ऐसे जनप्रतिनिधीः जिन्होंने वडाध्यक्ष पद छोड़कर शिक्षक की नौकरी शुरु की
सल्यान, १८ नवम्बर । आम लोगों की दृष्टिकोण में आज ‘राजनीति’ पेशा बन चुकी है, जहां नीति और नैतिकता को त्यागकर सब–कुछ किया जाता है । राजनीति करनेवाले लोगों की जीवन में करीब से देखनेवाले लोगों को लगता है कि विशेषतः आर्थिक लाभ और राज्यशक्ति की प्राप्ति के लिए राजनीति फायदेमन्द ‘पेशा’ है । लेकिन यहीं ऐसे जनप्रतिनिधि में पाए जाते हैं, जो राजनीतिक प्रभाव से आर्थिक लाभ लेना अपराध मानते हैं, ऐसे लोग राजनीति छोड़कर अन्य पेशा–व्यवसाय भी कर रहे हैं । हां, यहां एक आदर्श शिक्षक की बात हो रही है, जिन्होंने वडाध्यक्ष की पद छोड़कर शिक्षक की नौकरी शुरु की है ।
हां, समाचार सल्यान जिला का है । सिद्धकुमाख गांवपालिका–४ में नेपाली कांग्रेस की ओर से वडाध्यक्ष पद में निर्वाचित दिनेश कुमार बुढामगर वडाध्यक्ष पद छोड़कर शिक्षक की नौकरी करने लगे हैं । बुढामगर वि.सं. २०७४ में सम्पन्न स्थानीय चुनाव में वडाध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार बने थे । वडाध्यक्ष के लिए ही दूसरे प्रतिस्पर्धी रहे देवेन्द्र रोका और बुढामगर ने समान ३२१ मत प्राप्त किया । समान मत होने के कारण ‘गोला–प्रथा’ से बुढामगर वडाध्यक्ष चयन हो गए थे ।
लेकिन बुढामगर शिक्षक सेवा आयोग से ली गई प्राथमिक तह परीक्षा में शामील हो गए, वह परीक्षा में उत्तिर्ण भी हो गए । परीक्षा में उत्तिर्ण होने के बाद उन्होंने वडाध्यक्ष पद से इस्तिफा दिया और शिक्षक की नौकरी के लिए मुस्ताङ जिला की ओर चले गए । उन्होंने कहा है कि राजनीति कोई भी आर्थिक लाभ लेनेवाला पद नहीं है । उनका यह भी मानना है कि वडाध्यक्ष को कोई भी पावर और अधिकार नहीं है, इसमें रहकर जनता की सेवा सम्भव नहीं है, इसीलिए शिक्षक बनकर विद्यार्थियों को शिक्षित बनाना ही बेहत्तर है । उन्होंने यह भी कहा है कि अब उनकी जिम्मेदारी शैक्षिक गुणस्तर में सुधार लाना है, विद्यार्थियों की सेवा करनी है ।