माँ का आँचल है मास्क : भागीरथी नेवटिया चौधरी
*माँ का आँचल है मास्क*
माँ की गोद से बढ़कर कोई
वास नहीं,
माँ की ममता से बढ़कर कोई विश्वास नहीं।
माँ की ओट ही बचाती हमें महामारी से,
माँ के आँचल से स्वस्थकर
बना कोई मास्क नहीं।
माँ की छत्रछाया से बढ़कर कोई सेनेटाइजर नहीं,
मां की दुआओं से बढ़कर कोई दवा नहीं।
हाँ ऊपर से तो है कड़क,
पर अंदर से मुलायम है माँ,
तपती धूप में
ठण्डा पानी बन जाती है माँ।

कोरोना रुपी दैत्य से
क्यों घबराऊं मैं
जब पड़े उसकी नज़र
मिर्ची की धांस बन जाती है माँ।
काला टीका लगा बुरी नज़रों से बचाती है माँ,
कोरोना की क्या औकात
मेरी फौलादी माँ के सामने,
अपने बच्चों को बचाने
ब्रह्मास्त्र बनजाती है माँ।
माँ मेरी माँ, प्यारी माँ!!!
दो बूंद आंसुओ की
समर्पित है तेरे चरणों में
तेरा आँचल कहाँ खोजूं माँ??
– भागीरथी नेवटिया चौधरी
जयपुर
( ७९ वर्षिया कवियत्री)
रचनाकाल- १३ जुन २०२०

जयपुर