झापा में मधेशी, सतार, राजवंशियों पर अत्याचार कब तक ?- त्रिभुवन सिंह
हिमालिनी अंक अगस्त , अगस्त 2019 |पूर्वी नेपाल का झापा जिला पहाड़ के गर्भ में बसता है । मेची नदी इसकी आंगन बारी है । प्राकृतिक संपदा से विभूषित यह जिला वन जंगल, तराई–पहाड़ से भरी हुई मनमोहक जगह है । सभी जिलों की तरह यहां भी सभी जाति–धर्म के लोग रहते हैं । पर यहां के आदिवासी संथाल, राजवंशी, मधेशी का दुःख बहुत ही दर्दनाक है । अपने ही देश में परायों की तरह रहते हैं । बिल्कुल असुरक्षित एवं सामाजिक अन्याय सहते हैं । अवहेलनापूर्ण जिन्दगी जीने के लिए विवश हैं । इनकी न कोई सरकार है, न कोई सहारा । इन लोगों को अपने ही जगह से विस्थापित किया जा रहा है । अपना घरबार, धनसम्पत्ति छोड़कर दिन प्रतिदिन भारत पलायन हो रहे हैं ।

मानवीय घटना, संवेदना और सरकारी उदासीनता को यहां पर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ । सतार एवं संथाल जो झापा के आदिवासी हैं, उन लोगों का प्रमुख बासस्थान हल्दीबारी, बनियानी, ग्वालडुवा, घैलडुवा, राजगढ, डाँगीबारी, जलथल, हेब्दुबासी, केचनकवल, सुरुंगा में है । इस इलाका में सतार या संथाल आदिवासी ७५ प्रतिशत भारत विस्थापित हो चुके हैं । २५ प्रतिशत जो झापा में हैं, वह लोग विभिन्न उत्पीड़न का शिकार हैं ।
सुनमुनी मेर्दी, डाँगीबारी, भद्रपुर–४, की सतार जाति की विवश महिला है, जो उस गांव में १० क्लास पास प्रथम महिला है । उनकी व्यथा कुछ अलग है । इनकी कई पीढी यहाँ रहती आई है । सम्भवतः लगभग ५ सौ साल से यहां रहती है, इनकी पीढी । उनके पास नेपाली नागरिकता नहीं है । पिता और पति की नेपाली नागरिकता है, पर टोली में बनाया हुआ है ।
इसीलिए जिला में कई बार दौरा लगाने के बाद भी नागरिकता नहीं मिली । नागरिकता ना होने के कारण वे खुद आगे पढ़ नहीं पाई । अब उनका बेटा है, जो वह भी नागरिकता विहीन है । वह विदेश जाकर घर की स्थिति आर्थिक तौर पर सुधारना चाहता है । पर जा नहीं पा रहा है । सनमुनी की नागरिकता ना होने के कारण वह बहुत मुसीबत झेल रही है । बहुत लोग आज संथाल÷सतार जाति के हैं, उनके पास नेपाली नागरिकता नहीं है । नेपाल के आदिवासी होते हुए भी राज्य की सभी सुविधा से वंचित है । झापा में रोजना भारत के आसाम, सिक्कम, दार्जिलिङ, मणिपुर से बहुत लोग आते हैं, यह पहाड़ी मूल के लोग है, जो ढाका टोपी लगाकर बड़ी आसानी से नेपाली नागरिकता लेते हैं । उसके लिए सिर्फ पैसा खर्च करने की जरुरत होती है ।
अगर सही से छानबीन किया जाए तो झापा में ४० प्रतिशत पहाड़ी भारतीय हैं, जिनकी नागरिकता नेपाली है । पर नेपाली आदिवासी को आज भी झापा में नेपाली नागरिकता के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है, परन्तु नहीं मिलता है । याद रहे ! झापा में फिरंगी खसवादी जो आसाम, सिक्कम, दार्जिलिङ, मणिपुर, नागाल्याण्ड से आकर और गिनीचुनी जमीनदार राजवंशी सतार÷संथाल, मधेशी, राजवंशियों आदिवासी लोगों को उसके अपने ही घर से विस्थापित कर रहा है । उन्हें डराया जाता है, धमकाया जाता है और वहां से विस्थापित होने पर मजबूर किया जाता है ।
कैसे विस्थापित कर रहा है झापा की गौरीजंग, खजुरगाछी–५ में मधेशियों को ?
