Fri. Mar 29th, 2024

हिमालिनी डेस्क
इस समय राष्ट्रपति और सरकार के बीच संबंधों पर  सभी अपने अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं । सरकार द्वारा सिफारिश किए गए चुनाव से संबंधित दो अध्यादेशों को rambaran yadavअस्वीकार करने के बाद सत्तारूढ दल और विपक्ष इस मुद्दे पर भी एक दूसरे से भिड गए हैं । सत्तारूढ दलों ने जहां र ाष्ट्रपति के इस कदम की कडी आलोचना करते हुए उन्हें नसीहत तक दे डाली वहीं विपक्षी पार्टियां राष्ट्रपति के कदम का स्वागत कर रही हैं ।
र ाष्ट्रपति के द्वारा अस् वीकार  किए गए दोनों ही अध्यादेश महत्त्वपर्ूण्ा थे क्योंकि वह चुनाव से जुडे हुए थे । चुनाव से पहले इस देश में सत्ता परिर् वर्तन अब असंभव सा नजर  आने लगा है । इसलिए यदि राष्ट्रपति ने इसे स् वीकार  कर  लिया होता तो निश्चित ही सर कार  पर  चुनाव के लिए दबाब बढजाता । लेकिन अध्यादेश स् वीकार  किए जाने के बजाए उसे अस् वीकार  कर ने का जो तर ीका उन्होंने अपनाया, बह वाकई रष्ट्रपति के लिए शोभा नहीं देता है ।
पहले तो राष्ट्रपति भवन से विज्ञप्ति जारी कर  अध्यादेश को अस् वीकार  किए जाने की बात र्सार्वजनिक कर ना और  अगले ही दिन खुद राष्ट्रपति के द्वारा इस संबंध में र्सार्वजनिक बयान देना दोनों ही ठीक नहीं था । रष्ट्रपति का यही र वैया सत्तारूढ दलों को चिढा र हा था, जिस कार ण से सत्तारूढ दल के नेता राष्ट्रपति के खिलाफ कडे शब्द का इस् तेमाल कर ने लगे । राष्ट्रपति चाहते तो उन दोनों ही अध्यादेशों को होल्ड पर  र ख सकते थे या फिर  सर कार  को वापस लौटा सकते थे, सहमति जुटाने के लिए । लेकिन ऐसा नहीं कर  राष्ट्रपति ने विज्ञप्ति जार ी कर  अपना महत्त्व और  दम दोनों ही दिखाने की कोशिश की । अध्यादेश अस् वीकार  किए जाने के अगले ही दिन र ाष्ट्रपति ने एक र्सार्वजनिक कार्यक्रम के दौर ान कडी भाषा का प्रयोग कर ते हुए सर कार  के खिलाफ भाषण दिया था । र ाष्ट्रपति डाँ र ामवर ण यादव ने कहा कि चुनाव कर ाना सर कार  के बूते की बात नहीं है इसलिए अध्यादेश को अस् वीकार  कर  दिया गया । सर कार  की वैधानिकता पर  भी प्रश्नचिन्ह उठाते हुए र ाष्ट्रपति ने कहा कि सहमति जुटाने के बजाए अध्यादेश के मार्फ शासन चलाने की नीयत र खना कामचलाऊ सर कार  के लिए ठीक नहीं है ।
र ाष्ट्रपति के इन कदमों और  भाषण के बाद अब र ाष्ट्रपति और  सर कार  के बीच शब्दों के ऐसे-ऐसे बाण चलने लगे मानो दोनों एक दूसर े के पूर क ना होकर  एक दूसर े के लिए विपक्षी दलों जैसा व्यवहार  कर  र हे हों । सत्तारूढ दलों ने भी र ाष्ट्रपति को जमकर  कोसा । सद्भावना पार्टर्ीीे सह-अध्यक्ष लक्ष्मण लाल कर्ण्र्ााे सत्तारूढ दलों की तर फ से र ाष्ट्रपति को आडे हाथों लेकर  उनके ही अस् ितत्व पर  सवाल खडा कर  दिया । काठमाण्डू के रि पोर्र्टर्स क्लब में आयोजित एक कार्यक्रम में कर्ण्र्ााे कहा कि र ाष्ट्रपति ने अध्यादेश को अस् वीकार  कर  चुनाव को लेकर  बन र हे सहमति के वातावर ण को बिगाडने का काम किया है । इससे यह साबित होता है कि चुनाव में सर कार  नहीं बल्कि र ाष्ट्रपति ही बाधक हैं । कानून के बडे जानकार  माने जाने वाले कर्ण्र्ााे यह भी कहा कि यदि र ाष्ट्रपति यह विचार  कर  र हे हैं कि अध्यादेश के बहाने सर कार  को विस् थापित किया जा सकता है तो यह सर ासर  उनकी नादानी होगी । क्योंकि र ाष्ट्रपति को चाहे तो हटाया जा सकता है लेकिन सर कार  को अगले चुनाव का परि णाम नहीं आने तक हटाना असंभव है । इसलिए र ाष्ट्रपति को अपना दायर ा नहीं भूलना चाहिए ।
र ाष्ट्रपति द्वार ा अध्यादेश अस् वीकार  किए जाने के बाद स् वयं प्रधानमंत्री ने इसका विर ोध किया और  कहा कि सर कार  दुबार ा उन अध्यादेशों को र ाष्ट्रपति के पास भेजेगी जिसके बाद उसे स् वीकार  कर ना र ाष्ट्रपति के लिए बाध्यता होगी । प्रधानमंत्री ने भी र ाष्ट्रपति को नसीहत दे डाली ।
