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भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र माेदी की संवाद शैली की दुनिया ही नहीं विपक्ष भी मुरीद



नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व को उनकी संवाद शैली ने अलग पहचान दिलाई। बोलते तो लालू यादव भी अच्छा हैं, लेकिन फर्क है। वही फर्क जो बिकाऊ मसाला फिल्मों और ठेठ क्लासिक फिल्मों के बीच होता है। राहुल गांधी ने भी जनता से सीधे और प्रभावी संवाद की पुरजोर कोशिश की, लेकिन परफॉरमेंस में फर्क था। वही फर्क जो असल हीरो और डुप्लीकेट में होता है। बोलते तो ओवैसी भी हैं, लेकिन फर्क है। फर्क नकारात्मकता का है। यह लोगों को क्षणिक उत्तेजना से भर सकती है, लेकिन स्थायी प्रभाव नहीं छोड़ सकती।सार्वजनिक जीवन, खासकर राजनीति में संवाद की बड़ी भूमिका है। नेता का कुशल वक्ता होना भी जरूरी है। महात्मा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक और अब्राहम लिंकन या मार्टिन लूथर किंग से लेकर बराक ओबामा तक, जिन नेताओं को भाषणकला में महारत हासिल रही है, उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। अपार लोकप्रियता अर्जित की। जनता से सीधा संवाद कर सकने की कला विरले नेताओं में ही देखने को मिलती है। आज के दौर में नरेंद्र मोदी इसी कद के नेता हैं। जनता से संवाद की बेहद सहज लेकिन उतनी ही प्रभावपूर्ण शैली के वे धनी हैं। यह भी एक विशेषता है, जिसने ब्रांड मोदी की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए।

भाषण का स्वरूप नियोजित हो सकता है। इसे पहले से तैयार किया जा सकता है। लेकिन लिखे को पढ़ने की कला भी कम ही नेताओं को आती है। प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति सभी के बूते की बात नहीं। यही तो असल कला है। यह कला सीखी नहीं जा सकती है। यह केवल और केवल परवरिश से आती है। जनता के बीच से पैदा हुआ जमीनीखांटी नेता ही इस स्तर तक पहुंच सकता है। जैसे कि नरेंद्र मोदी। उन्हें सुनने वालों की फेहरिस्त में गरीब भी है और अमीर भी। हिंदू भी है और मुसलमान भी। देश के लोग भी हैं और दुनिया के भी। भाषण के दौरान उनकी सहजता उनकी बॉडी लैंग्वेज से भी झलकती है। यह जितनी सहज होती है, उतनी ही आक्रामक भी। विरोधियों को घेरना हो या मन की बात रखनी हो, हर बात निशाने पर जा बैठती है। पुलवामा हमले के बाद जब उन्होंने कहा- घर में घुसकर मारेंगे…, तब उनके चेहरे पर जो भाव थे, वे बता रहे थे कि यह महज भाषणबाजी नहीं है। विरोधी भले ही इसे जुमलेबाजी कहें, लेकिन शायद जनता इसे जुमलेबाजी नहीं मानती। गर मानती तो मोदी का नाम ब्रांड मोदी नहीं बन सकता था।

मंच कोई भी हो, मोदी के आने से पहले ही मोदी… मोदी.. का शोर गूंज उठता है। आज कितने नेताओं को यह अपनत्व जनता से मिला है। सचिन तेंदुलकर जैसे लोकप्रिय क्रिकेटर- जिन्हें दुनिया ने क्रिकेट का भगवान कहा, जब मैदान पर आते थे तो सचिन… सचिन… के शोर से स्टेडियम गूंजता रह जाता था। ऐसी लोकप्रियता मोदी को मिली है। मोदी की भाषण शैली की जनता मुरीद है। चाहे वह बीच-बीच में पॉज लेना हो या रुक कर पानी पीना। यहां तक कि जब वह भाषण के दौरान ठहरते हैं तो उनकी तरफ से जनता संवाद करती है। पीएम मोदी के भाषणों में शब्दों का शानदार चयन और संस्कृत के श्लोकों व प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक दर्शन का समावेश मिलता है। इसके कायल उनके राजनीतिक विरोधी भी हैं।

जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें डरना ही होगा…
सात फरवरी 2019: संसद के शीतकालीन सत्र में पीएम मोदी का यह भाषण यादगार माना जाता है। यहां मोदी का आत्मविश्वास और विपक्ष पर हमला इतना तेज था कि विपक्ष को बगले झांकनी पड़ी। कांग्रेस के लिए कहा कि आप इतनी तैयारी करो कि 2023 में फिर से संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़े। इस दिन कांग्रेस और विपक्ष पर मोदी का हमला लगातार बढ़ता ही जा रहा था और विपक्ष सिर्फ मुंह ताक रहा था। उन्होंने कहा- जिन्होंने देश को लूटा है, उन्हें डरना ही होगा। मोदी ने अपने भाषण में ‘सूरज को नहीं डूबने दूंगा’ की पंक्ति वाली एक कविता सुनाई। कहा- ‘सूरज जाएगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा। यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में, हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में। तुम उदास मत हो, अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा…।’ उनके एक-एक वक्तव्य के कई मतलब थे। नमूना देखिए- ‘अब तो महामिलावट आने वाली है। देश ने यह महामिलावट 30 साल देखी है। स्वस्थ समाज महामिलावट से दूर रहता है’।

