कर चले हम फिता…
अपने दिलों दिमाग में मधेश का दर्द पाले डाँ महानन्द ठाकुर का देहावसान हो गया है। मधेश के बारे में हमेशा ही चिन्तित रहने वाले, मधेशी जनता को मुक्ति दिलाने के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने वाले, मधेश की खातिर लोगों को कुछ ना कुछ कर दिखाने के लिए प्रेरित करते रहने वाले डाँ ठाकुर के देहवसान से मधेश आन्दोलन में सतत सक्रिय रहने वालों के एक अध्याय का मानो अन्त हो गया हो। सादा जीवन और उच्च विचार के धनी महानन्द ठाकुर मधेश आन्दोलन के प्रणेता माने जाते थे। सद्भावना से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले डाँ ठाकुर ने मधेशी जनअधिकार फोरम को मधेशियों का साझा मंच बनाने में काफी सक्रिय भूमिका निभाया था।
अपने पूरे जीवन के दौरान महानन्द ठाकुर कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया था। और उनको इसकी कीमत भी चुकानी पडी हालांकि इस बात का उन्हें कोई भी दुख नहीं था। वो चाहते तो नेताओं की बात मानकर और अपने सिद्धांतो से समझौता कर आज सभासद और मंत्री ही नहीं मधेश के बडे नेता बन सकते थे। लेकिन उन्हें राजनीतिक पद सत्ता और पैसे ने कभी आकषिर्त नहीं किया। उनका एकमात्र ध्येय था मधेश को मुक्ति दिलाना। मधेशी जनता को कई मामलों में स्वतंत्र कराना। और इसके लिए आजीवन उनका अनवरत प्रयास जारी था।
राजनीतिक दल और राजनीतिज्ञों की सत्ता मोह और तिकडमबाजी ने डाँ ठाकुर को राजनीति से मोहभंग कर दिया। लेकिन मधेश और मधेशी जनता के दर्द के प्रति उनकी तडप ने उन्हें आम जनता से ज्यादा दिनों तक अलग नहीं रख पाई। आखिरकार उन्होंने मधेश में गैर राजनीतिक व्यक्तियों को मिलाकर एक स्वतंत्र मधेशी नागरिक समाज का गठन किया। इसी नागरिक समाज के द्वारा डाँ ठाकुर ने मधेशी जनता में अपने अधिकारों के प्रति जागरण और मधेशी दलों को सचेत करने का काम करते रहे। अपनी बिमारी के बावजूद डाँ ठाकुर ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर मधेशी पत्रकरों को सम्मानित करने का कार्यक्रम भी आयोजित किया था। उसी दिन उनकी तबीयत अचानक बिगड गई और उन्हें अस्पताल में दाखिल करना पडा था।
अपने जीवन के अन्तिम क्षणों में भी डाँ महानन्द ठाकुर के मन में मधेश और मधेशी जनता द्वारा भेगे जा रहे दुख और कष्ट के प्रति काफी क्षोभ हुआ करती थी। दिल्ली इलाज कराने जाने से पर्ूव डाँ ठाकुर ने मधेश के बारे में हमेशा कलम चलाने वाले पत्रकारों को अपने निवास पर पर बुलाया और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि वो मधेश और मधेशी जनता के प्रति अपने कलम को बन्द ना होने दें। उन्हें इस बात का गहरा आघात पहुंचा था कि जिस मधेश आन्दोलन की बदौलत मधेशी नेताओं को मधेश के बारे में कुछ करने का मौका मिला था उसको छोडकर सभी मधेशवादी दल और मधेशवादी नेता सिर्फसत्ता और कर्ुर्सर्ीीी लर्डाई में ही व्यस्त हैं। इसलिए डाँ ठाकुर ने साफ शब्दों में कहा कि मधेश और मधेशी जनता का भाग्य अब मधेशी पत्रकारों के ही हाथों में है। मधेश और मधेशी जनता का अधिकार दिलाने की जिम्मेवारी मधेशी पत्रकारों पर ही आ टिकी है।
डाँ महानन्द ठाकुर को यह अच्छी तरह मालूम था कि वो दिल्ली से वापस नहीं आ पाएंगे और यहां फिर किसी से नहीं मिल पाएंगे। दिल्ली जाने से एक दिन पर्ूव हर्ुइ उस मुलाकात के दौरान डाँ ठाकुर ने पत्रकारों से अन्तिम विदाई ली। उनकी आंखों में आंसू आ गए। उनसे मिलने गए पत्रकारों की आंख भी भर आई थी। उन्होंने पत्रकारों से वचन लिया कि मधेश और मधेशी जनता के हित में उनका कलम कभी नहीं रूकेगा। पत्रकारों ने उन्हें लम्बी आयु और शीघ्र स्वास्थ्य की कामना भी की। लेकिन अफसोस उनकी बात सच साबित हर्ुइ। शायद कहते हैं कि अन्तिम समय में लोगों को अपने भविष्य का अहसास हो जाता है। और यही हुआ भी। दिल्ली से खबर आई कि डाँ महानन्द ठाकुर अब हम सबको छोड कर जा चुके थे। मधेश और मधेशी जनता के प्रति उनके सपनों का साकार होना ही डाँ ठाकुर के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।