नेपाल में महिला सशक्तिकरण : मोहन चौधरी
हिमालिनी अंक सितम्बर २०१८ | नेपाल एक पितृ प्रधान देश है,जहाँ समाज में पुरुष की प्रधानता ही है । पुरुष घर का मालिक है वहीं महिला उसकी सहयोगी के रुप में समाज में होती है । घर के बाहर की जिम्मेदारी पुरुष की होती है वहीं घर के भीतर की सारी जिम्मेदारी खाना बनाने से लेकर, बच्चे का पालन पोषण, सफाई ये सभी महिलाओं के उपर निर्भर रहता है । हमारे समाज में बेटे और बेटी के जन्म से ही इनके पालन पोषण में अन्तर दिखाई देता है । बेटे की पढाई जहाँ बोर्डिंग में होती है वहीं बेटी की पढाई सामुदायिक विद्यालय में । बेटे को पिता की सम्पत्ति में अधिकार है परन्तु बेटी को नहीं । बेटे की बीमारी को लेकरजितनी चिन्ता होती है उतनी बेटी की बीमारी को लेकर नहीं होती । यह समाज बदलाव के बाद भी आज भी बहुत नही बदला है ।
समाज में सामाजिक विकृति जैसे दहेजÞ प्रथा, बालबिबाह,बेमेल बिबाह,बलात्कार,यौन शोषण की वजह से महिलाओं की स्थिति आज भी गिरती जा रही है । गर्भ में अगर बेटी है तो भ्रूण हत्या जैसा गुनाह आज भी धड़ल्ले से हो रहा है । दहेज के कारण बहुएँ जलाई जा रही है तमाम प्रकार के दुख दिए जाते है । मधेश के दलितसमुदाय में बालविवाह अभी भी जारी है । बालविवाह के कारण बेटियों की शारीरिक अवस्था कमजोर हो जाती है क्योंकि कम उम्र में ही वो माँ बनती है और कभी कभी अकाल मृत्यु का शिकार होती है । बेमेल विवाह का एक दुखद पहलू यह भी है कि पति की उम्र ज्यादा होती है और जब पत्नी जवान होती है तो पति अशक्त हो जाता है और वहाँ यौन असंतुष्टि घर के कलह का कारण बन जाता है । पति की मृत्यु पहले हो जाती है और विधवा होकर जीना महिलाओं के लिए शाप की तरह होता है । समाज में बेटियों को छेड़ा जाना बलात्कार होना आम बात है । समाचारपत्र में आए दिन ऐसी ३६नाएँ जगह पाती हैं । लोग देखते हैं और भूल जाते हैं । सच तो यह है कि महिलाओं की अवस्था दिन प्रतिदिन गिरती जा रही है । महिला खुद को निरीह मानती है । वैसे तो नेपाल सरकार ने महिलाओं की सशक्तिकरण के लिए संविधान में कÞानूनी ब्यवस्था किया है । २०४७ साल के संबिधान में यह व्यवस्था की गई थी कि किसी के भी साथ भेदभाव नहीं किया जाय । २०७२ साल के संविधान में महिलाओं को आगे बढाने के लिए राजनीति के क्षेत्र में आरक्षण की व्यवस्था की गई है । किसी भी गाँवपालिका वा नगरपालिका के प्रत्येक वार्ड में एक महिला तथा एक दलित महिला तथा मेयर वा उपमेयर में महिला सीट सुरक्षित करने का प्रावधान संविधान में है ।
प्रदेश सभा तथा संघीय सभा में महिलाओं को ३३ प्रतिशत सीट आरक्षित है ।प्रत्यक्ष निर्वाचन में घघप्रतिशत महिला तथा समानुपातिक से संघीय तथा प्रदेश सभा में ३३ प्रतिशत महिला प्रतिनिधित्व कराने की व्यवस्था संविधान में किया गया है । संविधान की धारा ८६ अनुसार संघीय संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले प्रत्येक दल से निर्वाचित कुल सदस्य संख्या में कम से कम एक तिहाई सदस्य महिला होना आवश्यक है । इसी तरह निर्वाचित उपधारा १.८ और धारा ८६ के उपधारा २ के खंड (क) बमोजिम निर्वाचित सदस्य मध्य कोई राजनीतिक दल के एक तिहाई सदस्य महिला निर्वाचित नहीं होने की स्थिति में राजनीतिक दल उपधारा १ के खंड ख बमोजिम सदस्य निर्वाचित कर अपने दल से संघीय संसद में निर्वाचित होने वाले कुल सदस्य में एक तिहाई महिला सदस्य होना जरुरी है । इसी तरह संविधान के धारा १७६ को उपधारा ९ बमोजिम प्रदेश सभा में प्रतिनिधित्व करनेवाले प्रत्येक राजनीतिक दल से निर्वाचित कुल सदस्य संख्या में से कम से कम एक तिहाई सदस्य महिला होना चाहिए । इसी तरह निर्वाचित हुए उपधारा १ के खंड (क) बमोजिम निर्वाचित सदस्य मध्ये किसी राजनीतिक दल का एक तिहाई सदस्य महिला निर्वाचित नहीं होने की स्थिति में राजनीतिक दल उसी उपधारा के खंड खÞ बमोजिम सदस्य निर्वाचित द्वारा अपने दल से प्रदेश सभा में निर्वाचित होने वाले कुल सदस्य में से कम से कम एक तिहाई महिला सदस्य निर्वाचित होना आवश्यक है । इसी तरह संबिधान के धारा २१७ को उपधारा १ बमोजिम प्रत्येक गाँवपालिका में उपाध्यक्ष के संयोजकत्व में और प्रत्येक नगरपालिका में उप प्रमुख के संयोजकत्व में तीन सदस्य होने पर एक न्यायिक समिति की व्यवस्था की गई है । इस न्यायिक समिति को न्यायिक निर्णय करने का अधिकार संबिधान ने दिया हुआ है । गाँव पालिका के उपाध्यक्ष और नगरपालिका के उपप्रमुख को कानूनी राय सलाह देने के लिए कÞानूनी सलाहकार रखने की भी व्यवस्था संविधान में है । इस तरह महिलाओं के लिए राजनीतिक क्षेत्र में स्थापित करने के लिए २०७२ साल के संबिधान ने बड़ा अवसर प्रदान किया है । किन्तु अशिक्षा के कारण महिलाएँ इस अवसर का फायदा नहीं उठा पा रही हैं । इन्हें शिक्षित करने का और प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ।
