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संघर्ष से निखरता नेपाल – हैप्पीनेस इन्डेक्स में भारत से बहुत आगे नेपाल : राजेंद्र मोहन शर्मा



हिमालिनी,अंक सितम्बर,२०१८ | पिछले दिनों नेपाल यात्रा पर जाने का अवसर मिला यात्रा का उद्देश्य भारत नेपाल साहित्य महोत्सव में शिरकत करना था लेकिन साथ ही नेपाल को अपनी आंखों से देखने और समझने का अवसर भी था । लगभग दो हजार किलोमीटर की नेपाल की यात्रा ने कई चीजें सीखने और समझने के लिए दी । नेपाल ने पिछले एक दशक में जो संघर्ष किया है उस संघर्ष ने नेपाल को खूब निखारा है । लोकतंत्र के प्रति आस्था सबसे बड़ी पूंजी बनकर उभरी है समाज में पारस्परिक सौहार्द संघर्ष के कारण मजबूत हुआ है यह सही है नेपाल ने इस संघर्ष में गवाया भी बहुत है लेकिन सामाजिक तौर पर और भौगोलिक रूप से तप कर निखरा है नेपाल । अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता के साथ साथ कर्तव्यों के प्रति सहज बोध ने मुझे बहुत प्रभावित किया नेपाल में कुछ चीजें सहज ही पर्यटकों को लुभाती हैं यथा भिखारियों की न के बराबर उपस्थिति सड़कों पर आवारा पशुओं की शून्यता और अपराध का ग्राफ काफी कम होना ।

नेपाल में इस संघर्ष में यह सीखा है कि अपने पड़ोसियों के साथ कैसे सौदेबाजी की जा सकती है लंबे समय तक भारत पर निर्भर रहा नेपाल अब यह बखूबी समझ गया है के चीन के साथ दोस्ताना व्यवहार उसके लिए कब कैसे और कितना उपयोगी होगा । यह सही है कि नेपाल में मार्क्सवादी बहुमत वाली सरकार है लेकिन इस सरकार ने नेपाल को और उसकी संपदा को न तो किसी के हाथों गिरवी रखा है और ना ही किसी को बेचा है । चीन के साथ नेपाल के संबंधों में आई उष्मा का प्रभाव चीनी पर्यटकों के बढ़ते प्रभाव रूप में देखा जा सकता है चीन के नागरिक अब केवल पर्यटन के लिए नहीं बल्कि व्यापार और शिक्षा के लिए भी नेपाल की ओर रुख करने लगे हैं । निश्चय ही इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा सहारा मिला है । ऐसे ही संबंध किसी समय भारत के साथ दे रहे हैं लेकिन अब नेपाल में भारत को लेकर एक अजीब तरह की बेचैनी देखी जा सकती है । उत्तर प्रदेश और बिहार से लगे नेपाल के तराई वाले इलाकों में भारतीयों की बहुलता से नेपाल के नागरिक भय खाने लगे हैं । यद्यपि यह सच है कि नेपाल में रह रहे अधिकांश भारतीय कई पीढि़यों पहले यहां आकर बस गए हैं और इन्होंने अपनी बुद्धि के कलात्मक प्रयोग से तथा मेहनत से नेपाल निर्माण में खूब योगदान दिया है । तराई के लगभग तीन चौथाई भाग में बड़े औद्योगिक व्यापारिक प्रतिष्ठान और कारखाने इन्हीं लोगों के हाथ में हैं । इन लोगों ने नेपाल की भाषा संस्कृति और यहां की तहजीब को न केवल आत्मसात कर लिया है बल्कि नेपाल की राजनीति में भी अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है ।

