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इस्लामिक आतंकवाद के सिंकजे में विश्व : डॉ. श्वेता दीप्ति

आश्चर्य तो इस बात की है कि जो मुस्लिम इस्लामिक आतंकवाद शब्द का विरोध करते हैं, वो कभी यह नही कहते इन आतंकवादी संगठनों से कि, खुदा का नाम, कुरान की आयतें या बैनरों का वो प्रयोग ना करें इससे इस्लाम की बदनामी होती है



श्वेता दीप्ति, हिमालिनी, अंक  नवंबर  2019 | पूरी दुनिया में आतंकवाद नामक संक्रामक बीमारी के प्रसार के बाद से ही बार–बार आंतकवाद को इस्लाम से जोड़ा जाता रहा है । इस बात पर लंबे समय से बहस जारी रही है कि क्या आतंकवाद को किसी धर्म विशेष से या किसी राष्ट्र के साथ जोड़ना जायज है ? जब भी कोई हमला हो तो सबसे पहले वहां पर इस्लामिक आतंकवाद की बात आती है । यानी कि जिन्होंने भी हमला किया वो इस्लाम को मानने वाले थे । बेशक इसको मुस्लिम संगठन नकारते रहते हों, लेकिन असल में यह इस्लामिक आतंकवाद ही है ।

विभिन्न आतंकी हमलों में शामिल दहशतगर्द इसके सबूत हैं, कि यह इस्लामिक आतंकवाद ही है । अब इसको समझने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों इन दहशतगर्दों को इस्लामिक आंतकी कहा जाता है ? जब भी आतंकी हमलों की कोई वीडियो जारी होता है या फोटो सामने आते हैं तो, उसमें आतंकी खास तरह की वेशभूषा में होते हैं, हाथ में हथियार, बैग गोलियाँ बम और कई अन्य विस्फोटकों से भरा हुआ और वीडियो में एक नारा भी गूंजता है, अल्लाह हू अकबर । ऐसे हालात में स्वाभाविक है कि इसे इस्लामिक आतंकवाद का नाम दे दिया जाता है । और आश्चर्य तो इस बात की है कि जो मुस्लिम इस्लामिक आतंकवाद शब्द का विरोध करते हैं, वो कभी यह नही कहते इन आतंकवादी संगठनों से कि, खुदा का नाम, कुरान की आयतें या बैनरों का वो प्रयोग ना करें इससे इस्लाम की बदनामी होती है । ईश निन्दा के आरोप में फतवा जारी करने वाले मुल्ला या मौलवी भी इन संगठनों के खिलाफ कभी नहीं जाते ।

स्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है और इसके खात्मे के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना जरूरी है

 

मुस्लिम धर्म को मानने वाले अपने धर्म को बदनाम होने से बचाने के लिए क्यों नहीं आवाज उठाते हैं ? अगर सच में वह इस्लाम को मानते हैं तो वह आवाज क्यों नहीं उठाते हैं कि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए । ऐसे में जाहिर तौर पर आवाज न उठाना भी कहीं न कहीं इस्लामिक आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसा है ।

अगर सभी मुस्लिम चाहते हैं कि दुनिया से ऐसे दहशतगर्दों को मिटाया जाए तो उनको आवाज उठानी होगी । उनको एकजुट होकर आह्वान करना होगा कि इस्लाम को बदनाम करने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाए और उनपर कार्रवाई हो । अगर सही में ऐसा होता है तो माना जा सकता है कि इस्लामिक आतंकवाद नहीं है ।

इस सन्दर्भ में चर्चित मुस्लिम साहित्यकार सलमान रूश्दी ने भी कहा है कि “इस्लामी आतंकवाद भी इस्लाम का एक रूप है और इसके खात्मे के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना जरूरी है ।” भारतीय मूल के प्रसिद्ध ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी ने कहा कि— “इस्लाम का हिंसक उत्परिवर्तन भी इस्लाम है । जो पिछले १५(२० वर्षों के दौरान बहुत ही ताकतवर बनकर उभरा है ।” रुश्दी अपनी विचारधारा के लिए हमेशा से ही कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं और उनके उपन्यास ‘सैटनिक वर्सेज’ के लिए उनके खिलाफ फतवा जारी कर दिया गया था । ईरान के शासक अयतुल्ला खोमैनी ने रुश्दी का सिर काटकर लाने वालों को इनाम देने तक का ऐलान कर दिया था ।

