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बारा पर्सा में तबाही का मंजर :मुरलीमनोहर तिवारी

हिमालिनी, अंक अप्रील 2019 | २०७५ चैत्र १७ गते का दिन अन्य दिनों की तरह सामान्य ही लग रहा था, शाम के समय आँधी, पत्थर और बारिश हुई, जो सामान्य दिनों की अपेक्षा थोड़ी ज्यादा थी । बर्षा खÞत्म होने के बाद सबलोग बाहर निकले कुछ टूटा–फुटा हुआ था जिसे ठीक करने में सबलोग लग गए । बिजली की सप्लाई बंद थी, लेकिन कुछ ही देरी में एम्बुलेंस का सायरन गूंजने लगा । एक के बाद एक एम्बुलेंस आने लगे अब चिंता होने लगी । पुलिस प्रशासन से संपर्क करने पर इतना ही पता चला कि बहुत बड़ी क्षति हुई है । हमलोग राहत कार्य में लगे है, कृप्या फोन करके व्यवधान उत्तपन ना करें । कहीं से कोई सूचना नहीं मिल रही थी और अस्पताल मरीजों से भरता जा रहा था । एफएम, रेडियो बीरगंज पर संचालक ध्रुब साह खुद लाइभ प्रोग्राम करके हालात का जायजा ले रहे थे,लोग पÞmोन करके हालत की जानकारी दे रहे थे, सब जगह से एम्बुलेंस की मांग हो रही थी ।On 31 March 2019, a tornado struck the Bara and Parsa districts of Nepal

बीरगंज महानगरपालिका के मेयर बिजय सरावगी से संपर्क करने पर वे बीरगंज हेल्थ केयर हास्पिटल में मरीजों के साथ थे । मुख्यमंत्री से संपर्क करने पर वे जनकपुर से घटनास्थल पहुंचने के लिए निकल चुके थे । आधी रात को मेयर सरावगी का पोस्ट आया “साथी लोग, बहुत बड़ी विपत्ति आई है, कृप्या रक्तदान करने जाइए, ३०० से ज्यादा घायल है ।” रात भर एम्बुलेंस बजता रहा, सारे अस्पतालों के डाक्टर अस्पताल में पहुंच गए थे । एम्बुलेंस एसोसिएसन ने मुफ्त एम्बुलेंस दिया, दवाखाना ने दवा, अस्पतालों ने इलाज, जिससे जो सम्भव हुआ राहत कार्य में लगा । रात से ही मुख्यमंत्री और उनके सहयोगी राहत कार्य में लगे रहे । प्रदेश सरकार घायलों का इलाज और पुनस्र्थापना के कार्य में लगी । खुद मुख्यमंत्री के पहल पर विभिन्न गैर सरकारी संगठनों द्वारा अस्पताल और पीडि़त गांव में भोजन दिया जाने लगा, गांव में एक ही जगह भोजन के व्यवस्था करने से भगदड़ और दुर्घटना की आशंका के कारण टोल–टोल में भोजन की व्यवस्था की गई । कई प्रभवित जगह की जानकारी मीडिया और सीडीओ तक को नहीं थी, वहां भी सबसे पहले मुख्यमंत्री पहुंचे । फिर कई जगहों से मदद के लिए हाथ बढ़ने लगे ।

विभिन्न संघ संस्था में सक्रिय रहने वाले महिलाओ का समूह ’वुमन फर वुमेन’ ने पीडि़त महिलाओं को भी अलग से राहत वितरण किया । महिलाओ के समूह ने फेसबुक मार्फत सहयोग आह्वान किया, जिसमे विभिन्न संघ संस्था तथा विभिन्न दाताओं के सहयोग से उक्त राहत सामग्री वितरण किया गया । त्रासदीग्रस्त इलाकाें में बिजली समस्या समाधन के लिए रेडियो बीरगंज ने सोलर लाइट देकर अनोखा सहयोग किया उस सोलर लाइट से मोबाइल चार्ज करने की ब्यवस्था थी । गैर आवासीय नेपालीयों के संगठन एण्टा और माँ जैसे संगठनों ने भरपूर सहयोग किया । स्वास्थ्यकर्मी और विधुतकर्मी का सहयोग उल्लेखनीय रहा ।