नेपाल की लगभग सारी आबादी हिंदी को ठीक ठाक ढंग से समझती है । नेपाल में पिछले २० वर्षों से एक लंबा आंदोलन इस बात के लिए चला है कि हिंदी को नेपाल में दूसरी भाषा के रूप में संवैधानिक तौर पर दर्जा मिलना चाहिए । एक समय ऐसा आया था जब सरकार ने सैद्धांतिक रूप से इसे स्वीकृति प्रदान कर दी थी लेकिन तेजी से बदलते राजनीतिक हालात के कारण हिंदी को अभी तक यह स्थान नहीं मिल सका है । इसका सीधा सीधा प्रभाव राजनीतिक तौर पर भारत नेपाल के रिश्तो पर भी पड़ा है भारतीय समुदाय जो नेपाल में वर्चस्व रखता है चाहता है कि हिंदी को जल्दी से जल्दी स्वीकृति मिले लेकिन नेपाल की राजनीति जानकार कहते हैं कि यदि हिंदी को अवसर दिया गया नेपाल के लिए दूसरी कई समस्याएं खड़ी हो जाएंगी । इसलिए जानबूझकर इस निर्णय को अनिर्णित छोड़ दिया गया है । नेपाल के लोगों ने २०० वर्षों में हिंदी के साथ जो कार्य व्यवहार और संस्कृति का सूत्रपात स्थापित किया था वहीं कमाल की बात यह है कि महज २० वर्षों में नेपाल के लोगों ने चाइनीस लैंग्वेज को सीखने में अपनी रुचि बढ़ा दी है । कारण स्पष्ट है चीन के पर्यटक नेपाल को आर्थिक संबल तो दे ही रहे हैं साथ ही नेपाली नागरिकों को अपने देश में बिना वीजा और पासपोर्ट के घूमने की अनुमति देकर उन्हें लुभा भी रहे हैं । मेरे साथ घूम रहे टैक्सी ड्राइवर तुला ने बताया कि वह अपनी पत्नी के साथ बस का सफर करते हुए नेपाल में १५ दिन का भ्रमण करके आया है । यह बताते हुए उसका चेहरा प्रसन्नता से भरा हुआ था और वह चीन के साथ बढ़ते नेपाल के रिश्ते पर प्रसन्नता व्यक्त कर रहा था ।