लेकिन अपने बेबाक बयानों के लिए पहचाने वाले रुश्दी को अपनी बात कहने से कोई रोक नहीं पाया है । अपने यूट्यूब चैनल बिग थिंक के लिए बनाए गए वीडियो में रुश्दी ने इस्लामी आंतकवाद को लेकर अपने विचार बड़े ही बेबाक अंदाज में रखे हैं । आपने कहा कि जब तक कट्टरपंथी शिक्षा, बच्चों और किशोरों के जेहन में एक मजÞहबी सर्वश्रेष्ठता का झूठा दम्भ, हर गैर–मजहबी व्यक्ति को दुश्मन मानने की जिद, मजहब के नाम पर कत्लेआम को जन्नत जाने का मार्ग बताना और इस तरह की बेहूदगी बंद नहीं की जाएगी तो दुनिया जलती रहेगी ।
इसी महीने जघन्य हत्याकांडों के लिए कुख्यात विश्व का दुर्दान्त आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट का प्रमुख अबू बकर अल बगदादी का अंततः अंत हो गया । अमरीकी डेल्टा कमांडों ने अपने अद्भुत शौर्य व सूझबूझ का परिचय देते हुए बड़े रहस्यमयी ढंग से रविवार द्दठ⁄१०⁄२०१९ को सीरिया के इदलिब प्रांत के बारिशा गाँव में बगदादी को उसके सुरंग में बने हुए अति गोपनीय ठिकाने में ही स्वयं को विस्फोटकों से उड़ाने के लिए एक विशेष कुत्ते द्वारा ही विवश कर दिया । हजÞारों निर्दोषों को भयानक मौत देने वाला दुनिया का सबसे बड़ा व भयावह आतंकी संगठन के मुखिया को भी दर्दनाक मौत ने चीखने को विवश कर दिया । इस अभियान में बगदादी की दो पत्नियां व तीन बच्चों सहित उसके कुछ वरिष्ठ साथी भी ढेर हुए । सामान्यतः वैश्विक समाज इसको इस्लामिक आतंकवाद के अंत की आहट समझ रहा है ।

आतंकवाद की जनक इस्लाम की शिक्षाएं ही बगदादी जैसे खौफनाक दंरिदों की फसल उगाती है । बगदादी इस्लामिक दर्शन शास्त्र का विद्वान था और वह उसमें पीएचडी भी था । उसके द्वारा किये व कराये गये अनेक प्रकार के घिनौने मानवीय अत्याचार इस्लामी शिक्षाओं का ही दुष्परिणाम माने जा सकते हैं ।

इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने न जाने कितने प्रकार से निर्दोष सभ्य समाज के लोगों को तड़पा–तड़पा कर काटा, जलाया व पिंजरे में बांध कर करंट लगाया व पानी में डुबो–डुबों के मारा । उनके अनुसार काफिर माने जाने वाले समाज की लड़कियों, युवतियों व महिलाओं के गले में कुत्ते के समान पट्टा बांध कर उनकी आयु व सुंदरता के अनुसार मूल्य निर्धारित करके सीरिया आदि की मंडियों में बेचा गया । सैंकड़ों ऐसी लड़कियां महीनों व वर्षो इनकी हवस का शिकार बनती रहीं । उनके द्वारा उपन्न अधिकांश संतानें अब भी भटक रही है ।
बगदादी के कुछ समर्थकों व सहयोगियों ने सोशल मीडिया के माध्यमों से यूरोपीय देशों व भारत आदि के हजÞारों युवकों व युवतियों को भ्रमित करके इस्लाम के प्रति आकर्षित करके उनको मुसलमान बना कर आतंकवादी घटनाओं से भी जोड़ कर उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया ।

वर्ष २०१५ के समाचारों से ज्ञात हुआ था कि यूरोप, अमरीका व आस्ट्रेलिया आदि के आधुनिक वातावरण में पले–बढ़े आधुनिक शिक्षा प्राप्त हजारों युवा इस्लामिक स्टेट के नाम पर मरने–मारने को तैयार होते रहे ।

भारत के कर्नाटक, महाराष्ट्र तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल व उत्तर प्रदेश से भी सैकड़ों युवाओं के इस्लामिक स्टेट से जुड़ने के समाचार आये थे । ऐसे युवाओं के वहां जाने पर पासपोर्ट जब्त कर लिए जाते थे और उनको डराया व समझाया जाता था कि जिहाद के नाम पर संकोच (बचने) करने से इस्लाम जो एक ‘जिन्न’ की तरह होता है, उनका उम्र भर पीछा नहीं छोड़ेगा ।

