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अस्पष्ट चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC), नेपाल के लिए एक सबक : अनिल तिवारी



अनिल तिवारी, वीरगंज | चीन की संदिग्ध CPEC परियोजना पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह  पर केंद्रित है। बंदरगाह ओमान की खाड़ी के मुंह पर रणनीतिक रूप से स्थित है, जो कि एक ऐसा रास्ता है,जिसके माध्यम से मध्य-पूर्वी देशो के तेल से भरे जहाज हिंद महासागर से होते हुए विभिन्न देशो तक पहुंचाई जाती हैं।

चीनी ग्वादर बंदरगाह पर मुक्त व्यापार क्षेत्र (Free trade zone), तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) डिपो और उत्पादन उद्योगों के निर्माण में भी निवेश कर रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन द्वारा सामरिक ग्वादर बंदरगाह में किए गए बड़े निवेश का असली उद्देश्य वहां अपने नौसेना को स्थापित करना है निकटतम भविष्य में। पाकिस्तान में चीन का यह नौसेना बेस हिंद महासागर से जुड़े हुए सभी देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय है सुरक्षा के लिहाज से।

पोर्ट का संचालन सरकारी स्वामित्व वाली चीन ओवरसीज पोर्ट्स होल्डिंग कंपनी लिमिटेड द्वारा किया जाता है, जिसके पास बंदरगाह पर 40 साल का पट्टा/lease है और यही नही वहां से जो भी लाभ होगा, उसका भी 91% चीन को जाएगा। हाल ही में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के गवर्नर ने एक खुला बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि “मुझे यह बिल्कुल नहीं पता कि 46 अरब डॉलर, जो कि चीन द्वारा निवेश किया गया है, उसमे से  कितना कर्ज है, कितना इक्विटी(equity) है औरकितना सहायता (kind) है ” यह इस बात को स्पष्ट दर्शाता है कि पाकिस्तान सरकार को यह पता ही नहीं है कि चीन के द्वारा इतने बड़े निवेश में से वापस कितना, कबतक और कैसे देना है।

हालांकि बंदरगाह का मुनाफा कम है, परन्तु बंदरगाह का रणनीतिक स्थान चीन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । यह बंदरगाह CPEC के द्वारा चीन के पश्चिमी प्रांतों को हिन्द सागर से जोड़ता है। चीन इस पूरे निवेश को अपने दो कांटेदार मुद्दों के जवाब के रूप में देखता है: 1. ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मलक्का स्ट्रेट पर निर्भरता को समाप्त करना, 2. झिंजियांग-उइघुर क्षेत्र(Xinjiang-Uighur region) में आर्थिक विकास लाने और उससे वहा उत्पन हुए अलगाववादी सोच को कम करना हैं। बीआरआई (BRI) की घोषणा पाकिस्तान की ओर चीन की व्यवहारिक बदलाव के साथ हुई। चीनी ने ग्वादर के रणनीतिक बंदरगाह पर निवेश शुरू करने से पहले ही, पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा मामलों में शामिल होना शुरू कर दिया था और बाद में चीन ने अपने रणनीतिक और मौद्रिक दोनों ही शक्तियों को उपयोग करके अपने निवेश को सुनिश्चित किया।

वर्तमान में: चीन सिर्फ पाकिस्तान में सुरक्षा चिंताओं को ही नहीं उठा रहा है बल्कि उसके आंतरिक सुरक्षा संबंधी मामलों  में भी अपनी मनमानी चला रहा है अपने सर्तो पे। विश्लेषकों ने यह चेतावनी दी है कि निकट भविष्य में उन छोटे देशों पर समान भाग्य हो सकता है, जिन्होंने बीआरआई (BRI)का चयन किया है और चीन को अपने देश के अंदरूनी मामलों में घुसने का मौका दिया है। सावधानीपूर्वक इन सभी चिंताओं पर अच्छे से विचार करने में ही समझदारी होगी। हमारे जैसे नए-नए लोकतांत्रिक देश को जो की अभी प्रगति के पथ पर बढ़ना चालू किया है, उसके लिए इस तरह के समझौता बहुत ही बड़ा जोखिम साबित हो सकता हैं। हमारी संप्रभुता की रक्षा करने की ज़िम्मेदारी जनमत से चुने हुए सरकार पर है।

