गुल्जारे अदब व्दारा नेपालगन्ज में गजल गोष्ठी
नेपालगन्ज,(बाँके) पवन जायसवाल, २०७१ बैशाख २७ गते ।
बाँके जिला में रही गुल्जारे अदब ने महेन्द्र पुस्तकालय नेपालगन्ज में नियमित मासिक गजल गोष्ठी बैशाख २७ गते शनिवार को आयोजन किया ।
गजल गोष्ठी अवधीे सा“स्कृतिक विकास परिषद् बा“के जिला के अध्यक्ष सच्चिदानन्द चौवे के प्रमुख आतिथ्य में, सैय्यद असफाख रसूल हाशमी के सभापतित्व में सम्पन्न हुई मासिक गजल गोष्ठी सम्पन्न हुआ ।
गजल गोष्ठी कार्यक्रम में अदब के अध्यक्ष अब्दुल लतीफ शौक, मोहम्मद जमील अहमद हाशमी, अदब के सचिव मोहम्मद मुस्तफा अहसन कुरैशी, मोहम्मद यूसुफ आरफी कुरैशी, मेराज अहमद ‘हिमाल’ लगायत उर्दू साहित्यकारों ने शैर वाचन किया था और कार्यक्रम की संचालन अदब के सचिव मोहम्मद मुस्तफा अहसन कुरैशी ने करते हुयें अगले जेष्ठ महीने के अन्तिम शनिवार को गजल गोष्ठी में वो नाव चाहिए जो समन्द्र उतार दे” मिश्ररे पर अपनी अपनी शैर वाचन करेगें अदब के सचिव मो. मुस्तफा अहसन कुरैशी ने जानकारी दी ।
आइने गुलिस्ता“ क्या होगा दस्तूरे बहारा“ क्या होगा ।
(१) सचिव– मों मुस्तफा अहसनद्वारा मुक्तक प्रस्तुत……….
रंग रुप हमारा क्या होगा पहचान हमारी कया होगी
आने वाली नस्लों के लियें जीने के सामा“ क्या होगा
फिर आमदे फस्ले बहारी है इस फिक्र में जहन ये उलझा है
आइने गुलिस्ता“ क्या होगा दस्तूरे बहारा“ क्या होगा ।
(२) सøयद अशफाक रसूल हाशमी(सøयद नेपाली) द्वारा प्रस्तुत………मिश्ररा–
आइने गुलिस्ता ‘ क्या होगा दस्तूरे बहारा’ क्या होगा ।
खुद गर्जी का जब ये आलम है दसतूरे बहारा“ क्या होगा
फितरत है फकत गुल चुन्नेकी तामीरे गुलिस्ता क्या होगा
वे खौफो खतर वह बैठे है और चैन की नींदे सोते है
आमद है खिजा की अब देखो अन्जामे गुलिस्ता कया होगा
पहचान खिलाने आया जो वह भत्ता बनाने बैठ गया
खामोश अगर तू बैठा रहा फिर तेरा मुसलमा क्या होगा
तकदीर संवरने की खातिर करडाले जतन हमने सारे
हर रोज हमी करर्बानी दें फिर रोजे कुर्बा क्या होगा
खुद गरजी का तो ये आलम है बस अपना गरीबां याद रहा
उम्मीद लगाना है ये अबस अब चाक गरीबां क्या होगा
मौसम तो खिजां का बीत गया कुछ कहना सुन्ना मुशकिल है
आइने गुलिस्तां क्या होगा दसतूरे बहारां क्या होगा
हम प्यार करें दिल दे के उन्हे खामोश नजर वहे यू“ह कहें
वो खौंफ है सøयद तेरी नजर अब गर्दिशों छौरा क्या होगा ।
(३) मेराज अहमद ‘हिमाल’ द्वारा प्रस्तुत………
मिश्ररा– आइने गुलिस्ता“ क्या होगा दस्तूरे बहारा“ क्या होगा ।
वीरान हुई है शामो सहर आवाद गुलिस्ता“ क्या होगा ।
मेहका भी न पाये सब मिलकर पुरकैफ बहारां क्या होगा ।।
खामोश रहा और उफ भी न की मिसमार बमो से होता रहा
ऐ भट की रुहें तुही बता ये शहर खमोशां क्या होगा ।।
डालर की दुकानें की आगे मेयारे जवाहर कुछ भी नहीं
बेमोल जवाहर को देखों अब लाले बदखशों क्या होगा ।।
अजांमे खिजा अब याद नहीं मौसम है बहारों का देखो
आइने गुलिस्ता“ क्या होगा दसतूरे बहारा“ क्ककया होगा ।।
हर बार वह बस हां हां करता और झूठी तसल्ली ही देता
जब उस में अना बाँकी न रहो जबरन वह पशेमा क्या होगा ।।
जलते हुये पैरों के छाले तपते हुये सूरज के साये
हासिल है यही कुर्बानी का गर्दिश में है अरमां क्या होगा ।।
इजहारे मोहब्बत करते रहे इकरोर मोहब्बत कर न सके
इन डरते सहेम प्यारों का अंजाम मेरी जां क्या होगा ।।
फुरकत से तेरी बेचैन रहा मेराज न सोया रातो को
बेचैन किये क्यों दर्दे जिगर इस दर्द का दरम क्या होगा ।।