सामरिक हथियार खरीद कर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहा है। जरा सोचो ( ए मेरे बुद्धिजीवियों!प्रज्ञावानो!!विद्यावानो!!! अगर मनुष्य-जाति को कुछ हो गया तो पूरे बुद्धिजीवी वर्ग को धिक्कार होगा: “तुम क्या कर रहे थे ? अगर वे बेवकूफ दुनिया को खत्म करने पर तुले हुए थे तो तुम क्या कर रहे थे ? तुम सिर्फ बड़बड़ाते रहे, शिकायत से भरे रहे; और तुमने कुछ भी नहीं किया।” लोगों को कर्तव्य का पाठ सिखाने वाले खुद का परम कर्तव्य कैसे भूल गया ! क्या मनुष्यता के सर्वनास से भी ज्यादा मूल्यवान तुम्हारा ब्यक्तिगत प्रतिष्ठा है ? क्या आम अवोध नागरिक के भावना और जीवन से बढ़कर तुम्हारा तथाकथित इज्जत है ? क्या मानवता के विनास के साथ तुम्हारा विनास नहीं हो जाएगा ? अगर हम इन मूढ़ राजनीतिको को दोषी ठहराते हैं तो हम भी उनसे कम दोषी नहीं माने जाएंगे। अतः हमारा पूरा प्रयास अर्थात शुशासन और गुनतंत्र की स्थापना कर आम जनमानस के जीवन स्तर को सुरक्षित, सुन्दर, स्वस्थ और समृद्द कर एक नए मनुष्य , नए समाज, नयां संसार और नई मनुष्यता का जन्म देने की ओर हो। जय हो !



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