उधर  विपक्षी नेपाली कांग्रेस और  एमाले सहित कुछ अन्य पार्टियों ने र ाष्ट्रपति के इस कदम का स् वागत किया है । कांग्रेस और  एमाले ने कहा है कि र ाष्ट्रपति ने सर कार  द्वार ा भेजे गए अध्यादेश को अस् वीकार  कर  सर कार  की मनमानी पर  र ोक लगाने की कोशिश की है । एमाले नेता माधव कुमार  नेपाल ने र ाष्ट्रपति का पक्ष लेते हुए कहा कि र ाष्ट्रपति को माओवादी से डर ने की जरूर त नहीं है । वे सभी उनके साथ में है । कांग्रेस और  एमाले के नेता र ाष्ट्रपति से सर कार  को बर्खास् त कर  नई सर कार  के गठन कर ने की मांग कर  र हे हैं । लेकिन नेपाली कांग्रेस में एक ऐसा भी खेमा है जो र ाष्ट्रपति की अधिक सक्रियताके पक्ष में नहीं है । एमाले अध्यक्ष झलनाथ खनाल सहित अन्य विपक्षी पार्टियां जहां र ाष्ट्रपति को तत्काल कुछ कडे कदम उठाते हुए भट्टरर् ाई सर कार  को अपदस् थ कर ने की लगातार  मांग कर  र हे हैं वहीं नेमकिपा अध्यक्ष नार ायण मान बिजुक्छे सर ीखे नेता र ाष्ट्रपति को ही अपने नेतृत्व में सर कार  बनाने का सुझाव दे र हे हैं । लेकिन कांग्रेस में गणतांत्रिक धार  के नेता माने जाने वाले अर्जुन नर सिंह केसी, नर हरि  आचार्य र ाष्ट्रपति की अधिक सक्रियता के पक्ष में बिलकुल भी नहीं है । इन नेताओं का मानना है कि र ाष्ट्रपति के अधिक सक्रिय होने से देश में निर ंकुशता आने का खतर ा बढ जाएगा और  भविष्य में इसका दुष्परि णाम सभी को भुगतना पडÞ सकता है । लेकिन कांग्रेस में ही कई नेता र ाष्ट्रपति को बढÞा-चढÞा कर  इस सर कार  को हटाने के लिए लगातार  दबाब डाल र हे हैं ।
र ाष्ट्रपति भी अपनी सक्रियता बढÞाने के मूड में दिखाई देते हैं । र ाष्ट्रपति भवन में आए दिन विचार  विमर्श के नाम पर  र ाजनीतिक गतिविधियां होती र हती हैं । संविधान में स् पष्ट उल्लेख है कि र ाष्ट्रपति सर कार  के सुझाव सल्लाह पर  ही कोई काम कर ेंगे । लेकिन संविधान के संर क्षक र हे र ामवर ण यादव के लिए यह कोई मायने नहीं र खता है । सर कार  के विरूद्ध उनका र वैया इस कदर  पर्ूवाग्रही र हा है कि उन्होंने सर कार  को चिढÞाने के लिए चुनाव आयोग से मान्यता नहीं र हे दलों को भी विचार -विमर्श के लिए बुला लिया था ।
चुनाव संबंधी अध्यादेश अस् वीकार  कर ने के बाद से र ाष्ट्रपति की भूमिका संदेह के घेर े में आ गई है । इस अध्यादेश को अस् वीकार  कर ने के बाद आगामी मंसिर  नहीं तो कम से कम वैशाख या ज्येष्ठ में भी संभावित चुनाव के आसार  खत्म हो गए हैं । विपक्षी पार्टियों के खुश होने की दो वजहें हैं एक तो र ाष्ट्रपति ने सर कार  का विर ोध किया है इसलिए और  दूसर ा कि कांग्रेस एमाले भी चुनाव में नहीं जाना चाहती है । इसलिए भी उन्होंने र ाष्ट्रपति के कदम का स् वागत किया । विपक्षी दलों जो कि सर कार  पर  सत्ता कब्जा कर ने का आर ोप लगा र ही है तो माओवादी को सत्ता से हटाने के लिए चुनाव ही एकमात्र विकल्प र ह जाता है । ऐसे में चुनाव के लिए नियम कानून में भी बदलाव आवश्यक है । लेकिन र ाष्ट्रपति ने उस महत्त्वपर्ूण्ा विधेयक को अस् वीकार  कर  चुनाव की संभावना को ही निस् तेज कर  दिया है । ऐसे में आशंका यह भी जताई जा र ही है कि कहीं चुनाव को नहीं होने देने में और  माओवादी को सत्ता कब्जा कर ने के लिए र ाष्ट्रपति की भी तो कोई भूमिका नहीं है – कहीं र ाष्ट्रपति को भी बनाए र खने और  लम्बे समय तक पद पर  बने र हने के लालच में र ाष्ट्रपति भी तो माओवादी के हाथों की कठपुतली तो नहीं बन गए हैं – कहीं सत्ता पक्ष और  र ाष्ट्रपति के बीच चल र हे वाक्युद्ध एक दिखावा तो नहीं है – इन सभी कार णों से र ाष्ट्रपति की भूमिका संदेह के घेर े में आ गई है ।

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