सपनों के सच हो जाने तक
राजकुमार जैन राजन
कई सपने
बांध कर रखे हैं
जीवन की कुटिया में
रौशनी की छाँह तले
जिसमें संजो रखा था हौसला
नव उत्कर्ष के लिए
पानी के बुलबुलों सी
उठती हैं छिटपुट स्मृतियां
क्या होगा कविताएं लिखकर
जिंदगी के अहम सवाल जब
शब्दों में ढलते ही नहीं
अक्षरों की कैद से
अर्थ कतराते हो जहाँ
उठो,
बंधे हुए सपनों को
आजÞाद हो जाने दो
मौसम को करवट लेने दो
मुरझाये चेहरों पर
सपनों के इंद्रधनुष तराशो
आशाओं का सूरज उग जाने तक
अतीत की वादियों में भटकता हुआ
मौसम बेअसर
और उग आए हों पंख पैरों में
उम्मीदों के शिशु थामे हुए
चलते जाना है… चलते जाना है
सपनों के सच होने तक !