राहुल ने जब गले लगाकर मारी थी आंख…
20 जुलाई 2018: यह वही दिन था जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पीएम मोदी को गले लगा कर निरुत्तर करने की कोशिश की थी, लेकिन अंत में यह बाजी भी पीएम मोदी के हाथ लगी। हुआ यूं कि राहुल गांधी अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में बोलते हुए अचानक पीएम के करीब चले गये। राहुल ने पीएम से उठने को कहा। हालांकि मोदी नहीं उठे और राहुल ने बैठे-बैठे ही उन्हें गले लगाने की कोशिश की और चले गए। जब राहुल अपनी सीट पर बैठे तो उन्होंने अपनी बायीं तरफ किसी को आंख मारी। इसके बाद पीएम मोदी का वक्तव्य शुरू हुआ। उन्होंने व्यंग्य कसते हुए कहा, उन्हें सवा सौ करोड़ जनता ने इस कुर्सी पर बिठाया है। राहुल को उन्हें कुर्सी से हटाने की अभी जल्दी नहीं करनी चाहिए। इसके बाद जिक्र किया राहुल के आंख मारने का। यहां उन्होंने शब्दों का कम बॉडी लैंग्वेज का ज्यादा इस्तेमाल किया।

सभापति जी, रेणुका जी को कुछ मत कहिए… 
सात फरवरी 2018 : संसद में यूं तो हंसी ठहाके आम बात है। सात फरवरी 2018 को भी ऐसा ही मौका आया। जब कांग्रेस की वरिष्ठ नेता रेणुका चौधरी राज्यसभा में पीएम मोदी के भाषण के दौरान तेजी से हंस पड़ीं थी। उन्हें सभापति ने इसके लिए रोका। लेकिन पीएम मोदी ने इस पल को भी यादगार बना दिया। कहा- सभापति जी मेरी आपसे विनती है कि रेणुका जी को कुछ मत कहिए। रामायण सीरियल के बाद ऐसी हंसी सुनने का सौभाग्य आज जाकर मिला है।

मेरी सरकार का एक ही धर्म, भारत सबसे पहले …
27 फरवरी 2015 : राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते पीएम मोदी ने सांप्रदायिकता फैलाने वालों पर जमकर निशाना साधा था। इसे उनकी गर्जना भी कह सकते हैं। मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा- मेरी सरकार का एक ही धर्म है, ‘भारत सबसे पहले’, एक ही धर्मग्रंथ है, ‘भारत का संविधान’, एक ही भक्ति है, ‘भारत भक्ति’, एक ही पूजा है, सवा सौ करोड़ देशवासियों का कल्याण।

जब लोकतंत्र के मंदिर को सिर झुकाकर पूजा…
20 मई 2014- यह वह दिन था जब नरेंद्र मोदी सांसद के तौर पर पहली बार संसद पहुंचे थे। इस दिन कुछ ऐसा हुआ जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी। उन्होंने लोकतंत्र के मंदिर संसद के द्वार पर सिर रख कर आशीर्वाद लिया। उनके स्वागत के लिए भाजपा के कई बड़े नेता मौजूद थे। मोदी के इस भाव को लेकर सोशल मीडिया में भी खूब चर्चा हुई। समर्थकों से लेकर उनके विरोधी भी उनके मुरीद हो गए। संसद में भाषण के दौरान कई ऐसे मौके आए जब मोदी भावुक हो गए। अक्सर विरोधियों को अपने शब्दबाणों से चित करने देने वाले मोदी का यह रूप कई लोगों के लिए अप्रत्याशित था।

पीएम के संवाद के कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं मन की बात। अब तक वह 53 बार देशवासियों से मन की बात कर चुके हैं। मन की बात का अंतिम संस्करण 24 फरवरी को प्रसारित हुआ था। अंतिम संस्करण में भी उनका आत्मविश्वास देखने लायक था। उन्होंने कहा- अब मन की बात मई 2019 में होगी। इसकी लोकप्रियता का आलम यह है कि लोगों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है। लोग अपने सवाल भेजते हैं। जिनमें से पीएम चुने हुए सवालों का जवाब देते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की स्वीकार्यता पार्टी में ही नहीं, विरोधी खेमे में भी थी। जब वह बोलते थे तो सारा सदन ही नहीं, देश भी सुनता था। करीब चार दशकों तक विपक्ष में रहने के बाद 1996 में वह पल भी आया जब वाजपेयी पहली बार पीएम बने। उनका पहला कार्यकाल महज 13 दिनों का रहा, लेकिन पद छोड़ते हुए उनका भाषण इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। उन्होंने कहा था-‘सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी, पार्टियां बनेंगी-बिगड़ेंगी। मगर यह देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।’

जवाहर लाल नेहरू

देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू भी कुशल वक्ता माने जाते थे। वह भी कई बार सदन में अपनी वाकपटुता से विरोधियों को चित कर देते थे। नेहरू अपने भाषणों में भी विपक्षी नेताओं का जिक्र किया करते थे। इसमें सबसे प्रमुख अटल बिहारी वाजपेयी ही थे। नेहरू भी अटल के भाषणों के कायल थे। हुआ यूं कि दूसरे लोकसभा चुनाव 1957 में अटल ने मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ा था। वह मथुरा से तो हार गए लेकिन बलरामपुर से जीत गए। इस बीच नेहरू ने एक ब्रिटिश नेता से अटल की मुलाकात कराई। कहा- इनसे मिलिए, यह युवा एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा।

इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी भी कुशल वक्ता के तौर पर जानी जाती थी। यूं तो उन्होंने कई यादगार भाषण दिए, लेकिन हत्या के एक दिन पहले 30 अक्टूबर 1984 को भुवनेश्वर में दिया गया भाषण खास है। उन्होंने कहा था- ‘मैं आज यहां हूं। कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं। मेरा जीवन लंबा रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।’

 

साभार दैनिक जागरण



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