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आज कोजगरा बंटेगा पान मखान,जानकी मंदिर में पहुंचा १०८ भार : कंचना झा

कंचना झा, काठमांडू, ९ अक्टूबर– दही, माछ, पान और मखान कहा गया है कि ये चार मिथिला की धरती पर ही मिलेगा । कहने वाले यहाँ तक कह गए हैं कि स्वर्ग में सबकुछ मिल सकता है लेकिन मखान वहाँ भी नहीं मिलेगा । मिथिलांचल का शायद ही कोई ऐसा त्योहार हो जिसे बिना पान और मखान के मनाया जाए । और अगर बात करें आज की तो आज तो कोजगरा है । और मिथिलांचल में बेटी वाले कजोगरा के भार के लिए परेशान रहते हेैं । पूरा मिथिलांचल खासकर ऐसा घर जहाँ बेटी का विवाह इसी साल हुआ हो वो सभी मखान का जुगाड़ अवश्य लगाते हैं । हाँ ये इतना आवश्यक है कि अगर बेटी का ससुराल बहुत दूर है तब भी पैसा भेजा जाता है ताकि मखान खरीद कर चुमाउन की जो प्रक्रिया हो उसे पूरा किया जा सकें । और अगर बेटी का ससुराल नजदीक है तो फिर क्या कहने आज सुबह जाने से भी होगा ।जहाँ दुल्हे के पिता ,बाबा, काका सभी नये धोती ,कुरता पहनकर अंगना में दुल्हें की प्रतिक्षा करते हैं । शादी के बाद पहले कोजगरा में बहुत सारे इंतजाम करने पड़ते हैं । बेटी वाले के यहाँ से अगर कुछ छुट जाता है तो दुल्हें के पक्ष वाले उसे पूरा करने में लगे रहते हैं ।
कोजगरा प्रत्येक वर्ष दशमी के बाद आश्विन पूर्णिमा को मनाया जाता है । मैथिली संस्कृति में कोजगरा के रात का अलग ही महत्व है । मान्यता यह है कि कोजागरा के रात को चन्द्रमा सँ अमृत की बरसा होती है । इस रात को चन्द्रमा से जो प्रकाश निकलती है उससे धरती चमकती रहती है । कहते हैं धरती माता के इस दिव्य छटा को समीप से देखने के लिए देवता भी मृत्युलोक पर आ जाते हैं । कहा गया है कि कोजगरा की रात को माँ लक्ष्मी कमल आसन पर विराजमान हो धरती पर आती हैं और देखती हैं कौन सब हैं जो माँ की प्रतीक्षा में जागरण कर रहें हैं या कौन हैं जो सो गए हैं । साधारण रूप में कोजागरा का शाब्दिक अर्थ है – कौन जाग रहा है ?
विवाह के पहले वर्ष कोजगरा बहुत धुमधाम से मनाया जाता है । वैसे अब की अगर बात कहें तो समय पहले सा नहीं रह गया है । न तो अब वो मीट्टी का घर अंगना दुआरि रह गया है लेकिन फिर भी जो हमारे पूर्वज करते आए हैं हम भी उसे कर रहें हैं । सुबह ही अंगना को साफ सुथरा क लिया जाता है । पिठार (चावल का आटा) से अरिपन बना उस पर सिंदूर लगाया जाता है । काठ की पिढ़ी रखी जाती है जिस पर नया दुल्हा बैठता है । घर के सभी बड़ी महिलाएं दही ,दुभि ,धान आदि से दुल्हें का चुमाउन करती हैं । दुलहे को छाता ओढ़ाया जाता है । छाता पर मखान छिंटा जाता है और आंगन के सभी लोग मखान चुनते हैं ।उसके बाद घर के सभी श्रेष्ठजन द्धारा दुर्वाक्षत देकर आशीर्वाद दिया जाता है । विध के सभी सामग्री नये चंगेरा में सजाया जाता है ।
मिथिलांचल में कोजगरा के दिन एक खेल भीे खेला जाता है कांैड़ी कहा जाता है । कौंड़ी भार के साथ ही दुल्हन के घर से आता है जो चाँदी का होता है और उस कौड़ी से नव वरवधु अपने समवयस्को के साथ खेलते हैं । इस खेल में हँसी ठठ्ठा और गीतनाद का भी चलन है । ये सब विध संपन्न होने के पश्चात महिलाएं नव वरवधु को भगवती घर ले जाती हैं । वैसे ये भी कहा गया है कि कोजगरा के समय में नव वधू ससुराल में नहीं रहती हैं । ऐसे में दुल्हे का छोटा भाई या कोई भी बच्चा दुल्हन की जगह पर बैठता है । विधि विधान खत्म होने के बाद मेहमानों को पान,सुपाड़ी, मखान, मिठाई, आदि दिया जाता है ।
मैथिल समाज में विशेष कर ब्राहम्ण और कायस्थ में कोजगरा मनाने का चलन है । वैसे एक बात और यह है कि कोजगरा मनाने का प्रचलन कब से है ये नहीं कहा जा सकता है हाँ इतना जरुर कहा जा सकता है कि यह त्योहार परा पुराकाल से लेकर अभी तक बहुत ही नियम और निष्ठा से मनाया जाता रहा है और कामना यही करें कि आगे भी हम इसे ऐसे ही निष्ठा से मनाते रहें इसी आस्था और विश्वास के साथ ।
अब बात करते हैं जनकपुर की तो आज ही जानकी मंदिर में १०८ भार भी पहुँच गया है । हर बार की तरह इस बार भी महोत्तरी रतौली के स्वर्गीय ब्रहदेव ठाकुर के घर से १०८ भार जिसमें फलफूल, मिठाई, दही, चुरा और मखान सहित जानकी मंदिर में पहुँच चुका है । करिब सौ वर्षो से से इसी घर से कोजगरा का भार आता रहा है । आज के दिन भारत से भी बहुत से लोग जानकी मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं । आज की शाम जानकी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है ।

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