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आत्महत्या समाधान नहीं अपितु अनेक समस्याओं की जननी है : डॉ मनोजकुमार तिवारी

डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
ए आर टी सेंटर,आई एम एस, बीएचयू, वाराणसी,(उ प्र)

डॉ मनोज कुमार तिवारी । विश्व आत्महत्या निवारण दिवस 10 सितंबर को 2003 से प्रतिवर्ष मनाया जाता है जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को आत्महत्या के प्रति जागरूक करके इसमें कमी लाना है इस वर्ष का नारा है “आत्महत्या के बचाव के लिए मिलकर काम करें” आत्महत्या एक ऐसी समस्या है जिसका निवारण सामूहिक प्रयासों द्वारा ही किया जा सकता है इसीलिए यह विशेष नारा दिया गया है और हम सभी जिम्मेदार नागरिकों का यह दायित्व है कि आत्महत्या की घटनाओं में कमी लाने के लिए अपना योगदान प्रदान करें।

आत्महत्या एक आत्मघाती व्यवहार है जिसमें व्यक्ति स्वयं को जान से मारने का प्रयास करता है। पूरे विश्व में लगभग हर वर्ष 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं । विश्व में होने वाले कुल आत्महत्या का 21% आत्महत्या लोग भारत में करते हैं । जापान में प्रति एक लाख में 20 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि भारत में प्रति लाख में 11 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं । भारतवर्ष में सबसे अधिक आत्महत्या महाराष्ट्र में होता है उसके बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश का नंबर आता है । भारत में होने वाले कुल आत्महत्या का 51% आत्महत्या उपर्युक्त पांच प्रदेशों में होता है । सबसे अधिक दर आत्महत्या का पांडिचेरी में है जहां पर प्रति दस लाख में 432 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि सिक्किम में प्रति दस लाख में 375 लोग आत्महत्या करते हैं। विश्व में उम्रदराज लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं अधिक हैं जबकि इसके विपरीत भारतवर्ष में युवा लोगों के आत्महत्या करने की घटनाएं अधिक है । पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में आत्महत्या की दर अधिक पाई गई है । पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह 4 गुना अधिक है उनमें भी विवाहित महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं। दक्षिण भारत में लिंग भेद भाव कम होने के बावजूद भी वहां पर युवा महिलाओं द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक हैं। आत्महत्या पूरी दुनिया में मृत्यु का दसवां सबसे बड़ा कारण है
यदि किसी व्यक्ति में है ।

आत्महत्या के लक्षण:

निम्नलिखित लक्षण दिखाई पड़े तो तुरंत सावधानी बरतनी चाहिए –
?बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना
?निराशावादी सोच प्रकट करना यह कहना कि मैं जी कर क्या करूंगा
?अपने को समाप्त करने के तरीके ढूंढना
?अत्यधिक दोष भाव व्यक्त करना यह प्रदर्शित करना कि
मेरी समस्या का कोई समाधान नहीं है और ना ही दुनिया में कोई मेरी सहायता करने वाला है
?अचानक से व्यवहार में अत्यधिक परिवर्तन आना
?जोखिम भरा कार्य करना जैसे बहुत ज्यादा स्पीड से गाड़ी चलाना
?परिवार एवं मित्रों से दूर हो जाना
?नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना इत्यादि

यदि किसी व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण दिखाई पड़े तो उसे उससे तीन साधारण सा सवाल पूछ कर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति आत्महत्या करने वाला है या नहीं

1- आप आत्महत्या कब करेंगे?
यदि इस प्रश्न के जवाब मैं व्यक्ति ऐसा समय बताएं जिस समय उसके आस पास कोई ना हो तो उसके द्वारा आत्महत्या करने की संभावना अधिक होती है यदि वह कहे जब समय आएगा तब देखूंगा इसका मतलब है कि ऐसे व्यक्ति के द्वारा आत्महत्या करने की संभावना कम है ।

2- कैसे करेंगे ?
यदि व्यक्ति इस प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट साधनों का उल्लेख करें जैसे गोली मार लूंगा, फांसी लगा लूंगा, रेल से कट जाऊंगा या नदी में छलांग लगा दूंगा बोलता है और यह साधन आसानी से उपलब्ध है तो यह समझना चाहिए कि आत्महत्या की संभावना अधिक है।
3- आप आत्महत्या क्यों करना चाहते हैं ?
यदि इस प्रश्न के उत्तर में व्यक्ति जो कहानी बताएं यदि उसमें यह तीन भाव दिखाई पड़े निराशा, जीवन की मूल्य हीनता एवं सहायता का कोई आसरा न दिखना तो उसमें आत्महत्या का जोखिम बहुत अधिक होता है। यदि इनमें से कोई एक दिखाई पड़े तो थोड़ा जोखिम यदि दो एक साथ दिखाई पड़े तो उससे थोड़ा अधिक जोखिम और यदि तीनों एक साथ दिखाई पड़े तो अत्यधिक जोखिम की संभावना होती है।

