खड्का भि जेल चले गये
हिमालिनी डेस्क
भ्रष्टाचार के खिलाफ भार त मे आन्दोलनों का दौर चल र हा है । इसका असर भार त में हो या ना हो लेकिन नेपाल में भ्रष्टाचार के आर ोप में एक के बाद एक पर्ूव मंत्रियों को जेल भेजा जा र हा है । नेपाल की न्यायपालिका भ्रष्टाचार के मामले में वांछित र हे पर्ूव मंत्रियों के मुकदमें में धडल्ले के साथ फैसला सुनाते हुए उन्हें जेल का रस् ता दिखा र ही है ।
चिर ंजीवी वाग्ले, जय प्रकाश गुप्ता, नवीन्द्र जोशी और अब खुम बहादुर खड्का । देश में प्रजातंत्र की स् थापना के बाद १० सालों तक बनी १४ सर कार ों में से १२ सर कार ों में खड्का मंत्री र हे । मंत्री भी किसी ऐर े गैर े मंत्रालय का नहीं । अपने प्रभाव से हमेशा ही उन्होंने प्रभावशाली मंत्रालय पर र ाज किया था । अब स् वाभाविक है इतने प्रभावशाली मंत्री प्रभावशाली नेता होने के बाद तो दुश्मनों का बनना भी स् वाभाविक है ।
जब ज्ञानेन्द्र ने अपने हाथ में सत्ता लिया तो अपने विर ोधी नेताओं के खिलाफ जांच बिठा दी । अभी जितने भी भ्रष्टाचार के मामले में र्सवाेच्च अदालत सजा सुना र ही है, उनमें से सभी ज्ञानेन्द्र के द्वार ा ही बनाई गई जांच समिति में घेर े में डाले गए लोग हैं । ऐसा नहीं है उस दौर ान सिर्फये ही नेता भ्रष्टाचार ी थे और बांकी सभी इमानदार । लेकिन ज्ञानेन्द्र की टेढी नजर जिन नेताओं पर थी उन्हीं के मामले में मुकदमें दायर किए गए और सिर्फसजा भी उन्हीं को दी जा र ही है ।
खुम बहादुर खड्का भी ज्ञानेन्द्र की टेढी नजर से बच नहीं पाए और उनके खिलाफ भी चल र हे मुकदमें में अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है । र्सवाेच्च अदालत के न्यायाधीश इस समय नेताओं के भ्रष्टाचार के मामले में जल्द से जल्द निबटार े में लगे हुए हैं । अख्तियार दुरूपयोग अनुसंधान आयोग भी सिर्फज्ञानेन्द्र के ही द्वार ा फंसाए गए नेताओं के बार े में अपनी जांच कर र ही है । अख्तियार के पास कई शिकायतें मिली है लेकिन अभी तक किसी भी नए मामले में उसने कोई भी दिलचस् पी नहीं ली है । और ना ही दिलचस् पी लेने की हिम्मत ही है ।
खुम बहादुर खड्का को सजा सुनाए जाने के बाद उनके र्समर्थकों ने अदालत परि सर और बाहर सडकों पर काफी हंगामा मचाया था । खड्का ने शक्ति पर््रदर्शन कर पार्टर्ीीौर अदालत पर दबाब बनाने की कोशिश की । पार्टर्ीीर तो उसका असर हुआ लेकिन अदालत पर उसका कोई भी असर नहीं हुआ । अभी तक जितने भी पर्ूव मंत्रियों को सजा सुनाई गई है वो सभी नेपाली कांग्रेस से ही जुडे थे । लेकिन कभी भी कांग्रेस ने इस बार े में कोई टिप्पणी नहीं की । लेकिन खड्का के मामले में पार्टर्ीीुप नहीं र ह सकती थी, क्योंकि खड्का का प्रभाव पार्टर्ीीे भीतर भी था । केन्द्रीय कमिटी में उनकी पकडÞ का ही नतीजा था कि बाकायदा पार्टर्ीीो अदालत के फैसले का विर ोध कर ना पडÞा और अदालत के खिलाफ बयान भी निकालना पडÞा ।