तीन–चार वर्ष पूर्व के समाचार पत्रों से यह भी ज्ञात हुआ कि इस्लामिक स्टेट सैकडों ऑनलाइन व द्धट००ण् से अधिक ट्विटरों के माध्यमों से मुस्लिम व धर्मान्तरण करके मुस्लिम बने युवाओं को “हिजरा” करने के लिए उकसाता रहा । अलकÞायदा का सहसंस्थापक और आधुनिक जिहादी आंदोलन का पितामह अब्दुल्ला आजम के अनुसार “भय की भूमि से सुरक्षा की भूमि की ओर जाना हिजरा कहलाता है ।” लेकिन यह सोचने का विषय है कि इस्लाम में ऐसा क्या है कि इस्लाम ग्रहण करने वाले अपने जीवनयापन से ऊपर उठ कर केवल अविश्वासियों व गैर मुस्लिमों के प्रति अत्याचारी ही नहीं बन जाते है बल्कि अपने पूर्व धर्म के सगे–सम्बन्धियों व पूर्वजों के भी शत्रु बन जाते हैं ।
इस्लामिक स्टेट व अन्य आतंकी संगठन अगर जिहादी विचारधारा से आतंक फैला रही है तो इसका यह अर्थ नहीं कि सभ्य समाज उस विचारधारा का विरोध न करें और उसे सेक्युलर, सौहार्द व सहिष्णुता के नाम पर पनपने दे ।

वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद से जूझता हुआ विश्व का बहुसंख्यक सभ्य समाज इससे मुक्ति चाहता है । किसी भी देश के बहुसंख्यकों के हितों की रक्षा होने से ही लोकतांत्रिक राष्ट्र सशक्त होते है । आतंकवाद विरोधी राजनीति को राष्ट्रनीति का मुख्य ध्येय बनाने से सभी का कल्याण होगा । इस्लामिक आतंकवाद को जड़ से मिटाने के लिए साहसिक निर्णय लेने की आवश्यकता है । लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामिक जिहाद से भरी शिक्षाओं का विरोध नहीं होगा लादेन, बगदादी, हाफिज व मसूद अजहर जैसे दुर्दान्त आतंकी पैदा होते रहेंगे ।

आतंकियों का एक ही मकसद है, पूरी दुनिया में इस्लाम और अशांति की हुकूमत लाना । आतंकियों का कोई धर्म नहीं होता है, परन्तु मजहब जरुर होता है । यह मजहब का मुखौटा पहने राजनीतिक व्यभिचारी हैं ।

जिहाद के नाम पर युवाओं को बरगलाना और आतंक की राह पर धकेलना इस्लामिक आतंक का एक हिस्सा है । जिहाद एक अरबी शब्द है जिसका शाब्दिक मतलब विशेष रूप से प्रशंसनीय उद्देश्य के साथ प्रयास करना या संघर्ष करना है । इसके इस्लामी संदर्भ में अर्थ के बहुत से रंग हैं, जैसे कि किसी के बुराई झुकाव के खिलाफ संघर्ष, अविश्वासियों को बदलने का प्रयास, या समाज के नैतिक भरोसे की ओर से प्रयास आदि । इस्लामिक विद्वानों ने आमतौर पर रक्षात्मक युद्ध के साथ सैन्य जिहाद को समानता प्रदान की है । सूफी और धार्मिक मंडल में, आध्यात्मिक और नैतिक जिहाद को पारंपरिक रूप से अधिक जिहाद के नाम पर बल दिया गया है । इस शब्द ने आतंकवादी समूहों द्वारा अपने उपयोग के द्वारा हाल के दशकों में अतिरिक्त ध्यान आकर्षित किया है ।

इसके साथ ही इस्लामी राज्य के नाम पर भी आतंक को ही जमीन दी जा रही है । इस्लामी राज्य जून २०१४ में निर्मित एक अमान्य राज्य तथा इराक एवं सीरिया में सक्रिय जिहादी सुन्नी सैन्य समूह है । अरबी भाषा में इस संगठन का नाम है ‘अल दौलतुल इस्लामिया फिल इराक वल शाम ।’ इसका हिन्दी अर्थ है– ‘इराक एवं शाम का इस्लामी राज्य।’ शाम सीरिया का प्राचीन नाम है ।

