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चक्रव्यूह में फसे प्रधानमंत्री

-पंकज दास

कई वर्षों तक भूमिगत जीवन बिताए एमाले अध्यक्ष झलनाथ खनाल का उपनाम था अभिमन्यू । प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त होने के बाद जिस तरह से खनाल चक्रव्यूह में घिरते नजर आ रहे हैं, उसे देखकर यह लगता है कि कहीं वाकई में वो इस चक्रव्यूह में ही घिरकर धाराशायी ना हो जाए । खनाल के लिए यह उनके जीवन की सबसे बडÞी चुनौती की घडÞी है । जिसे वह किस तरह से सामना करेंगे यह तो समय के साथ ही लोगों को मालुम चलता ही जाएगा । वैसे खनाल ने यह चक्रव्यूह खुद ही तैयार किया है । इसे तैयार करते उन्हें जरा भी इस बात की चिंता नहीं होगी कि अपने द्वारा रचे गए चक्रव्यूह में वो इस कदर घिर जाएँगे कि उसका पार पाना असम्भव सा हो जाएगा । इस चक्रव्यूह में उनके चारों ओर उनकी ही पार्टर्ीीमाले, र्समर्थन देने वाली माओवादी तो है ही विपक्षी की भूमिका में रहे नेपाली कांग्रेस व मधेशवादी दल भी उनके नाक में दम किए हुए हैं ।
करे भी क्यों नहीं – खनाल ने प्रधानमंत्री बनने के लिए जो आधार रखा वह नेपाल की राजनीति में खासकर इस संक्रमणकाल अवस्था में तो कतई स्वीकार्य नहीं हो सकता है । माओवादी के साथ बन्द कमरे में किए गए समझौते ने उन्हें प्रधानमंत्री के पद तक तो पहुँचा दिया लेकिन उनकी छवि अपनी ही पार्टर्ीीें तथा देश की जनता के समक्ष धुमिल कर दिया । जिस समय प्रधानमंत्री निर्वाचन के परिणाम का आकलन लगाया जा रहा था, उस समय एमाले अध्यक्ष के निर्देश पर पार्टर्ीीें उनके करीबी रहे भरतमोहन अधिकारी के घर पर उस गोपनीय समझौते का प्रारूप तैयार किया जा रहा था । इस काम में माओवादी के तरफ से देव गुरुंग व शक्ति बस्नेत शामिल थे । खनाल का स्पष्ट निर्देश था कि समझौता के विषय माओवादी के कहने पर ही रखा जाए । उधर भरतमोहन अधिकारी के घर समझौते के विन्दुओं को अन्तिम रूप दिया जा रहा था तो इधर माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड अपनी उम्मीदवारी वापस लेने तथा एमाले के झलनाथ खनाल को र्समर्थन करने के विषय पर पार्टर्ीीें उठे विरोध पर नेताओं को समझा रहे थे ।