वर्तमान परिवेश में महिलाओं की भूमिका में परिवर्तन हुआ है । महिलाएँ नेतृत्व कर रही हैं और महत्तवपूर्ण स्थान पर आसीन भी होरही हैं । २०७२ साल में पहली महिला के रूप में विद्या देवी भण्डारी राष्ट्रपति पद में निर्वाचित हुईं उसी तरह सर्वोच्च अदालत के प्रधान न्यायाधीश के पद में सुशीला कार्की स्थापित हुईं, सी एन एन की बार्षिक बिजेता का पुरस्कार प्राप्त करने में अनुराधा कोइराला तथा पुष्पा बस्नेत सक्षम हो पाईं । माउन्ट एवेरेस्ट में चढ़ने वाली पहली महिला पासांग लामु शेर्पा अपना नाम स्थापित कर चुकी है । इसी तरह एथलीट्स के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार बिजेता मीरा राणा तथा फुफुलामु खत्री ने खुद को स्थापित किया ।
नेपाल में सीमित संख्या में महिला उच्च पद प्राप्त कर पाईं हैं सामान्य महिला आज भी अपने स्तर से ऊपर नहीं उठ पाई है । शहरी क्षेत्र की महिलाओं में चेतना का विकास हुआ है किन्तु ग्रामीण क्षेत्र की महिला में आज भी चेतना का अभाव है । नेपाल में साक्षरता के हकÞ में २०४८ साल में पुरुष घढ.टप्रतिशत थे जबकि महिला ५४.५ प्रतिशत था । २०५८ साल में पुरुष साक्षरता ६५.१ प्रतिशत थी और महिला का ४२.८ प्रतिशत । २०६८ साल में पुरुष ७५.१ प्रतिशत और महिला ५७.४ प्रतिशत थी । परन्तु साक्षरता का प्रतिशत शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में बहुत अन्तर दिखाई देता है । २०४८ साल में शहरी क्षेत्र में ६६.९ प्रतिशत था जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ३६.८ प्रतिशत । २०५८ साल में शहरी क्षेत्र में ७१.९ प्रतिशत था जबकि ग्रामीण क्षेत्र में ५१ प्रतिशत । २०६८ साल में शहरी क्षेत्र में ८२.२ प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र में ६२.५ प्रतिशत । इसतरह दस दस साल में महिला साक्षरता को प्रतिशत बढ़ता दिखाई दे रहा है । २०४८ साल में पुरुष की औसत आयु ६०.१ बर्ष दिखाई दे रही है जबकि महिला का ६०.७ बर्ष । २०५८ साल में पुरुष की औसत आयु ६२.६ बर्ष जबकि महिला का ६४.५ बर्ष है । इसी तरह २०६८ में पुरुष की औसत आयु ६५.५ बर्ष जबकि महिला का ६७.९ बर्ष । इस तरह प्रत्येक दस दस बर्ष औसत आयु भी पुरुष तथा महिला में ज्यादा दिखाई देता है । औसत आयु महिला की अधिक दिखाई देती है पुरुषों की अपेक्षा ।
किसी ने कहा है कि नेपाल में पुरुष प्रधान समाज ही महिला के सशक्तिकरण में बाधक है ।
सशक्तिकरण का अर्थ क्या है ?
सामाजिक,आर्थिक,राजनितिक तथा अन्य क्षेत्र में स्वतंत्र रूप में दैनिक क्रिया कलाप करने तथा स्वतंत्र रूप में निर्णय करने की शक्ति तथा सामथ्र्य प्राप्त करना सशक्तिकरण है । महिलाओं को सशक्त बनाने का तरीका क्या हो सकता है संवेदनशील होकर विचार करना आवश्यक है । आम आदमी की मानसिकता में परिवर्तन आवश्यक है । बेटे बेटी में कोइृ भेद न कर उनका पालन पोषण करना चाहिए । सरकार को भी इस ओर कारगर कदम उठाना चाहिए ।
महिलाओं की शिक्षा और उसके बाद उसे लघु उद्योग आदि का प्रशिक्षण देना आवश्यक है । एक महिला शिक्षित होती है तो पूरा परिवार शिक्षित होता है । वह अपने बच्चों का लालन पालन अच्छे से कर सकती है । महिला की शिक्षा गरीबी हटाने में भी सहायक होती है । सरकार को महिला हिंसा और बलात्कारी के लिए कठोर कानून बनाना चाहिए । देश, समाज और परिवार सभी का विकास महिला की शिक्षा और अवस्था से जुडी हुई है । इसलिए समाज को बदलने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना और शिक्षित करना आवश्यक है ।
(लेखक चौधरी पूर्व मन्त्री एवं प्रदेश नं. २ के नीति आयोग सदस्य हैं ।)
