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महामना मदनमोहन मालवीय

डाँ. श्वेता दीप्ति:सायास या अनायास नहीं कह सकती, परन्तु महामना मालवीय मिशन के द्वारा आयोजित महामना मदन मोहन मालवीय के १५२ वें जन्ममहोत्सव में शामिल होने का सुयोग प्राप्त हुआ। बूढÞा नीलकंठ के रमणीय वातावरण में अवस् िथत पार्क भिलेज रिसोर्ट में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। महामना मदन मोहन मालवीय, एक ऐसे पवित्र व्यक्तित्व थे- जिनकी चर्चा या परि चर्चा कभी सम्पर्ूण्ा नहीं हा े सकती। काे िशशा ंे क े बावजदू हम उन्ह ंे किसी एक परिधि म ंे समेट ही नहीं सकत।े



क्यांेि क किसी एक युग म ंे कार्इर्े एक ही मालवीय जन्म ले सकता है। भारतवर्षकी पावन धरती को अनके महापरुु षा ंे एव ं विभू ितया ंे न े अपन े श्रष्े ठ कायार् ंे एव ं सद्व्यवहार से गौर वान्वित किया है। उन्हीं म ंे स े एक महापरुु ष महामना मालवीय जी अपनी विद्वता, शालीनता और विनम्रता की असाधार ण छवि के कारण जन-जन के नायक थ।े अगं जे्र जज तक उनकी तीव ्र बु िद्ध का लाहे ा मानत े थ।े अपन े जीवनकाल म ंे पत्रकारिता, वकालत, समाजसुधार, मातृभाषा तथा जन्मभू िम की सवे ा म ंे अपना जीवन अर्पण करने वाले महामना जी इस युग क े आदशर् थ,े ह ंै आरै हमशे ा रहगंे ।े आपन े २५ दिसम्बर १८६१ को इलाहाबाद की पतित पावन धर ती पर पिता बज्रनाथ और माता मुनादेवी के आगँ न म ंे जन्म लिया। धन्य थे वो माता पिता और धन्य थी वो धरती जिसकी मिटट् ी म ंे आप पल-े बढ।ेÞ इनका मलू निवास स्थान मालवा था, इसलिए ये मालवीय कहलाए।

मालवीय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आपका ये मानना था कि व्यक्ति के चरित्र निर्माण में शिक्षा की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। भारत का ही नहीं विश्व का सबसे बडÞा और प्राचीन विश्वविद्यालय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय है, जिसका शिलान्यास सन् १९१६ में हुआ था। इस विशाल विश्वविद्यालय की स् थापना हेतु एक गरीब ब्राहृमण ने हर ओर से भीक्षा और चन्दा इकट्ठा किया। यह उनकी कृत संकल्पता थी जो आज काशी विश्वविद्यालय के भव्य रूप में हमारे समक्ष खडÞा है। जहाँ भारत ही नहीं विश्व के कोने-कोने से शिक्षा-प्रेमी आते हैं और शिक्षा-धन प्राप्त करते हैं। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स् थापना में नेपाल का भी अविस्मरणीय योगदान है। मालवीय जी दान माँगने के क्रम में नेपाल आए थे और तत्कालीन राजा त्रिभुवन और श्री ३ महाराज जुद्ध शमशेर की सहमति से नेपाल सरकार द्वारा सहायता की गई थी। और काशी विश्वविद्यालय में नेपालपीठ की भी स् महामना मदनमोहन मालवीय डाँ. श्वेता दीप्ति जन्म-जयन्ती हिमालिनी l

जनवरी/२०१४ घज्ञ थापना हर्ुइ। नेपाल की पवित्र धरती पर मालवीय जी को याद करना सुखद है। नेपाल की मिट्टी के कई विद्वानों ने इस महान विश्वविद्यालय से शिक्षित होने का गौरव प्राप्त किया है। महामना मालवीय मिशन द्वारा आयोजित महामना मालवीय जी की १५२ वीं जयन्ती के अवसर पर नेपाल के उपराष्ट्रपति परमानन्द झा, भार तीय दूतावास के राजदूत महामहिम रंजीत रे महामना मालवीय मिशन के अध्यक्ष योगाचार्य जी. एन. सरस्वती जी क े साथ ही अन्य जान े मान े विद्वाना ंे की गरिमामयी उपस्थिति थी। उपर ाष्ट्रपति झा ने बहुत ही सारगर्भित और समयानुकूल मंतव्य व्यक्त किया। आपने कहा कि आज महामना के आदर्श, दृढनिश्चय और कृतसंकल्पता की आवश्यकता नेपाल को भी है। आपने आत्मप्रवंचना नहीं आत्म विवचे ना की आवश्यकता महससू की क्यांेि क नपे ाल की जनता जिस पीडÞा को झेल रही है उसे सिर्फआत्म विवेचना से ही महसूस किया जा सकता है। साथ ही भारतीय राजदूत महामहिम रंजीत रे ने भी मालवीय जी क े आदशार् ंे आरै सदु ढृ Þ व्यक्तित्व की चचार् की आरै भार त आरै नपे ाल क े रिश्ता ंे की सदु ढृ तÞ ा पर बल दिया। उक्त समारोह में नेपाल के कुछ ऐसे विद्वानों को सम्मानित किया गया जिन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की है। प्रमुख साहित्यकार मदनमणि दीक्षित, विद्वान और कानूनविद् योगप्रसाद उपाध्यक्ष एवं पद्मकन्या महाविद्यालय की प्रथम प्राचार्या श्रीमति अंगुरबाबा जोशी को स्रष्टा सम्मान से नवाजा गया। मालवीय मिशन का यह पहला सराहनीय प्रयास था जिसे उम्मीद है आगे भी अनवरतता दी जाएगी। मिशन के अध्यक्ष जि.एन. सरस्वती ने अपने मंतव्य में उपर ाष्ट्रपति से अनुरोध किया कि उनके मिशन को सरकार की ओर से जमीन उपलब्ध करायी जाय जहाँ एक शिक्षा संस्थान की स्थापना की जा सके। साथ ही महामना मालवीय की प्रतिमा स्थापना हेतु भी प्रयास करने का अनुरोध किया। समारोह के दूसरे सत्र में विद्वान जयराज आचार्य द्वारा कार्यपत्र प्रस्तुत किया गया। जिसमें नेपाल के सर्न्दर्भ में महामना मालवीय जी के विचार पक्ष को प्रमुखता के साथ रखा गया था। एक संकल्प, एक विश्वास और महामना के आदर्श को अपनाने के दृढÞ निश्चय के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हर्ुइ। अंत में महामना जी की कुछ उक्तियाँ-

मर जाऊँ माँगू न अपने तन के काज परमारथ के कारने मोहि न आवे लाज।

और- सत्येन ब्रहृमचर्येन व्यायामेनाथ विद्यया। देशभक्तया˜त्यागने सम्मानः सदाभव।।



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