अपवित्र गठबंधन

प्रधानमंत्री पद पर मतदान से पहले संसद में इस पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस संसदीय दल के नेता तथा प्रधानमंत्री पद के उम्मीद्वार रामचन्द्र पौडल ने कहा कि सत्ता में पहुँचने के लिए माओवादी व एमाले के बीच हुए इस अप्रत्याशित गठबंधन किसी ना किसी हिडेन एजेन्डे के तहत किया गया है । सदन में अपने भाषण के दौरान पौडेल ने एमाले पर लोकतांत्रिक गठबंधन को तोडÞकर सत्ता प्राप्ति के लिए माओवादी से हाथ मिलाने को अवसरवादिता कहा और भविष्य में एमाले के साथ अपने संबंधों पर पुनर्विचार करने की चेतावनी भी दी । पौडेल ने माओवादी-एमाले के बीच हुए अपवित्र गठबंधन के कारण देश में वामध्रुवीकरण के खतरे की ओर भी संकेत किया । पौडेल के अलावा सदन में बोलने वाले सद्भावना पार्टर्ीीे सह अध्यक्ष लक्ष्मणलाल कर्ण्र्ाातमलोपा के सह महामंत्री जीतेन्द्र सोनल, राजपा के सह अध्यक्ष प्रकशचन्द्र लोहनी आदि नेताओं ने भी माओवादी-एमाले के बीच हुए गठबंधन को गलत नीयत व गलत उद्देश्य से किया गया गठबंधन बताया । प्रधानमंत्री पद के एक मात्र व पहला मधेशी उम्मीद्वार विजय कुमार गच्छेदार उस दिन काफी भावुक दिखे । उन्होंने एमाले पर सत्ता लोलुपता का आरोप लगाया तो प्रचण्ड को मधेशी, जनजाति आदिवासियों का विरोधी नेता बताया ।
लेकिन इन आरोपों के बावजूद माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने खनाल के उम्मीद्वारी को राष्ट्रीय स्वाभिमान, आत्मनिर्ण्र्ााके अधिकार के तहत र्समर्थन किए जाने का तर्क दिया । प्रचण्ड ने कहा कि इस बार भी माओवादी के तरफ से में प्रधानमन्त्री नहीं बन सकता हूँ । यह सोचकर रातभर नींद नहीं आई । इसलिए ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर र्समर्थन करने का फैसला किया है जो ‘विदेशी प्रभु’ को नापसंद हो ।
संसद में भाषण खनाल ने भी दिया और प्रचण्ड ने भी लेकिन सत्ता के लिए दोनों के बीच हुए गोपनीय समझौते के बारे में दोनों में से किसी ने भी नहीं बोला । दरअसल प्रचण्ड द्वारा खनाल को र्समर्थन किए जाने की संभावना व्यक्त करते हुए निर्वाचन के दिन ही मीडिया में इस खबर को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किए जाने पर माओवादी उपाध्यक्ष डा. बाबुराम भट्टर्राई व उनके र्समर्थक नेताओं ने इसका विरोध किया था । इनको प्रचण्ड ने तर्क दिया कि मधेशवादी दलों के तरफ से विजय कुमार गच्छेदार की उम्मीदवारी विदेशी ग्रैण्ड डिजायन के तहत दिया गया है और इसके पीछे का मकसद है माओवादी को सत्ता से दूर करना । साथ ही प्रचण्ड ने यह भी कहा कि ‘विदेशी प्रभु’ के मनपसंद के विपरीत व्यक्ति को सत्ता में बिठाना भी माओवादी की जीत होगी । लेकिन प्रचण्ड के लाख समझाने पर भी डा. भट्टर्राई व उनके र्समर्थक नेता उनसे सहमत नहीं हुए । इस बैठक में हालांकि प्रचण्ड ने खनाल के साथ तैयार किए जा रहे समझौते के बारे में नहीं बताया ।
दूसरी तरफ भरतमोहन अधिकारी के निवास पर समझौते के प्रारूप को अंतिम रूप दिए जाने के बाद अधिकारी ने खनाल को तथा देव गुरुंग ने प्रचण्ड को टेलिफोन पर ही समझौते के सभी बिन्दुओं को पढÞकर सुनाया । थोडÞी ही देर में दोनों नेता अधिकारी के घर पहुँचे और वहीं पर इस ७ सूत्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किया । दोनों नेताओं के बीच इसे गोपनीय रखने पर भी औपचारिक सहमति हर्ुइ ।