र्सवाेच्च अदालत द्वार ा अपने खिलाफ फैसला सुनाने के पहले तक खड्का को यह विश्वास था कि अदालत उनके मामले को या तो लम्बित कर देगी या फिर उनके पक्ष में फैसला सुनाएगी । लेकिन ऐसा नहीं हुआ । फैसला खड्का के विपक्ष में गया । उन्हें डेढÞ साल की कैद और कर ीब पौने दो कर ोडÞ रूपये का जर्ुमाना हुआ । अदालत के फैसले के बाद खड्का उस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर कर ने की सोच में थे । खड्का को लगा कि पुनर्विचार याचिका दायर होने के बाद कुछ महीनों तक उन्हें जेल नहीं जाना पडेगा । और पर्ूण्ा इजलास में इसका फैसला आने में महिनों या एक आध साल भी लग सकता है । यही सोच कर अदालत के फैसले आने के एक हफते तक वो इसी फिर ाक में र हे कि र्सवाेच्च अदालत उनके पुनर्विचार याचिका को स् वीकार कर लेगी और तब तक उनकी गिर फ्तार ी पर भी र ोक लग जाएगी ।
लेकिन र्सवाेच्च अदालत उनके इस तर्क को मानने के लिए तैयार नहीं हर्ुइ । फैसला सुनाने वाले न्यायाधीश से लेकर प्रधान न्यायाधीश तक ने उन्हें इस बात के संकेत दे दिये कि उनकी पुनर्विचार याचिका तभी स् वीकार की जाएगी जब वो अपनी गिर फ्तार ी दे देंगे और जेल जाने के लिए तैयार र हेंगे । एक हफ्ते की कडी मशक्कत के बाद भी जब बात नहीं बनी तो मजबूर न खड्का को आत्मर्समर्पण कर ना पडÞा । जिला अदालत काठमाण्डू में आकर उन्होंने अपनी गिर फ्तार ी दी । जहां से उन्हें सीधे डिल्लीबाजार जेल भेज दिया गया ।
खड्का के जेल जाने के बाद लोगों को कानून व्यवस् था और न्याय व्यवस् था में एक बार फिर से विश्वास बढÞा । लेकिन साथ ही अदालत और अख्तियार के र वैये पर कई सवालिया निशान खडे हो गए हैं । र्सवाेच्च अदालत ने जिस फर्ुर्ती से नेताओं के भ्रष्टाचार के मामले का निबटार ा किया है और उन्हें जेल भेजती जा र ही है यह बहुत अच्छी बात है लेकिन हत्या के मामले में दोषी कर ार दिए गए और र्सवाेच्च अदालत से आजीवन कार ावास की सजा पा चुके माओवादी नेता बालकृष्ण ढुंगेल के मामले पर अदालत क्यों चुप्पी साधे हुए है – क्यों अपने फैसले के कार्यान्वयन पर अदालत कुछ नहीं कर ती जबकि पीडित पक्ष ने र्सवाेच्च में उसके फैसले के कार्यान्वयन के लिए याचिका दायर की है ।
दूसर ा सवाल यह है कि अदालत भ्रष्टाचार के मामले में सिर्फउन्हीं नेताओं को क्यों जेल भेज र ही है, जो ज्ञानेन्द्र के शासनकाल में नियतवश आर ोपी बनाए गए थे – अदालत अन्य नेताओं, वरि ष्ठ नौकर शाहों और आला पुलिस अधिकारि यों के भ्रष्टाचार के मामले पर फैसला सुनाना तो दूर उस पर सुनवाई में भी काफी ढिलाई कर र ही है । अदालत और न्यायाधीश के इस र वैये से यह शंका होती है कि देश की न्याय प्रणाली शाही शासन का विर ोध कर ने वाले नेताओं को ही चुन-चुन कर सजा क्यों दे र ही है ।