यद्यपि चीन के साथ नेपाल के रिश्तो में तेजी से गर्मी आ रही है लेकिन अब भी भारत से व्यापारिक और व्यावसायिक रिश्तो में कमी नहीं आई है आज भी ७०५ से अधिक आपूर्ति भारत से ही हो रही है । लेकिन नेपाल के तराई के इलाकों में हुए आंदोलन और लम्बे लम्बे बंद ने नेपाल को बुरी तरह डरा दिया था । फलस्वरूप नेपाल ने तेजी से वैकल्पिक मार्ग चुना है । नेपाल को नजदीक से देखने पर कुछ चीजें भारत की प्रतिलिपि कैसी लगी जैसे अतिक्रमण, बेतरतीब बसावट, प्रकृति का आवश्यकता से अधिक दोहन और बढ़ती आबादी । लेकिन इसके ठीक विपरीत कुछ चीजें ऐसी हैं जो नेपाल के लोगों की खुशहाली को पुख्ता ढंग से बयान करती हैं । एक नेपाली साहित्यकार ने बताया कि नेपाल की इतनी बड़ी आबादी में महज दस हजार लोग जेल में हैं । जिनमें गम्भीर अपराधों के मामलों में महज चार हजार लोग जेल में बंद हैं । इस तथ्य की पुष्टि इस बात से भी होती है की वहां चोरी, डकैती और अपराध जैसी घटनाएं बहुत कम देखने सुनने को मिली । सड़कों पर शराब पिए हुए ड्राइवर नहीं मिलते हैं पुलिस ने यदि किसी ऐसे व्यक्ति को पकड़ लिया तो सीधे दो लाख रुपये जुर्माना और छः माह की जेल की सजा है । इसी प्रकार हमें सभा में सड़क पर वाहन रोककर वसूली करते पुलिसकर्मी कहीं दिखाई नहीं दिए पुलिस महज वाहनों के सुगम आवागमन पर ध्यान केंद्रित करते हुए मिली ।
नेपाल भारत के रिश्तो के बीच भगवान पशुपतिनाथ एक अभेद्य सूत्र हैं । सावन के दूसरे सोमवार को जब हम पशुपतिनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचे संध्या के समय आरती की बेला में एक अद्भुत नजारा देखने को मिला । भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर के ठीक पीछे ताप्ती नदी के घाटों पर इह लोक की यात्रा पूरी करने के बाद लोगों को चिता को समर्पित किया जा रहा था । पीछे चिता की अग्नि और आगे आरती के दीप शिखर परस्पर ऐसे एकाकार हो रहे थे मानो लोक परलोक का भेद मिट गया हो । राग वैराग्य और निवृत्ति के सारे स्वरूप एक साथ सिमट कर महादेव के चरणों में विसर्जित हो रहे थे । लेकिन यह सब कार्य निर्विघ्न और शांतिपूर्वक हो रहा था हजारों दर्शनार्थी कतारबद्ध थे जो क्रमशः शिव दर्शन से आनंदित हो रहे थे और चिताओं की ऊंची उठती लपटों के बीच वहीं से जीवन के सूत्र भी तलाश रहे थे ।
नेपाल के व्यापारी हो या उत्पादक निर्माता हों या वितरक किसी को भी हमने आपाधापी करते या फिर पर्यटकों के पीछे लपकों की तरह दौड़ते नहीं देखा । ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों, मजदूरों और आम लोगों से खूब बातें हुई । सबसे मजेदार बात यह थी कि वे अपने हाल में मस्त हैं । यहां उन्होंने परिस्थितियों से समझौता नहीं किया बल्कि संतोष के आनंद में पूर्ण निमग्न थे । विवशता के वशीभूत ओढी गई लाचारी के भावों से परे वे प्रकृति और परिश्रम के सामन्जस्य से उपजे आनंद मे गोते लगते मिले । पहाड़ों में किसानों को रासायनिक खाद से पूर्ण परहेज करते देख कर संतोष का अपूर्व अनुभव हुआ ।
भारत नेपाल साहित्य महोत्सव नेपाल के वीरगंज में आयोजित हुआ । इस समारोह में वीरगंज स्थित भारतीय वाणिज्य उच्चायोग सहित ग्रीन केयर सोसाइटी भारत नेपाल साहित्य मंच और नेपाल की हिमालिनी पत्रिका की सहभागिता रही भारत की ओर से इस महोत्सव में १०० से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया । ये साहित्यकार भारत के लगभग सभी प्रांतों से यहां पहुंचे थे । आयोजन का बीड़ा मेरठ साहित्य महोत्सव के आयोजक और भारत नेपाल साहित्य महोत्सव के संयोजक श्री विजय पंडित एवं नेपाल की ओर से श्री गणेश लाठ एवं अशोक वैद्य ने उठाया था । मारीशस में आयोजित हुए विश्व हिंदी साहित्य सम्मेलन से इस महोत्सव की तुलना की जाए निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि यह आयोजन दोनों देशों के उद्योगपतियों से लेकर साधारण नागरिकों के सहभागिता का जीवंत उदाहरण था । नेपाल के २०० से अधिक साहित्यकारों ने इस समारोह में भाग लिया । खास बात यह थी भारत और नेपाल के साहित्यकारों के बीच हिंदी और नेपाली के पारस्परिक आदान प्रदान सहयोग और समाज पर गंभीर बातचीत हुई और इस पर सहमति बनी । नेपाल के युवा साहित्यकारों में महिलाओं का विशेष स्थान दिखाई दिया । हिमालिनी पत्रिका की संपादिका श्वेता दीप्ति ने आयोजन के संचालन को नई ऊंचाइयां प्रदान की । भारतीय साहित्यकारों की तरह नेपाल के युवा साहित्यकारों ने उन समस्त सामाजिक मुद्दों विषमताओं और विवादों पर अपनी कलम से न केवल आम लोगों को जोड़ा है बल्कि उनकी पीड़ा को, आंदोलनों के दर्द को, प्राकृतिक विभीषिकाओं को बखूबी प्रस्तुत किया है । नेपाल के पूरे मीडिया जगत ने इस महोत्सव को उत्साह के साथ कवर किया । नेपाल के स्टेट नंबर दो के मुख्यमंत्री लालबाबू राउत ने उद्घाटन सत्र में जिस सहज अंदाज में अपनी सहभागिता निभाई वह भारत के अनेक राजनेताओं के लिए सीखने योग्य बात रही है ।
वहां मुख्यमंत्री ३ घंटे से अधिक धैर्यपूर्वक उपस्थित ही नहीं रहे बल्कि इस अवधि में उन्होंने भारत और नेपाल के ५० से अधिक साहित्यकारों की पुस्तकों का विमोचन किया । श्री राउत ने अपने अध्ययन अध्यापन का बेहद प्रभावी दर्शन कराया साथ ही साथ भारत नेपाल के रिश्तो की सहजता और ऐतिहासिकता को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया । समारोह का वह दृश्य सर्वाधिक प्रभावी था जब मुख्यमंत्री भी आम साहित्यकार मित्रों की तरह पंक्तिबद्ध होकर भोजन की कतार में लगे और लोगों के बीच बैठकर भोजन का आनंद लिया । मेरी पुस्तक टेढी बत्तीसी(व्यंग्य संग्रह ) का भी मुख्यमंत्री ने विमोचन करते हुए परिहास किया हम पर व्यंग्य बाणों की बरसात न हो ऐसी कृपा बनाए रखना ।। इस अवसर पर मुझे अंतर्राष्ट्रीय साहित्य रत्न सम्मान दे कर नवाजा गया जिसकी पूर्व सूचना का न होना मेरे लिए चौंकाने वाला सिद्ध हुआ ।
अतिथि सम्पादक
साहित्यकार, शिक्षाविद एवं चिंतन



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