आत्महत्या के जोखिम कारक:

मानसिक विकार
औषधियों का दुरुपयोग
जुए की लत
गंभीर बीमारी
गंभीर संक्रमण
आत्महत्या के साधनों की उपलब्धता
सामाजिक आर्थिक स्थिति आनुवंशिकता
मनोवैज्ञानिक कारक
सोशल मीडिया एवं मीडिया एवं पारिवारिक कलह

मनोवैज्ञानिक कारण:

निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक स्थितियां आत्महत्या के जोखिम को बढ़ावा देते हैं :
? निराशा का उच्चा स्तर
?अवसाद
?जीवन उपयोगी कार्यों में भी अरुचि होना
?क्षमताओं में कमी आना
?भावनाओं पर नियंत्रण की क्षमता में कमी
?सहायता हेतु साधनों की कमी ?जीवन को मूल्यहीन समझना ?अत्यधिक अकेलापन महसूस करना
?यौन शोषण
?पूरा प्रयास करने के बाद भी लगातार असफल होना
?प्रेम में असफल होना
?अतिविश्वासी व्यक्ति से धोखा खाना

किसी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार आने या उसके द्वारा आत्महत्या का प्रयास किए जाने में उपयुक्त कारकों में से एक कारक या एक साथ अनेक कारक भी योगदान दे सकते हैं, कारक जितने अधिक और अधिक गंभीर स्तर के होंगे उस व्यक्ति में आत्महत्या के उतने ही तीव्र विचार आएंगे तथा उसके द्वारा आत्महत्या का प्रयास किए जाने की संभावना उतनी अधिक होती है। बिना सही कारणों की पहचान एवं उसके गंभीरता का आकलन किए यदि आत्महत्या के निवारण के उपायों का प्रयोग किया गया तो उसके सफल होने की संभावना अत्यंत ही कम होती है ।

आत्महत्या निवारण के उपाय:

आत्महत्या निवारण के अनेको उपाय हैं जिन्हें समय पर प्रयोग किया जाए तो आत्महत्या के विचार , आत्महत्या के प्रयासों एवं आत्महत्या से होने वाले असामयिक मौतों में कमी लाई जा सकती है । आत्महत्या निवारण का सबसे सशक्त साधन जागरूकता है। बच्चों के मन में शुरू से ही यह भाव लाना चाहिए कि दुनिया में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका व्यक्ति समाधान नहीं कर सकता बस जरूरत होती है धैर्य पूर्वक ईमानदारी से प्रयास करने का कुछ प्रमुख निवारण के उपाय निम्नलिखित है:

औषधि उपचार :

दवाओं के प्रयोग से व्यक्ति में नकारात्मक विचारों में कमी लाई जा सकती है जिन व्यक्तियों में आत्महत्या के लक्षण दिखें उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए चिकित्सक उनके मानसिक रोग के अनुसार चिकित्सा प्रदान करते हैं जिससे आत्महत्या की घटनाओं में कमी आती है जिनको गंभीर शारीरिक बीमारी या गंभीर संक्रमण हो उन्हें भी समुचित चिकित्सा प्रदान करने से उनमें आशा का संचार होता है तथा उनमें आत्महत्या के विचारों में कमी आती है।

मनोचिकित्सा (Psychotherapy) :

आत्महत्या के विचारों में कमी लाने तथा आत्महत्या के प्रयासों में कमी लाने में प्रशिक्षित एवं अनुभवी परामर्शदाताओं एवं मनोवैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है यदि किसी भी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार आए तो उसे तुरंत मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता से संपर्क कर परामर्श लेना चाहिए ताकि आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक स्थितियों को समय रहते नियंत्रित किया जा सके । मनोवैज्ञानिक निम्न उपायों के द्वारा आत्महत्या के विचारों एवं आत्महत्या के प्रयासों को कम करने का कारगर प्रयास करता है –

परामर्श सेवाएं (Counselling):

परामर्श में मनोवैज्ञानिक आत्महत्या के कारणों का गहनता से पता लगा कर सेवार्थी को उन परिस्थितियों में समायोजन करने में सहायता प्रदान करता है । परामर्श के द्वारा मनोवैज्ञानिक सेवार्थी को उनकी शक्तियों से अवगत कराता है जिससे उनमें हौसला एवं आत्मबल बढ़ता है तथा उनके नकारात्मक विचारों में कमी आती है । आवश्यकता पड़ने पर मनोवैज्ञानिक सेवार्थी के परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को भी परामर्श सेवाएं प्रदान करते हैं ताकि वे सेवार्थी के मानसिक स्थिति को समझ सके तथा उन्हें मानसिक सहयोग प्रदान करें ताकि वे अपनी कठिनाइयों से बाहर आ सके।

संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (Cognitive behaviour therapy):

इसमें मनोवैज्ञानिक सेवार्थी को तनाव को एवं जीवन के तनावपूर्ण घटनाओं से निपटने के नए तरीके से सिखाता है। मनोवैज्ञानिक उनके घटनाओं/ परिस्थितियों के देखने समझने एवं उनके बारे में सोचने के ढंग में भी परिवर्तन करता है ताकि वह विषम परिस्थितियों में भी अपनी सोच को धनात्मक बनाए रखने में सक्षम हो सके । इसमें एक मानकीकृत तरीके का उपयोग किया जाता है और यह आत्महत्या के विचारों में एवं प्रयासों में कमी लाने का एक कारगर तरीका है ।

द्वंद्वात्मक व्यवहार चिकित्सा (Dialectical behaviour therapy):

इसमें नकारात्मक विचारों की पहचान करके उनका व्यवस्थापन किया जाता है। नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है तथा व्यक्ति के सामाजिक संबंधों में सुधार का प्रयास किया जाता है इससे व्यक्ति का तनाव कम होता है और उसके द्वारा आत्महत्या करने की संभावना को कम किया जा सकता है, इसमें मुख्य रूप से सेवार्थी के चार कौशलों का विकास करने का प्रयास किया जाता है सचेत रहना, तनाव सहने की क्षमता विकसित करना, अंतर वैयक्तिक संबंधों को बनाने एवं उसे मजबूत करने तथा अपने संवेगो पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है ।

परिवार का सहयोग :

आत्महत्या निवारण में परिवार के सदस्यों का सहयोग सबसे अधिक महत्व रखता है। परिवार को चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को जिसमें आत्महत्या करने के जोखिम कारक एवं लक्षण अधिक हो उन्हें कभी अकेला न छोड़ें , उन्हें वैचारिक सहयोग प्रदान करें उन्हें बेहतर समायोजन कौशल सीखने में सहयोग दें यदि उनका इलाज चल रहा हो तो चिकित्सा निर्देशों का अनुसरण करने में उनका सहयोग करें तथा उन्हें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करें कि किसी समस्या के होने पर हम सब आपके साथ हैं इससे उस व्यक्ति में आत्महत्या के विचारों में कमी आएगी।

आत्महत्या के निवारण के उपायों का उपयोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बदलता रहता है कोई विधि एक व्यक्ति के लिए कारगर हो सकता है तो वही विधि दूसरे व्यक्ति के लिए नाकाम भी हो सकता है , हो सकता है कि एक ही व्यक्ति के लिए एक साथ कई उपायों का भी प्रयोग करना पड़ सकता है । इन उपायों का प्रयोग जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना ही अधिक प्रभावशाली साबित होता है । सबसे बेहतर होता है कि जब व्यक्ति में पहली बार आत्महत्या का विचार है तभी वह प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेकर तनाव एवं विषम परिस्थितियों के साथ समायोजन कौशल का विकास कर ले ताकि आगे आत्महत्या की संभावना को कम किया जा सके ।

सारांश में यह कह सकते हैं कि भारत में जितनी तेजी से आत्महत्या की दर बढ़ रही है उसे देखते हुए उसे रोकने के लिए सरकार को एक राष्ट्रीय नीति बनाने की आवश्यकता है जिसमें सभी व्यक्तियों छात्रों सरकारी कर्मचारियों पुलिस कामकाजी महिलाओं एवं कामगार लोगों का नियमित मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए ताकि उनमें आत्महत्या के लक्षण दिखने पर उचित समय पर परामर्श मनोचिकित्सा एवं अन्य माध्यमों से उसे दूर किया जा सके ताकि वे आत्महत्या ना करें आत्महत्या के संसाधनों जैसे कीटनाशकों नींद की दवा जहार अस्त्र शस्त्र की उपलब्धता पर कठोरता से रोक लगाई जाए आत्महत्या के बढ़ावा देने वाले कार्य को जैसे नशा, जुआ एवं पर स्त्रीगमन पर रोक लगाया जाए । युवाओं को केवल किताबी ज्ञान न दिया जाए बल्कि उन्हें विषम परिस्थितियों में समायोजन करने का कौशल भी सिखाया जाए ताकि वे ताकि वे आत्महत्या के बारे में सोचने के बजाय उनका सामना करके समायोजन कर सके।

विश्व आत्महत्या निवारण दिवस (10 सितंबर) के अवसर पर विशेष लेख

डॉ मनोज कुमार तिवारी
वरिष्ठ परामर्शदाता
ए आर टी सेंटर,आई एम एस, बीएचयू, वाराणसी,(उ प्र)

 



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