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मन्त्री-सचिब विवाद सत्ता और सुविधाओं की उग्र लोलुप्तता में रहे प्रदेश दो के लिए लज्जाजनक घटना : चन्दन दुबे

 

अतएव प्रदेश सरकार के मंत्रियों में जिम्मेदारी बोध की आवश्यकता बहुत ही ज्यादा है हालांकि सचिव झा भी नेपाल के एक विवादित कर्मचारी के तौर पर शोहरत कमाते रहे हैं और विभिन्न मन्त्रीयों के साथ ये उनका तीसरा विवाद है।

मन्त्री यादव के निर्देशन में सचिव झा को गिरफ्तार करते हुए नेपाल पुलिस ।

चन्दन दुबे , जनकपुरधाम | प्रदेश न.२ के अर्थ तथा योजना मन्त्री विजय कुमार यादव और वन उधोग तथा पर्यटन सचिव विद्यानाथ झा के बीच हुए विवादों को लोगों ने लज्जाजनक घटना के तौर पर लिया है। संघीय सरकार के अनुदान अन्तर्गत “गरीबी निवारणका उधम” कार्यक्रम जो की प्रदेश न.२ के विभिन्न आठ जिल्लों में विभिन्न ४० गैर सरकारी संस्थाओं के सहयोग से संचालन किया जाना है। जिस कार्यक्रम का समझौता और संचालन की जिम्मेवारी प्रदेश २ सरकार के वन उधोग तथा पर्यटन मंत्रालय को है।

राजपा के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश सभा सदस्य राम नरेश राय इस मन्त्रालय के मन्त्री हैं तो झा सचिव हैं। अर्थ तथा योजना मन्त्री विजय कुमार यादव के अनुसार गैर सरकारी संस्था को इस कार्यक्रम संचालन का समझौता नही होने की सूरत में बौखलाकर मन्त्री ने अपने कार्यकक्ष में ही बुलाकर सचिव झा के ऊपर हाथपात करने का आरोप सचिव ने लगाया है। जबकि उक्त घटना के उपरान्त मन्त्री के कार्यकक्ष के बाहर सचिव ने भी काफी बवाल किया और मन्त्री के विरुद्ध काफी आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया है जिसकी किसी भी व्यक्ति द्वारा प्रसंशा नही की जा सकती | और यह एक सरकारी कर्मचारी के अचार संहिता के खिलाफ मानी जा सकती है |
ज्ञात हो कि यादव संघीय समाजवादी फोरम की तरफ से प्रदेश सरकार में अर्थ तथा योजना मन्त्री हैं। यह घटना वन उधोग तथा पर्यटन मन्त्री के जनकपुर से बाहर रहते हुए घटी है जिसके कारण इसकी रोचकता और बढ़ी हुई दिखती है। निश्चित रूप से प्रदेश न.२ में राजपा और फोरम गठबन्धन की सरकार चला रही है लेकिन फिर भी दूसरे पार्टी के हिस्से की मन्त्रालय के सचिव के साथ “उस वक़्त जबकि उक्त मन्त्रालय के मन्त्री राजधानी से बाहर हों ” विवाद होना आम लोगों के बीच एक प्रश्न एक संदेह तो खड़ा जरुर करता है।
एक तरफ प्रदेश सरकार के रवैय्ये और कार्य संचालन प्रक्रिया से खिन्न चल रही आम जनता की राय जानें तो यहां के लोग इस घटना से खुद में लज्जाबोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार और इस सरकार के मन्त्रीगण जो कि आज तक प्रदेश की स्थायी राजधानी और नाम तक तय नहीं कर पाए हैं उनसे बहुत अधिक उम्मीद भी क्या की जा सकती है। लेकिन सत्ता का उन्माद और सुविधाओं की उग्र लोलुप्तता इन लोगों में अवश्य देखी जा सकती है।
अन्य किसी प्रदेश में राज्यमंत्रियों की नियुक्ति तक नही की गई है किन्तु यहाँ के राज्यमंत्रियों ने सुविधाओं के नाम पर दो-दो गाड़ियां कब्ज़े में रखी हुई हैं। मन्त्रियों के निवास में ऐशो आराम और सजोसज्जा कि वस्तुओं में कोई भी कमियां नहीं देखी जा सकती है। इन परिस्थितियों में हुए इस मन्त्री सचिव विवाद ने निश्चित रूप से प्रदेश सरकार को एक बार फिर से आलोचनाओं का शिकार बना दिया है।
अतएव प्रदेश सरकार के मंत्रियों में जिम्मेदारी बोध की आवश्यकता बहुत ही ज्यादा है हालांकि सचिव झा भी नेपाल के एक विवादित कर्मचारी के तौर पर शोहरत कमाते रहे हैं और विभिन्न मन्त्रीयों के साथ ये उनका तीसरा विवाद है। इन परिस्थितियों में प्रदेश सरकार की बदनामियाँ बढ़ेंगी और विकाश कार्यों में बाधाएँ आएंगी अतः सरकार के हरेक पक्ष को इस विषय मे सोंचने की जरूरत है और सतर्क रहने की भी।

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