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दूरियां ये दिलों की मिटाती हुई ! कुछ हंसाती हुई कुछ रुलाती हुई : सविता वर्मा “ग़ज़ल

चिट्ठियां चिठ्ठियां प्यारी सी चिट्ठियां !
प्रीत के रंग में ये रंगी चिट्ठियां….
रखती दिल छुपा के ये राज़ कई !
प्रेम की चाशनी में पगी चिट्ठियां ॥

पोस्ट कार्ड बनकर जब आती हैं ये…
भेद सबको, सभी का बताती हैं ये !
बँद लिफाफे में आये मुस्कुराती हुई !
तीन अक्षरों से ये सजी चिट्ठियां ॥

लाती मायके की सुगंध ये ससुराल में !
याद दिलाती ये बाबा की हर हाल में
याद कर करके रोती है अपनी बिटिया को जो
अंश्रुओ से मैया के ये भीगी सी चिट्ठियां ॥

झूले सावन के रंग कभी फाग के !
बुलावा भाई की शादी का लाती है जब !
दिल में बस ये हमारे जाती है तब !
झूमती झूमती चूमती हूं इन्हें !
सुख दुख की होती है ये हवा सी चिट्ठियां ॥

दूरियां ये दिलों की मिटाती हुई !
कुछ हंसाती हुई कुछ रुलाती हुई !
आँखें बन जाती हैं बहती धार सी
ग़म बिछड़ने का किसी के जब सुनाती चिट्ठियां ॥

– सविता वर्मा “ग़ज़ल

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