पाँचथर सामूहिक हत्याकांड : क्या सचमुच इंसान दानव बनता जा रहा है ?
काठमाडौं २२ मई
बदलते परिवेश के साथ ही मनुष्य क्रुरता की हद पार कर रहा है । इसे मानसिक विक्षाप्ता कहा जाय या दानवी प्रवृत्ति । पाँचथर हत्याकांड ने मानव जाति काे ही कटघरे में लाकर खडा कर दिया है । क्या बदले की भावना इस हद तक पहुँच सकती है कि इंसान दानव बन जाय । नाै लाेगाें की सामूहिक हत्या ने नेपाल के हर नागरिक का मन विचलित कर दिया है ।
प्रारम्भिक अनुसंधान से यही लग रहा है कि पारिवारिक विवाद इस नरसंहार का कारण है । खुकुरी से हत्या करने के कुछ घन्टे बाद ही संदिग्ध व्यक्ति की लाश भी फाँसी लगी हुई पाई गई ।
पाँचथर के मिक्लाजुङ गाउँपालिका-३, आरुबोटे में दाे परिवाराें के सदस्याें की सामूहिक हत्या हुई है । जिसमें सिर्फ एक बालिका अपनी जान भाग कर बचा पाई है । बमबहादुर फियाक और उनके दामाद धनराज शेर्मा के परिवार के ९ लाेगाें की हत्या हुई है । आश्चर्य यह है कि एक व्यक्ति अकेला नाै लाेगाें की हत्या करता है वाे भी खुकुरी से और इसकी भनक तक पास पडाेस वाले काे नहीं लगती है ।
दाेनाें परिवारका घर करीब दाे किलोमीटर की दूरी में है । जिला प्रहरी कार्यालय, पाँचथर के प्रमुख डीएसपी नरेन्द्र कुँवर के अनुसार ४१ वर्षीय धनराज शेर्मा, ६ वर्षीया इक्सा शेर्मा, १३ वर्षीया योवना शेर्मा, आठ वर्षीया मुना शेर्मा और १२ वर्षीया आशिका खजुम लिम्बू की हत्या हुई है।
साथ ही फियाक परिवार के ७४ वर्षीय बमबहादुर फियाक, उनकी श्रीमती जस्मिता फियाक और २६ वर्षीया मनकुमारी फियाक की भी हत्या हुई है । शेर्मा र फियाक दामाद और ससुर हैं।
मध्यरात हुए इस नृशंस हत्याकांड में बालिका सीता खजुम अपनी जान बचा पाई है । उसके अनुसार हत्यारा हत्यारा नकाब लगा कर आया था इसी आधार पर प्रहरी मान रही है कि घटना में एक ही व्यक्ति का हाथ है ।
हत्याकांड का कारण वंशनाश करना माना जा रहा है । आराेपी मानबहादुर माखिम जिसकी लाश पेड में फाँसी की अवस्था में मिली है वह इस परिवार का छाेटा दामाद था । सीता के बयान के अनुसार उसे ही इस हत्याकांड का मुख्य आराेपी माना जा रहा है ।
प्रहरी द्पारा खाेज करने के क्रम में ही खून से भीगा कपडा और खुकुरी भी प्राप्त हाे चुका है । प्रहरी के अनुसार जाँच के और भी कई बातें हैं जिस पर अनुसंधान जारी है ।
माना जा रहा है कि इस हत्याकांड के कारण के मूल में मानबहादुर और उसकी पत्नी के बीच का तनावपूर्ण सम्बन्ध और तलाक है । कारण जाे भी रहा हाे पर एक सवाल ताे समाज के समक्ष जरुर है कि इंसानियत आज जरुर दाँव पर लगा हुआ है जहाँ विभिन्न कारणाें से लाेग जान लेने में जरा भी नहीं हिचकिचा रहे हैं ।