ना भीगने का डर ना रुकने काे घर, बस तुम थे मेरे और मैं थी तुम्हारी : भावना पराजुली
बारिश
बारिश हाे रही थी
मेरी छतरी तुम थे
तुम्हारी अदृश्य शक्ति थी
पानी काे मुझसे जलन हाे रहा था
पानी मुझ पर बरस रहा था
बदन तुम्हारा भींग रहा था
मैं पाेछ रही थी
तुम्हारे बदन पर पड़े बूंदों को
पानी की बुँदे टप टप
हमारे कदम चले छप छप
धीरे से आओ सिमट जाओ
हल्के से सासाे से घुल जाओ
ना भीगने का डर
ना रुकने काे घर
बस तुम थे मेरे
और मैं थी तुम्हारी

हम चल रहे थे साथ साथ
बाते कर रहे थे प्यार की
कुछ कुछ मजाक भी
काैन आया काैन गया
पता नहीं था ना काेई हिसाब
तुम मुझ में मैं तुझमे
ऐसे ही समाइ थी
जैसी की राधा बन गई थी
आल्हादिका शक्ति कृष्ण की
भावना पराजुली
Very nice poem.. congratulations 💐💐💐
Very nice .. congratulations 💐💐💐
उम्दा रचना