Tue. Jul 8th, 2025

जाय मधेसी भाड़ में ! : अजय कुमार झा

अजय कुमार झा, जलेश्वर । आजकल हमारे कुछ मधेसी युवा नेता तथा मधेसवाद को अपने हृदय में स्थापित कर जीवन यापन करनेवाले योद्धाओं में मधेसी नेताओं के क्रियाकलापों से घोर वितृष्णा तथा वैचारिक उहापोह होने लगा है। जिसकी खामियाजा जसपा को भुगतना पड़ सकता है। वर्तमान में जसपा राजनीतिक रूप से निर्णायक भूमिका में होने के कारण भी युवाओं में तीव्र अपेक्षा होना स्वाभाविक ही है।
जनता समाजवादी पार्टी (जसपा) आज नेपाली राजनीति में निर्णायक भूमिका निर्वाह करने की क्षमता में पहुंच चुका है। केपी शर्मा ओली नेतृत्व के सरकार के साथ मधेसियों के मांग को पूरा करा सत्ता साझेदारी करने की क्षमता रखनेवाली जसपा अपनी व्यक्तिगत अहंकार और लोभ के कारण पिछड़ते दिखाई दे रहा है।
बाबूराम भट्टराई, जिसे मधेसियों के मुद्दा से कुछ भी लेना देना नही है; उनके निर्देशन में चलने को मजबूर उपेंद्र यादव जी आज खुदको मधेसी विरोधी सावित करने में लगे हैं। उन्हें, वर्तमान के तरल राजनीतिक अवस्था को लाभ में बदलने के लिए एक जुट होकर मधेसके मुद्दाको आगे लाना चाहिए था। जबकि वो प्रचंड और बाबूराम जी के कभी न पूरा होनेवाली वादा के चक्रव्यूह में फसकर समग्र मधेस और मधेश के आंदोलनकारी परिवार तथा नागरिकों के साथ घोर षड़यंत्र की ओर अग्रसर दिखाई दे रहे हैं। आम मधेसी नागरिक जूझ रहे झूठे राजनीतिक मुद्दों से निजात चाहती है जबकि राजनीतिक परिस्थिति अनुकूल होने के बावजूद भी उपेंद्र यादव जी अपनी पुरानी माओवादी धार को ही पोषित करना चाहते हैं। वो अपनी आका प्रचंड से दूर नहीं होना चाहते। चाहे मधेसी जाय भाड़ में।
संघीय प्रतिनिधिसभा में जसपा के ३४ सांसद है। जिसमे दो सांसद हरिनारायण रौनियार और रेशम चौधरी निलम्बित हैं। बाँकी के ३२ सांसद में पूर्वराष्ट्रिय जनता पार्टी (रा ज पा) महंथ ठाकुर नेतृत्व से निर्वाचित १६ और पूर्वसमाजवादी पार्टी उपेंद्र यादव नेतृत्व से निर्वाचित १६ सांसद हैं। गत वर्ष ही इन दोनों पार्टी को मिलाकर जसपा का जन्म हुआ था। जिसका मुख्य श्रेय वावुराम भट्टराई को देना होगा। वैसे नेपाल के राजनीति में उन्हें जितना महत्व दिया गया था वे उस गरिमा को नही सम्हाल पाए। अब मधेसवादी लगायत के छोटी छोटी पार्टियों को मिलाकर पुनः शक्तिशाली नेता के रूप में अपने को स्थापित करना ही उनका राजनीतिक अभीष्ट है। इसे मधेसावादी पार्टियों को गंभीरता से लेना चाहिए। वर्तमान में जिसके द्वारा पहले मांग पूरी होने की संभावना है हमें पहले उसी के साथ समझदारी कायम करनी चाहिए न की भविष्य के संभावनाओं के साथ। यहां बता दूं कि ठाकुर पक्ष वर्तमान ओली सरकार से समझदारी कर जल्द से जल्द मधेसियो के सभी मांगों को पूरा कराना चाहते हैं, ता की आगामी चुनाव में मधेस के भावनाओं को अपने पक्ष में कर सके। इधर जातीय समीकरण से मस्त यादव पक्षको मधेसी से अधिक चिंता अपनी आका प्रचंड के प्रति दिखाई देता है। उन्हें हर हाल में ओली सरकार को गिराना है।