प्रधानमंत्री पद पर मतदान के दिन माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने संविधान सभा भवन परिसर में ही पार्टर्ीीी स्थाई समिति की बैठक बुलाई और अपने पक्ष में निर्ण्र्ााकराने में सफल रहे । भट्टर्राई सहित ५० सदस्यों ने प्रचण्ड के निर्ण्र्ाापर अपनी असहमति जताते हुए नोट आँफ डिसेन्ट लिखा ।
माओवादी द्वारा खनाल को र्समर्थन किए जाने से सारा का सारा राजनीतिक समीकरण ही बदल गया । कांग्रेस व मधेशवादी दलों की रणनीति पर भी पानी फिर गया । एमाले के दो प्रभावशाली नेता माधव कुमार नेपाल व केपी शर्मा ओली ने खनाल को प्रधानमंत्री के पद के लिए अपनी पार्टर्ीीे तरफ से यह सोचकर कभी भी उम्मीद्वार नहीं बनाया था कि वो प्रधानमंत्री बन जाए । लेकिन उन्हें भी आर्श्चर्य लगा जब पहले चरण के मतदान में ही माओवादी ने खनाल को र्समर्थन कर अन्य सभी दलों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया ।
प्रधानमंत्री निर्वाचन के अगले ही दिन जब गोपनीय समझौते की प्रति मीडिया में लीक हर्ुइ तो नेपाली राजनीति में मानों भूचाल ही आ गया । उस समझौते में कुछ ऐसे विवादित विषयों का भी समावेश किया गया जिससे अन्य दल तो बाद में एमाले ही नहीं पचा पा रही है । इन विवादित विषयों में माओवादी लडÞाकुओं का एक अलग ही सुरक्षा फौज गठन करना, बारी-बारी से सत्ता का नेतृत्व करना और महत्वपर्ूण्ा मन्त्रालय माओवादी को देना ।
पार्टर्ीीें भी अल्पमतः समझौता अस्वीकृत
एमाले के नेता केपी ओली तथा पर्ूव प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने इस समझौते के विरोध में पार्टर्ीीें गुटबंधी शुरु कर दी और खनाल को पीछे हटने पर मजबूर होना पडÞा । प्रधानमंत्री पद पर निर्वाचित होने के बाद से ही खनाल की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है । बिना पार्टर्ीीे नेताओं से सल्लाह किए ही प्रचण्ड के साथ समझौता करने पर उन्हें काफी विरोध का सामना करना पडÞा । ऊपर से समझौते में शामिल विषय पर तो एमाले नेता ओली ने माओवादी की सत्ता कब्जा रणनीति का एक हिस्सा बताया है । माधव कुमार नेपाल ने खुलेआम अपने अध्यक्ष के द्वारा किए गए समझौते का ना सिर्फविरोध किया बल्कि इसे खारिज करने की मांग तक कर डाली । समय की नाजुक परिस्थिति को देखते हुए प्रचण्ड व खनाल ने इस समझौते पर सफाई देते हुए लिखित स्पष्टीकरण दिया । इस कदम से भी बात नहीं बनी । इसी बीच गृहमंत्रालय को लेकर माओवादी व एमाले में ठन गई है । इसी वजह से मंत्रिपरिषद का विस्तार कई दिनों तक रुका रहा । एमाले के ओली, माधव सहित पार्टर्ीीहासचिवर् इश्वर पोखरेल ने भी खनाल का विरोध किया तो अब पार्टर्ीीा बात मानने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं बचा । नेपाल के इतिहास से पहली बार हुआ कि प्रधानमंत्री पद पर शपथ लेने के चन्द घण्टे बाद ही सरकार को र्समर्थन कर रही माओवादी नेताओं ने र्समर्थन वापसी की धमकी देकर सरकार गिराने तक की चेतावनी दे डाली ।

