चीन के बेल्ट एंड रोड फोरम के कारण कई छाेटे देश कर्ज की जाल में
भारत ने चीन के बेल्ट एंड रोड फोरम में हिस्सा नहीं लेने का संकेत दिया है। भारत का कहना है कि कोई भी देश ऐसी किसी पहल का हिस्सा नहीं बन सकता, जिसमें संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ी उसकी चिंताओं की अनदेखी हो। विवादित चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के मुद्दे पर विरोध जताते हुए भारत ने 2017 में हुए पहले बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) का भी बहिष्कार किया था।
हाल ही में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा था कि अगले महीने आयोजित होने जा रहा बीआरएफ का दूसरा संस्करण पहले से भव्य होगा। इसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी हिस्सा लेंगे। भारत सीपीईसी परियोजना को लेकर बीआरएफ का बहिष्कार करता रहा है। सीपीईसी के अंतर्गत चीन अपने शिनिजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ेगा। इसके तहत सड़क, रेल, गैस और तेल पाइपलाइन बिछाई जाएगी। यह गलियारा गुलाम कश्मीर से होकर गुजरेगा। भारत ने इस पर आपत्ति जताई है।
चीन में भारत के राजदूत विक्रम मिस्री ने कहा, ‘कनेक्टिविटी की हर पहल इस तरह की होनी चाहिए जिसमें सभी देशों की संप्रभुता, समानता और क्षेत्रीय अखंडता का ध्यान रखा जाए। कोई देश ऐसी पहल का हिस्सा नहीं बन सकता, जहां इन हितों की अनदेखी हो।’ मिस्री ने कहा कि बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआइ) पर भारत का रुख स्पष्ट है।
अमेरिका समेत कई अन्य देशों ने भी इस परियोजना पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि इस परियोजना के चलते कई छोटे देश कर्ज के जाल में फंस जाएंगे। चीन द्वारा श्रीलंका का हंबनटोटा बंदरगाह 99 साल की लीज पर लिए जाने के बाद से यह चिंता और बढ़ गई है।
बीआरआइ में शामिल होगा इटली
सहयोगियों की आपत्ति के बावजूद इटली के प्रधानमंत्री गुइसेप कोंटे ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव में शामिल होने की बात कही है। कोंटे ने संसद में बताया कि इस हफ्ते चीन के प्रधानमंत्री ली कछ्यांग के इटली दौरे पर इस संबंध में एमओयू पर हस्ताक्षर होगा। उन्होंने अर्थव्यवस्था के लिहाज से इसे जरूरी कदम बताया। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग भी इटली के दौरे पर पहुंच रहे हैं।