ध्यातव्य हो! जसपा में यादव और ठाकुर दोनो ही अध्यक्ष हैं और इस समय दोनों में गुट बंदी जोड़ो पर है। पूर्व राजपा अध्यक्षमण्डल के ६ सदस्यों में से महेन्द्र यादव, जसपा संघीय परिषद् अध्यक्ष डा.बाबुराम भट्टराई, नेतागण राजेन्द्र श्रेष्ठ, रामसहाय यादव, रामबावु यादव, लिला सिटौला लोग उपेन्द्र यादव को साथ दे रहे हैं। इसी तरह नेता सूर्यनारायण यादव और सुरेन्द्र यादव अलग दिखते हुए भी भट्टराई जी के नजदीकी माने जाने के कारण इधर ही गिने जाएंगे। इधर रेणु यादव, इस्तियाक राई और प्रदीप यादव का अपना अलग ही  गुट है, जो ओली जी के करीबी रहे हैं।
पूर्वसमाजवादी संसदीय दल के प्रमुख सचेतक उमाशंकर अरगरिया, रुहीनाज और विमल श्रीवास्तव ने साफ कह दिया है कि पार्टीका माग पूरा करते हैं तो हम लोग ओली जी के साथ मिलकर आगे जा सकते हैं।
इसे घुमावदार भाषा में ठाकुर जी का सीधा समर्थन माना जाएगा। पूर्व राजपा के 16 सांसद में से 15 सांसद खुलकर ठाकुर जी के साथ होने के कारण जसपा का खेल खत्म ही समझिए। पार्टी के शीर्षस्थ नेता लोग अब अपनी पुरानी पार्टी कार्यालय बबर महल और बालकुमारी में अपना आशियाना बनाने लगे हैं। वैचारिक अंतराल यहाँ तक बढ़ गया है की प्रधानमन्त्री के साथ छलफल करना परे तो भट्टराई और उपेन्द्र जी बालुवाटार न जाकर नेपाली कांग्रेस और माओवादी के संग छलफल में जाते हैं, जबकि ठाकुर जी और राजेन्द्र महतो जी बालुवाटार जाते हैं। तो बात स्पष्ट हो गया न; कि यहां कोई जसपा पार्टी नही है। सब अवसरवादी है। ह, अवसरवाद के इस राजनीतिक भूचाल में भट्टराई जी पर ठाकुर जी भारी पड़ गए हैं। आज ठाकुर जी नेपाली राजनीति में धुरी के रूप में उपस्थित नजर आते हैं। और उनके लिए भी यह स्वर्णिम काल है। यदि वे अपनी मांगों को पूरी कराने में सफल हो जाते हैं तो मधेश ही नही पूरे नेपाल में एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व के रूप में परिचित होंगे अन्यथा अगला चुनाव भी जितना नामुमकिन होगा। वैसे अब तक के समझदारी और सरकारी तत्परता से शुभ संकेत ही मिलता है।
जसपा कार्यकारिणी समिति के सदस्य केशव झा के अनुसार प्रधानमन्त्री ओली और जसपा अध्यक्ष ठाकुर बीच पिछले कुछ दिनों से नियमित मधेस के मुद्दा पर ही वार्ता होता आया है। इसमें ओली सरकार मधेसी ऊपर लगाए मुद्दाकों फिरता लेने और सांसद रेसम चौधरी को जेल मुक्त करने के लिए कदम उठा चुकी है। सरकार और जसपा के संयुक्त कार्यदल की बैठक भी होता आया है। इस कार्यदल में विष्णु पौडेल, सुवास नेम्वाङ, राजन भट्टराई, सर्वेन्द्रनाथ शुक्ल और लक्ष्मणलाल कर्ण हैं। वैसे शुक्ल और कर्ण ठाकुर जी के समर्थक होने के कारण इस समितिको हम सरकार और राजपा के समिति भी कह सकते हैं। अतः हर हाल में मधेस के मुद्दाओं का संबोधन कराना ही मधेसवादियों के लिए संजीवनी का काम करेगा अन्यथा जनमत, कांग्रेस और एमाले इसे बुरी तरह निगल जाएंगे।
अजयकुमार झा, जलेश्वर

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *