आर्थिक मंदी और महंगाई से जूझता नेपाल : डॉ. श्वेता दीप्ति

मंदी यानी किसी भी चीज का लंबे समय के लिए मंद या सुस्त पड़ जाना और जब इसी को अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कहा जाए, तो उसे आर्थिक मंदी कहा जाता हैं । लंबे समय तक जब देश की अर्थव्यवस्था धीमी और सुस्त पड़ जाती है, तब उस स्थिति को आर्थिक मंदी के रूप में परिभाषित किया जाता है । सवाल ये उठता है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था मंदी में जाती कैसे है ?
तो इसे सहज शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि, जब किसी अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों में जीडीपी ग्रोथ घटती है, तो उसे तकनीकी रूप में मंदी का नाम देते हैं । यानि अर्थव्यवस्था जब बढ़ने की बजाय गिरने लगे, और ये लगातार कई महीनों तक होती रहे, तब किसी भी देश में आर्थिक मंदी की स्थिति बनने लगती है

मंदी की स्थिति में महंगाई और बेरोजगारी तेजी से बढ़ती है, लोगों की आमदनी कम होने लगती है, शेयर बाजार में लगातार गिरावट दर्ज की जाती है । किसी भी देश की जीडीपी (किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू ) के आंकड़े ही बताते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था फल–फूल रही है या मंदी के बादल मंडराने लगे हैं । दुनिया भर के देश इस वक्त महंगाई से जूझ रहे हैं. इनमें दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भी शामिल हैं । पहले कोरोना महामारी, रूस–यूक्रेन युद्ध और अब भी लॉकडाउन के साये में जीने को मजबूर चीन के कई बड़े शहरों के कारण सामानों की सप्लाई चेन में रुकावट आई है । जिससे वैश्विक स्तर पर मंदी की आहट सुनाई देने लगी है ।
दुनिया आज भी १९२९ में शुरू हुई और १९३९ तक चली मंदी को भुली नहीं है । इसे महामंदी के नाम से भी जाना जाता है । इस दौरान दुनिया के अधिकतर हिस्सों में उत्पादन, आय, व्यापार और रोजगार में भारी कमी आ गई थी, जिससे भारी संख्या में लोग भुखमरी और गरीबी का शिकार हो गये थे । इतना ही नहीं, उद्योग बंद होने से बड़े–बड़े उद्योगपति भी कर्ज में डूब गए थे । आज भी जब किसी भी देश की अर्थव्यवस्था चरमराने लगती है तो लोग महामंदी के उन काले दिनों को याद कर दहशत में आ जाते हैं । विकसित राष्ट्रों द्वारा किये जाने वाले आयात और निर्यात पर अचानक टैक्स को बढ़ाना और घटाना आर्थिक मंदी का एक स्रोत है, जिसका प्रभाव अन्य देशों पर भी पड़ता है । आर्थिक मंदी में वस्तुओं की खपत कम हो जाती है, जिससे उत्पादित माल की बिक्री नहीं हो पाती है । इसका विपरीत प्रभाव उत्पादित करने वाली कंपनियों पर पड़ता है । आर्थिक मंदी को इस प्रकार से समझा जा सकता है, जब लोगों के पास पैसे की कमी होती है, तो वह अपनी आवश्यकताओं को कम करने का प्रयास करते हैं । आवश्यकताओं को कम करने से उत्पादित माल की बिक्री नहीं हो पाती है । माल की बिक्री न होने से कम्पनी को लाभ कम होता है । कम्पनी अपने लाभ के अनुसार ही कर्मचारियों को रखना चाहेंगी, जिससे बड़ी– बड़ी कंपनियों में छटनी की जाती है, जिससे लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार होते हैं ।
आर्थिक मंदी का प्रमुख कारण धन का प्रवाह रुक जाना है । धन के प्रवाह से आशय है कि लोगों की खरीदने की क्षमता घट जाना और इसलिए वह बचत भी कम कर पाते हैं । अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती है, जिससे महंगाई दर बढ़ जाती है और लोग अपनी आवश्यकता की चीजें नहीं खरीद पाते हैं । डॉलर के मुकाबले रुपये की घटती हुई कीमत भी इसका मुख्य कारण है । आयात के मुकाबले निर्यात में गिरावट होने से देश का राजकोषीय घाटा बढ़ जाता और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी देखने को मिलती है । अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर की वजह से भी दुनिया में आर्थिक मंदी का खतरा तेजी से बढ़ रहा है । दुनिया अभी २०२० में आई वैश्विक आर्थिक मंदी भूली भी नहीं है कि फिर से २०२३ में मंदी का असर दिखने लगा है । २०२३ में आने वाली विश्व आर्थिक मंदी के भय के चलते ही गूगल और मेटा, ट्विटर जैसी बड़ी कंपनियों ने इससे निपटने को लेकर अभी से कॉस्ट कटिंग शुरू कर दी है । बढ़ती महंगाई को कम करने के लिए ज्यादातर देशों के केंद्रीय बैंक अपने ब्याज दरों में वृद्धि कर रहे हैं । लेकिन उच्च ब्याज दरें आर्थिक गतिविधियों में रुकावट पैदा कर देती हैं । ब्याज दरों में इजाफा करने से बाजार में मांग कम हो जाती है और डिमांड कम होने से अर्थव्यवस्था की विकास दर भी धीमी पड़ जाती है । हालांकि डिफ्लेशन यानी महंगाई दर में भारी गिरावट भी मंदी पैदा कर सकती है । जबकि डिफ्लेशन इंफ्लेशन से ज्यादा खतरनाक है । डिफ्लेशन के कारण कीमतों में गिरावट आती है, जिससे लोगों की सैलरी कम हो जाती है और चीजों की कीमतें और घट जाती हैं । आम लोग और व्यवसायी खर्च करना बंद कर देते हैं, जिससे अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है और मंदी दरवाजा खटखटाने लगती है । १९९० के दशक में जापान में आई मंदी का कारण अत्यधिक डिफ्लेशन ही था ।
क्या नेपाल भी आर्थिक मंदी से जूझ रहा है ?