गौरीगंज खजुरगाछी–५ में लगभग ३५ घर मधेशियों को गछेदार, महतो और देवी प्रसाद राजवंशी ने अपने चक्रव्यंूह में बहुत बुरी तरह से फंसा दिया है । खजुरगाछी–५ में जब निर्मित जनस्वास्थ्य कार्यालय के नाम पर विभिन्न प्रलोभन देकर वहां की मधेशियों का सम्पूर्ण जगह छीन लिया है । उस जगह पर इन मधेशियों की पुस्तों को जोतभोग है ।
श्याम महतो खजुरगाछी का बासिन्दा है । उनका पिता सानोदुखा महतो ने १ बिघा २ कठ्ठा जग्गा में मोहियानी हक प्राप्त किया था । मोहियानी हक अनुकूल जग्गा प्राप्ति के लिए वह जीवनभर संघर्ष करते रहे । पर अब उनका स्वर्गबास हो गया है । लेकिन अपनी जगह प्राप्त नहीं कर सके । अब सानोदुखा महतो का बेटा श्याम महतो उस हक के लिए लड़ रहा है । अभी उसका जमीन जनस्वास्थ्य कार्यालय के नाम पर चला गया है । यह सब जनस्वास्थ्य की कर्मचारी और नापी, मालपोत की कर्मचारी की सहयोग में हुआ है । जमीन के फिल्ड कागज में आज भी मोहियानी हक इनकी है । पर जनस्वास्थ्य की जमीन पुर्जा में मोही हक कटा दिया गया है । तत्कालीन जमीनदार भीम प्रसाद राजवंशी की ६ बिघा १६ कठ्ठा जमीन में १२ लोगों का मोहियानी हक है । मोहियानी हक प्राप्त करनेवाले सभी संघर्ष करते करते स्वर्गवास हो गए । अब मोही हक के लिए उसका बेटा, नाति, पनाति ५ दशक से संघर्ष कर रहा है । आगे श्याम महतो कहते हैं कि इस जगह के लिए पिता जी जीवन भर संघर्ष किए और चल बसे । मैं निरन्तर लड़ा, अब मेरा बेटा सरकारी अड्डा, दौड़ रहा है । यह समस्या सिर्फ श्याम महतो की ही नहीं है । इसमें बाबु प्रजापति, भागन महतो, रामफल महतो, चमरु महतो, सम्पत महतो, मुरली भट्ट, देवनारायण महतो, असर्फी महतो, सूर्जा महतो और सिंहेश्वर महतो भी है । इन सब का सारी जमीन जनस्वास्थ्य के नाम पर छीन ली गई है । अब वहां से इन सभी लोगों को घर खाली करने के लिए कहा गया है । कहां जाए वे बेबश लोग ? सभी स्थानीय सरकारी निकाय लाचार है ।
हरिशंकर मिश्र सर्नामती–६ झापा की बासिन्दा है । इनकी पुख्र्यौली घर रौतहट जिला में था । यह झापा की सर्नामती–६ में छमरामटी प्राइमरी स्कूल की प्रिन्सिपल है । अपने नौकरी की सिलसिला में रौतहट की सारी जमीन बेचकर वह झापा में चले गए । अभी उन को बिस्थापित करने के लिए वहां के पहाड़ी समुदाय समय–समय पर बहुत जोर दे रहे हैं । एक बार कोई बहाना बनाकर उनकी बहुत पिटाई की थी, जिससे परेशान होकर वह अपना प्रिन्सिपल पद से राजीनामा दे चुका है । वहां के पहाड़ी लोग उनके खेत खलियान में बाली नाली की क्षति करते हैं । उनका घर परिवार बालबच्चा सब असुरक्षित है । यहां के पहाड़ी समुदाय ने राजवंशियों पर झूठा चोरी मुद्दा, डकैती मुद्दा, बलात्कारी मुद्दा लगाकर विस्थापित किया है और उनका धन सम्पत्ति पर अपना कब्जा जमा लिया है । पर सरकार की तरफ से कोई कारवाही होती नहीं दिखाई दे रही है । जबकि इस गम्भीर मसले पर ध्यान देने की आवश्यकता है ।