अपराध का फैलता मकडजाल:वीरेन्द्र के.एम.
मधेश का कोई ऐसा जिला नहीं बचा जो कि अपराधी गतिविधियों व क्रियाकलापों से अछूता रहे । हत्या, हिंसा, अपरहण, फिरौती, जबरन वसूली, धमकी, चन्दा आतंक के साए में मधेश का हर कोई अपनी जिंदगी गुजारने को विवश है । आए दिन समाचार पत्रों में ऐसी ही खबरें छपती रहती है । संविधान सभा चुनाव के बाद पिछले चन्द महिनों मे सशस्त्र समूह के नाम पर हो या संगठित अपराध समूह के नाम पर मधेश के जिलों में बच्चों से लेकर बुजर्ुग तक, छात्रों से लेकर अध्यापक तक, व्यापारियों से लेकर कर्मचारियों तक राजनीतिक कार्यकर्ताओं से लेकर पुलिस अधिकारियों तक की हत्या की जा चुकी है । कब, किसे, कहाँ किस जगह, क्यों और किस कारण से गोली मारकर हत्या कर दी जाएगी यह किसी को भी मालूम नहीं होता । हत्या के अलावा अपहरण की बढती वारदातें भी एक उद्योग की तरह फलता फूलता नजर आ रहा है । सशस्त्र समूह की आडÞ में आपराधिक चरित्र के व्यक्तियों का आतंक मधेश के जिलों में बहुत तेजी से फैलता जा रहा है । मधेश को स्वात्तता दिलाने से लेकर मधेश को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दिलाने के लिए राजनीतिक एजेण्डे के साथ बढÞ रहे तर्राई के भूमिगत संगठन में इन दिनों अपराधियों का अखाडÞा बन गया है । अपराधियों ने या तो सशस्त्र भूमिगत संगठनों पर अपना वर्चस्व बना लिया है या फिर उसे अपनी मकडÞजाल में कैद कर लिया है । इन हरकतों की वजह से मधेश आन्दोलन व मधेश मुद्दा दोनों ही बदनाम हो रहे हैं । मधेश में बढÞ रहे आपराधिक क्रियाकलापों व हिंसात्मक कार्रवाही को रोकने में सुरक्षा बल भी नाकाम साबित हर्ुइ है । प्रचण्ड सरकार के गृहमंत्री वामदेव गौतम हो या फिर माधव नेपाल सरकार के गृहमंत्री भीम रावल दोनों ने तर्राई की सुरक्षा व्यवस्था सुदृढÞ करने के लिए विशेष सुरक्षा योजना लाई लेकिन परिणाम हमेशा शून्य ही रहा । विशेष सुरक्षा योजना को लागू करना तो दूर कई हत्या, अपहरण, लूट, चन्दा आतंक जबरन वसूली के आरोपों के घेरे में पुलिस अधिकारी से लेकर जवान तक आए । इनमें कुछ की गिरफ्तारी भी हर्ुइ तो कुछ अभी भी बाहर हैं । मधेश के जिलों में तैनात सुरक्षा बलों पर हमेशा से आपराधिक समूहों को शह देने का आरोप लगता रहा है । राष्ट्रीय अनुसंधान विभाग द्वारा गृह मंत्रालय को सौंपे गए एक गोपनीय रिपोर्ट पर यकीन करे तो तर्राई में चल रहे कई भूमिगत सशस्त्र संगठन पुलिस के कुछ बडे अधिकारियों द्वारा ही संचालित किया जा रहा है । ऐसे में आम जनता का भरोसा पुलिस पर से उठना लाजिमी है । हाँ कुछ पुलिस अधिकारियों में इमान्दारिता अभी भी बची है जिनकी वजह से लोग थोडी राहत की साँस ले पा रहे हैं । जनकपुर के डिएसपी के रूप में कार्यरत रूपसागर न्यौपाने पर खुलेआम आपराधिक क्रियाकलापों के लिए फर्जी सशस्त्र संगठन चलाने का आरोप धनुषा में ही एसपी रहे र्सर्वेन्द्र खनाल ने र्सार्वजनिक रूप से लगाई । गत जेठ महिने में जनकपुर की हालत यह हो गई थी वहाँ एक हफ्ते में पाँच लोगों की हत्या कर दी गई थी । इसी तरह सिरहा में भी पिछले दो महिनों में सशस्त्र समूह द्वारा ४ लोगों की हत्या की जा चुकी है । पुलिस के फेक इंकाउण्टर में भी ५ लोगों के मारे जाने का रिकार्ड है । सिरहा में अपहरण की घटना में भी काफी वृद्धि हर्ुइ है । अपहरणकारी बिना सोचे समझे ही बच्चों और स्कूली छात्रों को टार्गेट बना रहे है । अपहृत बच्चों के माता पिता की हैसियत हो या नहीं बिना यह देखे ही अपहरण कर रहे है । अपहरण के अधिकांश मामलों में पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लग पाता है । या कहे कि पुलिस मौन रहती है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । घर, जमीन आदि गिरवी रखकर या बेचकर भी गरीब लोग अपने अगवा किए गए बच्चों की सलामती के लिए फिरौती की रकम देने के लिए मजबूर हैं । लेकिन हर अभिभावक इतने खुशनसीब नहीं होते । बाँके के दो छात्रों की विभत्स तरीके से की गई हत्या की याद लोगों के जेहन में अभी ताजा ही है । फिरौती की १० लाख रूपये का इंतजाम करने के लिए कपिल द्विवेदी के परिजनों को कितनी दिक्कतों का सामना करना पडÞा । अंत में बेटे की सकुशल रिहाई के लिए द्विवेदी परिवार ने अपना घर व जमीन गिरवी रख कर ब्याज पर पैसा उठाया । लेकिन अपहरणकारियों ने फिरौती लेने के बावजूद छात्र की हत्या कर दी । इस घटना में भी पुलिस से लेकर मानवअधिकार संगठन का नीला जैकेट पहनकर शान से घुमने वाले की भी संलग्न होने का खुलासा हो चुका है । ऐसी ना जाने कई घटनाएँ हैं, जिसके कारण तर्राई-मधेश के जिलों में सुरक्षा व्यवस्था तार-तार होता नजर आ रहा है । सुरक्षा बलों के निकम्मेपन से दिन-ब-दिन अपराधिक घटनाओं में लगातार वृद्धि होती जा रही है । समाज का पुलिस प्रशासन से विश्वास बिलकुल उठ गया है । जिनके घरों में दुखद घटनाएँ हो रही है उनके परिवारों में निराशा छा रही है । लोगों के आत्मबल में भी कमी आ रही है । चंदा आतंक से मधेश का आर्थिक क्रियाकलाप भी संकुचित होता जा रहा है । आर्थिक उत्पादन में कमी आने की वजह से लोगों का जीवन यापन करना कठिन होता जा रहा है । हत्या का शिकार प्रायः पुरुष के होने से इसका सीधा असर द्वन्द्वपीडित परिवारों पर आर्थिक रूप से पडÞा है । मधेश में लगातार बढÞ रहे हिंसात्मक अपराध की घटना को रोकना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए । लोगों में डर, भय त्रास का जो वातावरण बन गया है, उससे निजात दिलाने के लिए राज्य को आवश्यक पहल करनी होगी । वरना स्थिति बेकाबू होने पर असर काठमांडू तक भी हो सकता है ।