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  मधेशी जनता आज से ६० साल पहले भी नागरिकता के लिए लड़ते थे और आज भी नागरिकता के लिए अपना लहु बहा रहे




सीके को अगर थोड़ी छूट दे दी जाती है तो स्थायी सत्ता के खिलाडि़यो को सिके कार्ड फेंक कर भय दिखाया जा सकता है और इस अधार पर कहा जा सकता है कि मधेश को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है । madhesh-ek-prayogshala
रणधीर चौधरी
नेपाल का हरेक राजनीतिक दल मधेश को एक राजनीतिक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग करता आ रहा है । नेपाल के प्रथम निर्वाचित प्रधानमन्त्री हों या गणतन्त्र के योद्घा माओवादी । सबने मधेश को एक प्रयोगशाला के रूप में उपयोग किया है । मधेशियों ने जो राजनीतिक उपलब्धि हासिल की है वह तो मधेशियों के बलिदान की उपज है ।

इतिहास के ज्यादा पुराने पन्ने को पलटने से अच्छा होगा कि नवनिर्मित इतिहास के पन्नों पर एक नजर डालें । नेपाल के संविधान में जब से संघीयता का बीजारोपण हुआ तभी से मधेश में नए नए प्रयोग शुरु हैं । वो चाहे क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का उदय हो या फिर स्थायी सत्ता के द्वारा किया गया प्रत्यारोपन कि मधेश में क्षेत्रीय राजनीतिक दलो का उदय दक्षिण के इशारें पर हुआ है ।

खास कर तराई मधेश लोकतान्त्रिक पार्टी का जन्म का कारक तो भारत ही है । तभी से मधेशी दलाें को भारत के इशारें पर चलने वाले दल के रूप में चित्रित किया जा रहा है । नेपाली मीडिया का इसमें अहम योगदान है । परंतु नेपाली जनता को अच्छी तरह से मालुम है कि इस देश का हरेक निकाय कहां कहां से संचालित और प्रभावित है ।

नेपाल के नश्लीय शासक संविधान में भी अपनी नश्लीय चिन्तन का लेप लगाने में सफल हुए और संविधान को विश्व का उत्कृष्ट संविधान बताने और साबित करने में लगे थे । तब नेपाल के सीमांतकृत सड़क पर दहाड़ने में व्यस्त थे । या कहें तो संविधान के बिरुद्घ में आन्दोलन कर रहे थे, उस आन्दोलन को भी भारत के द्वारा कराया गया आन्दोलन की संज्ञा देकर आन्दोलन को निस्तेज करने के प्रयास में लगे रहे । उनको ऐसा लग रहा था कि अगर इस आन्दोलन को भारत से जोड़ दिया जाय तो अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में संविधान के पक्ष में जनमत जमा किया जा सकता है । गौरतलव है कि दक्षिण का भी अपना कुछ न कुछ स्वार्थ हो सकता है संविधान को लेकर और उधर से भी मधेश में चल रहे ऐतिहासिक आन्दोलन को आधार बना कर नेपाल सरकार के चाकरबाजाें के साथ अनेकन संवाद वा कहें तो ननपेपर एग्रीमेन्ट किया जा रहा था । इन सभी चीजों को देखा जाय तो कहा जा सकता है कि मधेश एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग होता आ रहा है । बातें बहुत हंै परंतु अब चर्चा करे वर्तमान में देखे गये कुछ राजनीतिक गतिविधियों की ।

माघ ५ अर्थात् मधेश में बलिदानी दिवस । प्रथम मधेश आन्दोलन के दौरान सिरहा जिले के लहान में जब रमेश महतो की हत्या की गई तो उसी दिन को याद करते हुए मधेशी जनता उस दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाते आ रहे हंै, एक दशक से ।

इस बार के बलिदानी दिवस को, मधेशी दलाें से अधिक भव्यता के साथ स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन (एम) ने मनाया । लहान में हजाराें की संख्या में जनता जमा हो कर गठबन्धन के कार्यक्रम को सफल कराया था । जिसको लेकर जोरदार टिप्पणी और चर्चा भी हुई थी और अभी भी हो रही है । नेपालगंज के रासस ने तो परोक्ष रूप में विज्ञप्ति भी जारी किया था कि राष्ट्र की अखण्डता के विरुद्घ किसी भी तरीके का समाचार सम्प्रेषन ना करे । खैर, हम बात करें लहान में एम के कार्यक्रम के बारे में । सौ लोगों को इकठ्ठा होने से रोक लगाने वाले प्रशासन ने कैसे हजाराें की संख्या में एकजुट होने दिया स्वराजियों को ? एम के कार्यकर्ताओं की मानें तो वे लोग एक महीने पहले से हीे लहान मिशन की तैयारी में लगे हुए थे । यह सभी जानते हैं कि सिर्फ एम के संयोजक सीके राउत को ही नहीं बल्कि संगठन से आबद्ध हरेक उच्च कार्यकर्ताओ को भी राज्य ने घोषित÷अघोषित रूप से नजरबंद रखती आ रही थी, तो ऐसे में कैसे लहान की सभा का आयोजन सम्भव हो पाया ? सतही बिश्लेषण से साफ पता चलता है कि नेपाली सत्ता ने जानबूझ कर एम को ढिलाई दी । नेपाली कांग्रेस के कुछ नेता हैं जिनको संविधान में संशोधन करबाना उनके इगो पर पड़ने लगा है । नेपाल की सुरक्षा की बागडोर उन्हीं के हाथ में है । तो सीके को अगर थोड़ी छूट दे दी जाती है तो स्थायी सत्ता के खिलाडि़यो को सिके कार्ड फेंक कर भय दिखाया जा सकता है और इस अधार पर कहा जा सकता है कि मधेश को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है ।