इस संगठन के कई पूर्व नाम हैं जैसे आईएसआईएस अर्थात् ‘इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया’, आईएसआईएल, दाइश आदि । आईएसआईएस नाम से इस संगठन का गठन अप्रैल २०१३ में हुआ । इब्राहिम अव्वद अल–बद्री उर्फ अबु बक्र अल–बगदादी इसका मुखिया था । शुरू में अल कायदा ने इसका हर तरह से समर्थन किया किन्तु बाद में अल कायदा इस संगठन से अलग हो गया । यह अल कायदा से भी अधिक मजबूत और क्रुर संगठन हैं । यह दुनिया का सबसे अमीर आतंकी संगठन है ।
वहीं अलकÞायदा एक बहुराष्ट्रीय उग्रवादी सुन्नी इस्लामवादी संगठन है जिसकी स्थापना ओसामा बिन लादेन, अब्दुल्लाह आजÞम और १९८० के दशक में अफÞगÞानिस्तान पर सोवियतों के आक्रमण के विरोध करने वाले कुछ अन्य अरब स्वयंसेवकों द्वारा १९८८ में किया गया था ।

यह इस्लामी कट्टरपंथी सलाफÞी जिहादवादियों का जालतंत्र है । संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), यूरोपीय संघ, संयुक्त राज्य अमरीका, यूनाइटेड किंगडम, भारत, रूस और कई अन्य देशों द्वारा यह संगठन एक आतंकवादी समूह कÞरार दिया गया है ।

इसी तरह हिजÞ्बुल्लाह लेबनान का एक शिया राजनीतिक और अद्र्धधसैनिक संगठन है । हिजबुल्लाह लेबनान के नागरिक युद्ध के दौरान स्थापित किया गया था । हिजबुल्लाह का नेता हसन नसरूल्लाह है ।

आतंकवादी संगठनों में एक चर्चित संगठन है, जम्मू कश्मीर लिबरेशन फÞ्रंट (जेकेएलएफÞ) । यह जम्मू और कश्मीर का अलगाववादी संगठन है । जिसकी स्थापना अमानुल्लाह खÞान और मकÞबूल भट्ट ने किया है । यह मूलतः प्लेबिसाइट फÞ्रंत की मिलिटेंट शाखा थी लेकिन २९ मई, १९७७ को बर्मिंघम, इंग्लिस्तान में यह जम्मू कश्मीर लिबरेशन फÞ्रंट में परिवर्तित हो गया । उस समय से १९९४ तक यह एक सक्रिय मिलिटेंत संगठन रहा है । यूनाइटेड किंगडम, यूरोप, संयुक्त राज्य और मध्य पूर्व के कई नगरों में इस संगठन की शाखाएँ मौजूद हैं । १९८२ में पाक अधिकृत कश्मीर के आजÞाद कश्मीर क्षेत्र में इसकी एक शाखा स्थापित हुई थी, जबकि १९८७ में भारत की कश्मीर घाटी में इसकी एक शाखा स्थापित हुई । जेकेएलएफÞ के केवल मुसलमान सदस्य हैं । इसका अंतिम लक्ष्य एक स्वतंत्र कश्मीर है जो दोनों भारत और पाकिस्तान से मुक्त है ।

पाकिस्तान में स्थित जैश–ए–मुहम्मद एक जिहादी इस्लामी उग्रवादी संगठन है, जिसका एक ध्येय भारत से कश्मीर को अलग करना है हालांकि यह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल समझे जाती हैं । इसकी स्थापना मसूद अजÞहर नामक पाकिस्तानी पंजाबी नेता ने मार्च २००० में की थी जिसे वैश्विक स्तर पर आतंकवादी घोषित किया गया है । यह आज भी पाकिस्तान से अपने संगठन को चला रहा है । इस पर प्रतिबंध के पाकिस्तान के दावे खोखले साबित हुए हैं । इसे भारत में हुए कई आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है । कथित तौर पर जनवरी २००२ में इसे पाकिस्तान की सरकार ने भी प्रतिबंधित कर दिया गया था । इसके बाद जैश–ए–मुहम्मद ने अपना नाम बदलकर ‘खÞुद्दाम उल–इस्लाम’ कर दिया । भारत के सुरक्षा विषयों के समीक्षक बी रामन ने इसे एक ‘मुख्य आतंकवादी संगठन’ बताया है और यह भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा जारी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल है ।