श्रीलंका के हंबंतोटा अनुभव नेपाल के लिए आने वाले जोखिमों/चिन्ता का संकेत ∶ –  03 अगस्त, 2018 को श्रीलंका के केंद्रीय बैंक ने घोषणा की कि उसने बेल्ट और रोड पहल के तहत प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए $ 1 बिलियन चीनी ऋण प्राप्त किया है। यह ऋण चीन विकास बैंक से 5.25% ब्याज दर पर सुरक्षित किया गया था। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के गवर्नर श्री इंद्रजीत कुमरस्वामी ने कहा कि चीनी उन्हें अपने स्थान के अनुसार (हिन्द महसागर में) बीआरआई के संबंध में एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में देखता हैं। अत्यधिक ब्याज दरों पर श्रीलंका के बढ़ते ऋण ‘रणनीतिक समर्थन राज्यों’ की स्थापना के विचार को दर्शाता हैं। चीन के विश्लेषकों और कम्युनिस्ट पार्टी के उच्च स्तरीय प्रमुख व्यक्ति  के  द्वारा प्रस्तावित इस विचार को अद्वितीय समुद्री महाशक्ति बनने की चीनी महत्वाकांक्षा हासिल करने में बहुत महत्व रखता है। चूंकि संयुक्त राज्य अमेरिका ट्रम्प सरकार बहुपक्षीय मंचों में रूचि नहीं रखता है, इसलिए विश्व प्रगतिशील रूप से मल्टी पावर सेंटर स्वीकार करने जा रहा है, जिसमें चीन अभी तक  एक मजबूत दावेदार बनके उभरा है। हंबंतोटा बंदरगाह के द्वारा चीन हिंद महासागर में अपना नियंत्रण स्थापित करना चाहता है, जहां अभी तक भारत को पूर्ण नियंत्रण है। हंबंतोटा बंदरगाह, हिंद महासागर में  एक ऐसे जगह पर स्थित है, जो कि दुनिया की सबसे व्यस्त शिपिंग लेनो में से एक हैं। ऐसे महत्वपूर्ण जगह पर चीनी पीएलए नौसेना का नियंत्रण होना का अर्थ सिर्फ और सिर्फ यही हो सकता है कि निकटतम भविष्य में श्रीलंका और उसके समुंद्री इलाक़े पर चीन की पकड़ इतनी मजबूत हो जाएगी कि श्रीलंका चाह कर भी चीन का कुछ नहीं कह पाएगी, कुछ कर पाना तो दूर की बात है। उपर्युक्त  किए गए बातो को  पीएलए नेवी युद्धपोत के कमांडिंग अधिकारी डेंग जियानवु ने अपने एक बयान द्वारा अब प्रमाणित कर दिया है,जिसमें वह कहते है कि,” जहां कहीं भी चीनी व्यवसाय है या होगा, वहां पर उन्हें चीनी युद्धपोत भेजें जाएंगे, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए ।”

बंदरगाह पर चीन मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंग कंपनी लिमिटेड का अधिकार  है, जो कि चीन सरकार की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी कंपनी है । इस कंपनी का बंदरगाह पर 70% हिस्सेदारी/हक है और यही नही कंपनी के पास बंदरगाह का 99 साल का पट्टा(lease)  भी है, जो कि उसे मुफ्त व्यापार (free trade zone) करने की अनुमति देता है।  इसी संदर्भ में विवाद से बचने के लिए, बंदरगाह की सुरक्षा श्रीलंकाई कंपनी को दी गई है। लेकिन उस श्रीलंकाई सुरक्षा कंपनी के रिकॉर्ड बताते हैं किवास्तव में चीन ही उस कंपनी का बहुमत शेयरधारक है। एक राष्ट्र आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से प्रगति करने का प्रयास कर सकता है और उसे ऐसा करने का हर अधिकार है, लेकिन इसके लिए किसी छोटे राष्ट्र की संप्रभुता को ताक पर रखना उचित नहीं हो सकता है। चीन जो कि आज एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं, उसकी यह नैतिक जिम्मेदारी हैं कि वो छोटे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को अपने स्व-हितों के प्राप्ति के लिए खतरे में ना डाले। इन सभी बातो से सिर्फ यही निष्कर्ष निकलता है कि “बीआरआई (BRI) अपने विकास में छोटे और कमजोर राष्ट्रों का समर्थन करने के दावों के बजाय चीन के वास्तविक नीति को दर्शाता है।



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