गृहमंत्रालय पर बवाल क्यों –

र्    नई सरकार में गृहमंत्रालय को लेकर काफी बवाल मचा । माओवादी द्वारा गृहमंत्रालय पर दावा करते हुए इसे खनाल के साथ हुए समझौते का एक हिस्सा बताया । लेकिन एमाले नेता ओली-माधव समूह ने पहले ही पार्टर्ीीथाई समिति की बैठक से गृह, वित्त व शिक्षा मन्त्रालय अपने दल के पास रखने का निर्ण्र्ााकरते हुए मंत्री बनने वाले नेताओं के नाम की घोषणा भी कर दी । इनमें विष्णु पौडेल को गृह मंत्री, भरतमोहन अधिकारी को उपप्रधानमंत्री सहित वित मंत्री और गंगालाल तुलाधर को शिक्षा मंत्रालय देने का अधिकारिक निर्ण्र्ााकर दिया गया । अपनी पार्टर्ीीारा किए गए इस निर्ण्र्ाासे खनाल की स्थिति साँप छुछंुदर वाली हो गई । उनके लिए पार्टर्ीीा र्समर्थन छोडÞना भी मुश्किल और माओवादी को नाराज भी नहीं कर सकते । एमाले किसी भी कीमत पर माओवादी को गृह मंत्रालय सहित सुरक्षा से जुडÞी कोई भी मंत्रालय माओवादी को ना देने की जिद पर अडÞी है । आखिर ऐसा क्यों हुआ – दरअसल पर्ूव प्रधानमंत्री माधव कुमार नेापल के सत्ता छोडÞने के कुछ घण्टे पहले ही चारों सुरक्षा अंगों के प्रमुखों ने उनसे मुलाकात की थी । इसमें नेपाल प्रहरी प्रमुख रमेशचन्द्र ठकुरी, सशस्त्र प्रहरी प्रमुख सनत बस्नेत, गुप्तचर विभाग के प्रमुख अशोक भट्ट तथा नेपाली सेना के प्रधानसेनापति छत्रमानसिंह गुरुंग बालुवाटर में उपस्थित थे । बातचीत के दौरान नए राजनीतिक समीकरण पर भी चर्चा हर्ुइ तो नेपाल पुलिस प्रमुख ठकुरी ने साफ शब्दों में निवर्तमान प्रधानमंत्री को कहा कि माओवादी को किसी भी कीमत पर गृहमंत्रालय नहीं दिया जाना चाहिए । आईजीपी ठकुरी का तर्क था कि गृहमंत्रालय माओवादी के हिस्से में आते ही वाईसीएल तथा जनमुक्ति सेना का उपद्रव पूरे देश में शुरु हो जाएगा । उनके द्वारा हत्या, हिंसा, चन्दा आतंक, वसूली करने पर पुलिस कुछ नहीं कर सकती और ऐसे में पिछली बार की तरह यदि माओवादी कार्यकर्ताओं ने आपके पार्टर्ीीे कार्यकर्ताओं और नेताओं की पिर्टाई की तो पुलिस को मजबुरन चुप बैठना पडÞेगा । इसलिए किसी भी परिस्थिति में माओवादी को गृहमंत्रालय नहीं दिया जाए । ठकुरी के इस बात का अन्य सुरक्षा प्रमुखों ने भी र्समर्थन किया । इसलिए प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद ही हर्ुइ एमाले स्थाई समिति की पहली बैठक में ही माधव कुमार नेपाल, गृहमन्त्रालय अपने ही पार्टर्ीीे पास रखने का निर्ण्र्ााकराने में सफल रहे ।
उधर माओवादी गृहमंत्री के रूप वर्षान पुन अनन्त को आगे कर पुलिस प्रमुख की आशंका को और बल दे दिया । वाईसीएल व जनमुक्ति सेना दोनों के काफी करीबी रहे वर्षान पुन के गृहमंत्री बनाने के पीछे माओवादी की दूरगामी नीति काम कर रही थी । माओवादी शर्ीष्ा नेतृत्व का मानना है कि गृहमंत्रालय अपने पास रखने से एक तो नेपाल पुलिस, सशस्त्र प्रहरी बल तथा राष्ट्रीय अनुसंधान विभाग -अन्तरिक गुप्तचर विभाग) में अधिक से अधिक अपने कार्यकर्ताओं को समावेश करना ताकि भविष्य में वो माओवादी का साथ दे सके । दूसरा, पुलिस व खुफिया विभाग के असंतुष्ट अधिकारियों को अपनी ओर मिलाना ताकि समय आने पर बखेडÞा खडÞा किया जा सके । और सबसे महत्वपर्ूण्ा कारण कि यदि खुदा ना खास्ता जैसे तैसे चुनाव करवाना ही पडेÞ तो अपने हिसाब से जिला प्रमुखों, पुलिस अधिकारियों की तैनाती कर चुनाव परिणाम को अधिक से अधिक अपने पक्ष में किया जा सके ।
यह तो गनीमत है कि एमाले के कुछ प्रभावशाली नेताओं को माओवादी की इस खतरनाक साजिश का अंदाजा है और खनाल पर लगाम कसे हुए है । वरना प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लिए खनाल गृहमंत्रालय माओवादी को देने के लिए काफी पहले ही तैयार हो गए थे । एक तरह से देखा जाए तो गृहमंत्रालय को लेकर ही माओवादी व एमाले के बीच सरकार में सहभागिता को लेकर विवाद बढÞ गया है । माओवादी नेताओं ने गृहमंत्रालय को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाते हुए बिना गृहमंत्रालय लिए सरकार में सहभागी ना होने का दबाव प्रचण्ड पर डाल रहे हैं । प्रधानमन्त्री खनाल भी माओवादी अध्यक्ष से कई बार मिन्नतें मांग चुके हैं । खनाल ने कहा कि कुछ दिन तक गृहमंत्रालय अपने पास ही रखकर मंत्रिमंडल का विस्तार कर लिया जाए ।
प्रचण्ड-खनाल समझौता मुश्किल में
एमाले के पोलिट ब्युरो और केन्द्रिय कमिटी की बैठक ने प्रचण्ड और झलनाथ खनाल के बीच हुए ७ सूत्रीय समझौते को पर्ूण्ा रूप में ना स्वीकारते हुए उसके परिमार्जित रूप को ही स्वीकारने का औपचारिक फैसला किया है । एमाले ने कहा है कि जनता का लोकतंत्र के बदले संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र लिखा जाए और माओवादी लडÞाकुओं को मिलाकर बनाए जाने वाले अलग सुरक्षा बल गठन सम्बंधी विषय उस समझौते से हटा दिया जाए । एमाले द्वारा दिए गए इस प्रस्ताव पर माओवादी ने आपत्ति जताई है । कल तक समझौते के पक्ष में बोलने वाले और हर हालत में सरकार को र्समर्थन जारी रखने के अपने बयान से माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने भी सरकार विघटन की चेतावनी दे दी है । प्रचण्ड का कहना है कि अब समझौते में किसी भी तरह का परिमार्जन नहीं किया जा सकता है । उन्होंने कहा कि समझौते को कार्यान्वयन नहीं होने देने के लिए एमाले के ही कुछ नेता षड्यन्त्र कर रहे हैं । यदि यह सरकार गिरती है तो उसके लिए एमाले खुद ही जिम्मेवार होगी ।

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