अगले दिन प्रधानमंत्री, स्वास्थ्यमंत्री, शहरी विकासमंत्री घायलों से मिले और क्षति का जायजा लिया । प्रदेश के भौतिक मंत्री जितेंद्र सोनल ने खुद रक्तदान किया और राहत कार्य में सबसे ज्यादा सक्रिय रहे । लगभग सभी राजनितिक दल ने सहयोग किया । पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा, प्रचंड,बाबूराम भटराई,माधव नेपाल भी घटनास्थल पहुंचे । स.स.फोरम के अध्यक्ष उपेंद्र यादव,राजपा के अध्यक्ष के शरद सिंह भंडारी, राजेंद्र महतो समेत हालात का जायजा लेने पहुंचे । जनमत पार्टी के संयोजक सिके राउत भी पहुंचे । हास्य कलाकर धुर्मुस और डा गोबिंद केसी भी राहत सामग्री और दवाओं के साथ पहुंचे । तूफान के कारण हजारो घर तबाह हो गए है, ५०० से ज्यादा लोग गंभीर घायल है, मृतकों की संख्या बढ़ती जा रही है, अभी तक २७ मृतक की पुष्टि हो चुकी है और ज्यादा होने की आशंका है ।

मौसमविद इसका कारण जानने में जुट गए, इस प्रकार की आपदा का पूर्वानुमान न होने पर उनकी क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा, ये भी बात खुल गई की प्राविधिक और तकनीकी साधन में नेपाल कितना पीछे है । बाद में सेटेलाइट से कुछ तस्वीरें प्राप्त हुई, जिससे जानकारी हुई की ये आंधी नहीं टोरनेडो था,जो अमेरिका और भारत के मरुस्थल में आता है, नेपाल में पहली बार टोरनेडो आया । टोरनेडो एक बवंडर होता है, जो चिमनीकार सरंचना पतली नलिका की तरह होती है, जो पृथ्वी से बादलों तक जाती है । इस बवंडर का निचला भाग पारदर्शी धूल के बादलों से घिरा हुआ है जो सतह पर चलने वाली बवंडर की तेज हवाओं को उपर उठा देती है । बवंडर की हवा इसकी चिमनी की त्रिज्या से बहुत अधिक विस्तारित होती हैं । इन्हें अक्सर टोरनेडो, ट्विस्टर्स अथवा चक्रवात कहा जाता है । हालांकि मौसम विज्ञान में ‘चक्रवात’ शब्द का प्रयोग ज्यादा होता है ।

बवंडर विभिन्न आकार और आकृतियों वाले होते हैं लेकिन वे आमतौर पर संक्षेपण कीप के रूप में दिखते हैं जिनका संकीर्ण भाग पृथ्वी की सतह को स्पर्श करता है और इसका दूसरा सिरा धूल के बादलों द्वारा घेर लिया जाता है । अधिकतर बवंडरों में हवा की गति ११० मील प्रति घंटा (१८० किमीरघंटा) से कम और लगभग २५० फीट (८० मी.) से अधिक होती है तथा छितराने से पूर्व कुछ मीलों (कुछ किलोमीटर) तक चलता है । मुख्य चरम मान तक पहुँचने वाले बवंडर ३०० मील प्रति घंटा (४८० किमीरघंटा) से भी अधिक गति प्राप्त कर सकते हैं तथा ३ किमी से भी अधिक विस्तारित हो सकते हैं एवं दर्जÞनों मील (सैकड़ों किलोमीटर) पृथ्वी की सतह पर चल सकते हैं ।

टोरनेडो चक्रवात एक प्रकार से हिंसक तूफान होते हैं, ये एक प्रकार की तेज और बहुत उच्च वेग वाली हवाएँ हैं जो निम्न वायुमंडलीय दबाव के शान्त केन्द्र के चारों ओर तीव्रता से घूमती हैं । यह शान्त केन्द्र प्रायः आगे की ओर बढ़ता है, कभी–कभी इनका वेग ५० कि मी घंटा होता है । चक्रवात अचानक ही घटित होते हैं जबकि इनको बनने में लम्बा समय लग जाता है । चक्रवात के बाद प्रायः तेज वर्षा होती है जिसके कारण बाढ़ भी आ जाती है । उपग्रहों के द्वारा इनके द्वारा प्रभावित होने वाले संभावित क्षेत्रों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और वहाँ के निवासियों को चेतावनी दी जा सकती है । चेतावनी और स्थान परिवर्तन प्रस्तावित मार्ग के अनुसार ही होना चाहिये । हल्के भार वाले मिट्टी, लकड़ी के निर्माण, पुरानी इमारतें जिनका ढाँचा और दीवारें कमजोर हो चुकी हैं और जिनकी नींव की मजबूत पकड़ नहीं है, चक्रवात के समय भारी खतरे में पड़ जाती है । समुद्री तट पर बसे निचले क्षेत्र इनसे सीधे ही खतरे में पड़ जाते हैं ।

