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अब लौटना नही है वहाँ, जहां शब्दों के छल बल का होता हो व्यापार : वंदना गुप्ता

प्रेम जो सृष्टि का सच है । जिस पर टिकी है जिन्दगी और जो देता है जीने की वजह ।प्रेम पर आधारित वन्दना गुप्ता की कुछ कविताएँ आपके लिए ।

1

अब लौटना
नही है वहाँ
जहां
शब्दों के छल बल का
होता हो व्यापार

हर पल बदलती हो
परिभाषाएं
प्रेम की

लौटना एक
भ्रामक क्रिया है

समझ गई थी
वह

इसलिए चल
पड़ी थी
अनन्त के अछोर में
समाहित करने
दुख अपना .

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2

आज की रात
मंथन की रात थी

प्रेम और आसक्ति में
अन्तर को जो
समझना था

डूबकर
उबरना भी था

इस तरह प्रेम में
अनासक्त हो
हो गई
प्रेम मय वह

उन्मुक्त नही
मुक्त
शान्त, धैर्य चित्त
एक विस्तारित ध्येय
लिए .

3

अपने जीवन का

नीला
इस झील में देख
छलछला आई आंखें

समुद्र की पीड़ा का नीला
यहाँ सौन्दर्य से युक्त
गर्वित, शान्त चित्त
छलछलाहट, छिछलेपन से परे

इस नीले को अब
अपनी आंखों में उतार
चल पड़ी वापस
कभी लौटने के लिए .

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4

मम् भाव से
मुक्त कर
खुद को, तुमको

कर दिया विसर्जित
उसने आसक्ति को
इस तरह
बन्धन मुक्त

अनासक्त हो
कर रही वह
प्रेम की तपस्या
छोड़ सांसों का बन्धन

अवधूत सी वह
अनहद में डूबी .

5

न आसक्ति
न प्रेम कुछ भी नही था
बस शून्य के निर्वात में

धुधंली आकृतियाँ थी
जिसे हटाया तो नही जा सकता
जीवन के पृष्ठभूमि से

पर याद करने जैसा
कुछ भी नहीं
बस एक डरावना
दु:स्वप्न था

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जो बार बार उभर आता है
न चाहते हुए भी
अति पीड़ादायक

डॉ वन्दना गुप्ता

सिलीगुडी पश्चिम बंगाल

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