कहानी का अन्त यहीं नहीं होता है । सीके को प्रयोग करने की बात नेपाल से बाहर भी दिखती है । नेपाल में अवस्थित वैदेशिक कुटनीतिक आयोग भी इसे गम्भीरता से ले रहे हंै । परंतु खुल कर बोलने की हिम्मत नहीं करते । गौरतलब है कि विश्व जगत अभी अपना ध्यान आर्थिक राजनीति पर केन्द्रित किए हुए है । संबेदनशील होकर हम अगर सोचते हंै तो साफ पता चलता है कि विश्व जगत अभी एशिया वर्सेस अन्य महाद्विपों में बंट चुका है । वर्तमान अवस्था में भी समग्र एशिया का आर्थिक ग्राफ अन्य की तुलना में आगे बढ़ रहा है । आने वाले दिनों में भी ग्राफ एशिया का ही आगे रहेगा ऐसा माना जाता है । तो विश्व समुदाय का मानना है कि अगर एशिया एथनिक द्वन्द्ध में फंस जाता है तो यहां की आर्थिक प्रगति की रफ्तार कम हो सकती है । इस विषय पर विस्तृत जानकारी के लिए पाठकों से मेरा अनुरोध है कि सेमुअल पि हन्टिंगसन द्वारा लिखित किताब “क्ल्यास ऑफ एथनिसिटी” अध्ययन करें ।

तो ऐसे में यूरोपियन यूनियन, अमेरिका आदि के कुटनीतिक नियोग ये सब सिके की गतिविधियों को बारिकी से देखना चाहते हंै । इनकी सकारात्मक पहलकदमी होगी इसमें ऐसा नहीं माने अभी तो बेहतर । उसी तरह नेपाल के अहम और नजदीकी माने जाने वाले पड़ोसी मित्र राष्ट्र भी सिके को अपना कुटनीतिक कार्ड के रूप में प्रयोग करना चाहता है, इस सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता है ।

इन सारे तथ्यों एवं विश्लेषण के बाबजुद एम अर्थात् सीके ने जो आवाज उठायी है वह कितना जायज और नाजायज है वो तो आने वाला वक्त ही फैसला करेगा । परंतु सीके का हरेक तर्क अधिकांश मधेशी वा कहें तो सीमांतकृत लोगों के दिमाग में जगह लेने लगी है । मध्यमार्गी राजनीति पथ पर चल कर राजनीति कर रहे मधेशी मोर्चा हो या कथित राष्ट्रीय पार्टी । इन सभी की सैद्घान्तिक बात नहीं छू पा रही है लोगों को । माघ ५ गते अर्थात मधेश में बलिदानी दिवस पर दिए गए भाषण सीके के भाषण को इन्टरनेट पर सुना था । उस भाषण की एक पंक्ति– उन्होन्ने कहा, “मधेशी जनता आज से ६० साल पहले भी नागरिकता के लिए लड़ते थे और आज भी नागरिकता के लिए अपना लहु बहा रहे हंै” । क्या ये सच्चाई नहीं है ? यह अलग बात है कि पहले से सहज जरुर हुआ है नागरिकता प्राप्त करना । परंतु आज भी जब मधेशी मोर्चा और नेपाल के शासक के बीच संवैधानिक लड़ाइ होती है, तो वार्ता के टेबल पर नागरिकता का मुद्दा अग्रपंक्ति में ही होता है । अर्थात नागरिकता की लड़ाई अभी भी जिन्दा है । ऐसी सच्चाई जब सीके जनता के बीच में रखते हैं तो लोग अन्य नेताओं की सैद्घान्तिक बातो को अपने जैहन में प्रवेश से रोक लगाते है । मैं ये नहीं कहना चाहता कि सीके कहीं से परिचालित हैं या कुछ और क्योंकि मैने इस पर कोई अनुसन्धान नहीं किया है । परंतु नेपाली शासक ने ही सीके को विखन्डन की राजनीति करने का भरपूर आधार दे रखा है ।

देश विचित्र परिस्थिति से गुजर रहा है । अनेको प्रयोग किए जा रहे हंै नेपाल में नेपाली सत्ता के द्वारा मधेश को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया जा रहा है । नेपाली सत्ता जो कि इस देश की अखण्डता को नजरअंदाज करके बेठै हुए हैं । उनको सजग होना जरुरी है । मधेश में रहे उर्जावान लोगों का उपयोग करना चाहिये न की उनका प्रयोग । वार्ता करनी चाहिये मधेशी जनता से । सीके तर्क को तर्कपूर्ण तरीके से गलत साबित कर के व्यवहार में लागू कर दिखाना चाहिये । यही एक विकल्प है देश और मधेश को सही राह देने का ।



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