समीपवर्ती बसे क्षेत्र बाढ़, मडस्लाइड या भूस्खलन आदि होने से जल्दी प्रभावित होते हैं । टेलीफोन और बिजली के तार और खम्भे, दीवारें, पेड़, मछली पकड़ने की नावें, साइनबोर्ड आदि के लिये चक्रवात आने से खतरा बढ़ जाता है । हल्का इमारती ढांचा जैसे फूस की झोपड़ी, टिन की छत वाले घर चक्रवात की क्षति को बहुत अधिक झेलते हैं । भारी वर्षा के कारण लोग और उनकी सम्पत्ति बाढ़ के पानी में बह सकती है या चक्रवात की तूफानी हवा में उड़ सकती हैं । तटीय क्षेत्र में आये चक्रवात के कारण समुद्र की लहरें भूमि पर पहुँच जाती हैं और बाढ़ आ जाती है इससे प्रभावित क्षेत्रों में मिट्टी और पानी में खारापन आ जाता है । इसके कारण पानी की आपूर्ति और कृषि फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ।
चक्रवात संभावित क्षेत्र को पहचानना बहुत आवश्यक है । चक्रवात संभावित क्षेत्र में किसी प्रकार के विकास कार्य की अनुमति नहीं देनी चाहिए । ऐसी इमारतें बनानी चाहिये जो हवा और बाढ़ों की तीव्रता को झेल सकें । किसी ढाँचे की पकड़ रखने वाले तत्व मजबूती से जमीन में गड़े होने चाहिये जिससे वे अपने ऊपर टिके ढाँचे को मजबूती से सम्भाल सकें । तट के किनारे लगे वन चक्रवात के प्रभाव को काफी हद तक कम करने में समर्थ होते हैं । अतः आवश्यक है कि समुद्री तट के किनारे किनारे ग्रीन बैल्ट को विकसित किया जाय । प्रकृति में बाढ़, सूखा, भूकम्प, सुनामी जैसी आकस्मिक आपदा समय समय पर आती ही रहती हैं और इनके कारण जीवन और सम्पत्ति की बहुत हानि होती है । अतः यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि इन प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने और जहाँ तक सम्भव हो इन आपदाओं को कम से कम करने के उपाय और साधन खोजे जाएँ । प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन कैसे बनाये रखे इस पर विचार हो । मानव निर्मित और प्राकृतिक आपदाओं को वर्गीकृत करना होगा । बाढ़, तूफान (चक्रवात) सूखे (जल और जलवायु सम्बन्धी आपदाओं), भूकम्प (भूविज्ञान सम्बन्धी आपदा) के कारण,जंगल की आग, तेल रिसाव जैसी दुर्घटनाओं से सम्बन्धित आपदा, जैव सम्बन्धी आपदाओं (महामारियों जैसे डेंगू, एचआइवी और पशु महामारी) के कारण बनते है जिनसे बचने के उपाय होने चाहिए ।

बार बार आने वाली इन आपदाओं में जान और माल की बहुत हानि होती है । भौतिक सुरक्षा, विशेषकर जहाँ असुरक्षा अधिक है, इन बाधाओं के कारण खतरे में पड़ गई है । प्राकृतिक आपदाओं को रोका तो नहीं जा सकता परन्तु उनसे होने वाले दुष्परिणामों और क्षति को कुछ सावधानियाँ अपनाकर रोका जरूर जा सकता है जैसे अधिक कुशल भविष्यवाणी और प्रभावशाली बचाव साधनों के लिये अच्छी तैयारी हो । हमें बहुबाधा से होने वाली जान माल की हानि को कम करने और पुनः सुचारु करने के लिये उचित योजनाओं और तैयारियों की आवश्यकता है । आपदाओं के खतरे का प्रबन्धन वास्तव में विकास की समस्या है। पर्यावरण की जिस स्थिति को देश आज झेल रहा है, उसे ध्यान में रखते हुए आपदा प्रबन्धन की तैयारी और योजना तैयार करनी होगी ।



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