माना जा रहा है कि नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब २०० करोड़ डॉलर यानी २४ हजार करोड़ नेपाली रुपये कम हो गए हैं । किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा योगदान होता है । देश का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा और अन्य परिसंपत्तियों को अपने पास रखता है । विदेशी मुद्रा को ज्यादातर डॉलर में रखा जाता है । जरूरत पड़ने पर इससे देनदारियों का भुगतान भी किया जाता है । जब कोई देश निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा करता है तो विदेशी मुद्रा भंडार नीचे गिरने लगता है । पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम ७ महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए । नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार की क्षमता इस समय कम है जो चिंता का विषय है । पिछले वर्ष से ही नेपाल स्थिति को सुधारने के लिए निर्यात को बढ़ाने और आयात को कम करने के लिए कई कदम उठा रहा है । नेपाल ने विदेशों से आने वाले गैर जरूरी सामानों पर फिलहाल रोक लगा दी है ।
जब देश की अर्थव्यवस्था में आयात–निर्यात की बात करते हैं तो दो ट्रेड पार्टनर नेपाल के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं । पहला भारत और दूसरा चीन । इसकी वजह है कि नेपाल करीब ६२ फीसदी विदेशी व्यापार भारत से करता है और करीब १४ प्रतिशत चीन से । नेपाल विदेशों से कुल जितने रुपये का सामान खरीदता है उसमें करीब ७० फीसदी भारत से आता है । इसका मतलब है नेपाल ७० फीसदी आयात भारत से करता है जो साल २०१९–२० में करीब ६२० करोड़ डॉलर था । नेपाल भारत से सबसे ज्यादा वाहन और स्पेयर पार्ट्स, सब्जियां, चावल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीनरी, दवाएं, एमएस बिलेट, हॉट स्टील, इलेक्ट्रिक सामान और कोयला खरीदता है ।
भारत के बाद अगर कोई देश है जिससे नेपाल सबसे अधिक व्यापार करता है तो वो चीन है । नेपाल चीन से सबसे ज्यादा दूरसंचार उपकरण और पुर्जे, वीडियो टेलीविजन, केमिकल फर्टिलाइजर, बिजली का सामान, मशीनरी, कच्चा सिल्क, रेडीमेड गारमेंट्स और जूते खरीदता है । वहीं हस्तशिल्प सामान, वुलेन कारपेट, गेहूं का आटा और रेडीमेड गारमेंट जैसा सामान चीन को बेचता है । भारत और चीन दोनों देशों के साथ नेपाल का व्यापार घाटा बहुत अधिक है । यही वजह है कि नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार पर अधिक भार पड़ रहा है क्योंकि विदेशी व्यापार में खरीदारी डॉलर से ही होती है । कोई देश जितना अधिक अपना सामान विदेशों में बेचता है उसका विदेशी मुद्रा भंडार उतना अधिक भरता है ।
कोरोना महामारी के बाद नेपाल के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर काफी असर पड़ा है । खासकर चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते तेजी से बदले हैं । चीन का सामान नेपाल में तो तेजी से बिक रहा है लेकिन नेपाल अपना सामान चीन में उतनी तेजी से नहीं बेच पा रहा है । कोरोना महामारी के समय से चीन नेपाल की सीमाओं पर बंदिशें लगी हुईं हैं । जहां कोरोना से पहले एक दिन में सैकड़ों ट्रक बॉर्डर पार करते थे वहीं अभी भी इसकी संख्या पहले से कम ही है । सीमा को खोला जाता है और फिर किसी ना किसी बहाने से चीन की तरफ से बंद कर दिया जाता है । नेपाल में विदेशी आय का एक बड़ा स्रोत पर्यटन है, जो कोविड के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है । वहीं नेपाल की अर्थव्यवस्था को मजबूती से खड़ा रखने में रेमिटेंस का बड़ा हाथ है । नेपाल की जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा रेमिटेंस से ही आता है । विदेशों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर या प्रोफेशनल जब पैसे देश में भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं । कोविड के समय काफी नौकरियां गई हैं जिसके कारण रेमिटेंस में करीब पचास प्रतिशत की गिरावट आई है । रेमिटेंस में कमी के चलते नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका खासा असर पड़ा है ।