आतंकवाद और पाकिस्तान
आतंकवाद के इतिहास को याद करें तो यह कह सकते हैं कि आतंकवाद की जड़ कहीं ना कहीं पाकिस्तान में फैली हुई है । इस बात से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी इत्तफाक रखते हैं । हाल ही में अमेरिका में साँसदों को सम्बोधित करते हुए इमरान खान ने माना कि, पाकिस्तान में तीस से चालीस हजार आतंकवादी मौजूद हैं जो वर्तमान में अफगानिस्तान और पाक अधिकृत काश्मीर में आतंकी ट्रेनिंग ले रहे हैं । इसके साथ ही उन्होंने माना कि पाकिस्तान में करीब चालीस आतंकी संगठन सक्रिय हैं जो पाकिस्तानी सीमाओं के भीतर काम कर रहे हैं । उन्होंने पिछली सरकारों को कटघरे में खड़ा करते हुए अपनी सरकार की तारीफ की और कहा कि वो आतंकवाद के खिलाफ मजबूती से लड़ रहे हैं । यह और बात है कि पाकिस्तान चाहे जितने भी दावे इस मामले में कर ले पर हकीकी तौर पर वो कोई कड़ा कदम नहीं उठाएगा । यह इतिहास बताता है । अगर सरकार को हकीकत पता है तो वह कारवाही करती ना कि किसी और राष्ट्र में जाकर आतंकी संगठनों की गिनती गिनवाती । यही वजह है कि आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान आज विश्व में ही हाशिए पर है । पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी समूहों पर लगाम कसने की दिशा में पर्याप्त कारवाही नहीं करने के कारण ही अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली सुरक्षा मदद में कटौती कर दी । आतंकवाद के कारण ही पाकिस्तान को भारत से हमेशा से शत्रुता का रिश्ता रहा है । और आज यह तिक्तता बढती ही जा रही है ।

हाल ही में एशिया पैसिफिक ग्रूप (ब्एन्) के फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने कहा कि पाकिस्तान, यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का प्रस्ताव हाफिज सईद, वैश्विक आतंकवादियों और आतंकवादी समूह जैसे कि जैश–ए–मोहम्मद, लश्कर–ए–तैयबा के खिलाफ लागू करने में विफल रहा है ।

गौरतलब है कि पाकिस्तान के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा राष्ट्र के विकास हित में नहीं बल्कि सैन्य बल पर खर्च होता है । वहाँ के सेनाधिकारी सर्वोपरि हैं, जहाँ सरकार की भी नहीं चलती । इन सबकी वजह से आज पाकिस्तान आर्थिक रूप से बदहाल हो चुका है । प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देता आया है । इस दिशा में एक और कदम उठाया जा रहा है धर्म के नाम पर । मुसलमानों की धार्मिक आस्था और कट्टरता के प्रवृति का फायदा उठाने के लिए पाकिस्तान दुनिया भर के मुसलमानों को एवं खास तौर पर भारतीय मुसलमानों को धर्म के नाम पर यह भ्रम फैला कर गुमराह कर रहा है की “इस्लाम के सुन्दर भविष्य और दुनिया भर के मुसलमानों की सुरक्षा और भविष्य के लिए अल्लाह ने पाकिस्तान को बनाया, इस बारे में लम्बे समय से कई धर्मगुरुओं ने भविष्यवाणी की थी और इसके सबूत उनकी तकरीरों में मिलते है’
इस बात को मुसलमानों के दिमाग में भरने के लिए पाकिस्तान कई काल्पनिक और फर्जी धार्मिक तकरीरे सोशल मीडिया, अपने समर्थित धर्मगुरुओं के माध्यम से प्रचार और प्रसार कर रहा है । पाकिस्तान फिर से खलीफा साम्राज्य के सपने दिखाकर मुसलमानों को भ्रमित कर लामबंद करने का प्रयास कर रहा है ! अर्थात वह विश्व भर के मुसलमानों का मुखिया बनना चाह रहा है । इस बात के लिए वह किसी भी राह को चुन सकता है । हाल ही में कई ऐसे विडियो सामने आए जिनमें स्कूली बच्चों का प्रयोग किया गया और जिनके दिमाग में गोली और बारुद की बातें भरी जा रही हैं ।
आज जहाँ विश्व आतंकवाद से मुक्त होना चाहता है वहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री खुले तौर पर (आतंकवाद शब्द का भले ही प्रयोग ना करें) परमाणु युद्ध की धमकी देने से नहीं चूकते । विकास की राह पर न चल युद्ध की राह को चुनना पाकिस्तान बेहतर समझता है । जिसका खामियाजा वहाँ की जनता आज भुगत रही है ।



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2 thoughts on “इस्लामिक आतंकवाद के सिंकजे में विश्व : डॉ. श्वेता दीप्ति

  1. इस्लामिक आतंकवाद का लेख बड़ी निडरता के साथ, लिखा गया है, उस मे इस्लामिक देश की क्या भूमिका रही है उसका भी जिक्र किया है, पाकिस्तान उसे धर्म गुरु ओ के माध्यम से बढावा दे रहे हैं उसकी भी जानकारी दी गई है, श्वेता दीप्ति जी को हार्दिक बधाई

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