ऐसा नहीं कि नेपाल में ऐसी चुनौतीपूर्ण हालात अचानक पैदा हो गए हैं । वित्त वर्ष २०२१–२२ के प्रारंभ से ही देश के कई आर्थिक संकेतकों में गिरावट आनी शुरू हो गई थी । कोरोना महामारी और यूक्रेन संकट के दौर में उच्च महंगाई दर आम लोगों को बहुत परेशान कर रही है । बीते आठ महीनों में विदेशी मुद्रा भंडार में करीब १७ फीसदी की गिरावट दर्ज की जा चुकी है । नेपाल की मौजूदा आर्थिक स्थिति एक ऐसे देश के हिसाब से उम्मीदों से भरी नहीं लगती जो विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहता है । बढ़ता व्यापार घाटा, तेजी से कम होता विदेशी मुद्रा भंडार और आसमान छूती महंगाई ने सामान्य लोगों के जीवन को प्रभावित किया है और नेपाल की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है ।
बढ़ती महंगाई
नेपाल राष्ट्र बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक नेपाल में महंगाई की दर ७.२८ प्रतिशत है । आने वाले दिनों में महंगाई की दर में बढ़ोतरी की आशंका है । नीति बनाने वालों को भरोसा है कि करीब २ प्रतिशत या उससे कम की महंगाई दर स्वीकार्य है । २०१५ के विनाशकारी भूकंप के बाद पिछले कुछ समय में नेपाल की महंगाई दर ४.२५ प्रतिशत के इर्दगिर्द घूम रही है (२०१७–२०२१ के लिए औसत). वर्तमान में ज्यादा महंगाई की वजह रूस–यूक्रेन युद्ध के कारण सप्लाई चेन में आई दिक्कत, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत में बढ़ोतरी, अमेरिकी डॉलर की बढ़ती कीमत, देश में ताजा स्थानीय स्तर के चुनाव के दौरान विशाल खर्च (लगभग १०० अरब नेपाली रुपया जो जीडीपी का करीब २.५ प्रतिशत है) के साथ–साथ विलासिता के सामानों के आयात पर लगाया गया प्रतिबंध है । वर्तमान आर्थिक स्थिति यानी बढ़ती महंगाई और कम होता विदेशी मुद्रा भंडार खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बिगाड़ सकता है । एक अनुमान के मुताबिक नेपाल के ४६ लाख लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं । खाने–पीने की चीजों की बढ़ती कीमत और भी ज्यादा लोगों को खाद्य तक पहुंच से दूर कर सकती है । संकट में फंसा नेपाल राजनीतिक अस्थिरता की वजह से भी संकट में है । राजतंत्र की समाप्ति के बाद से, नेपाल ने शायद ही कभी राजनीतिक स्थिरता देखी है । देश के नेता संकटग्रस्त और गरीब आबादी को बीच मझधार में फंसा कर सत्ता हासिल करने के गणित में ज्यादा उलझे रहते हैं ।
इस बीच सरकार द्वारा कुछ राहत की खबर भी सार्वजनिक की गई है । सरकार ने सार्वजनिक रूप में अर्थतन्त्र सुधार करने का प्रयास शुरू किया है । गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी ने कहा है कि अर्थतन्त्र सुधारोन्मुख है और नेपाल का बैंकिङ क्षेत्र सुरक्षित है । बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं का पूँजीकोष ११ प्रतिशत तथा १३ प्रतिशत से अधिक रहने का तथ्यांक उन्होंने प्रस्तुत किया । उन्होंने कहा कि बैंकों के पास २४ प्रतिशत तरल संपत्ति है । उनके अनुसार कोविड के बाद जो जोखिमपूर्ण स्थिति थी उसमें काफी सुधार आया है । बैंकों का निष्क्रिय कर्जा अनुपात औसत में २.४९ प्रतिशत है । राष्ट्र बैंक ५ प्रतिशत पार होने की स्थिति को जोखिमपूर्ण मानता है । राष्ट्र बैंक के पूर्व कार्यकारी निर्देशक अर्थ विद नरबहादुर थापा नेपाल का मानना है कि बैंकों की पूंजी का आधार मजबूत है इसलिए जोखिम की अवस्था कम है । गवर्नर अधिकारी के अनुसार अर्थतन्त्र का सूचक सुधार की अवस्था नागरिक को महसूस करने में समय लगेगा ।
उन्होंने कहा कि गत आर्थिक वर्ष में चालू खाता घाटा ६ खर्ब २३ अर्ब था और गार्हस्थ उत्पादन १२ प्रतिशत ज्यादा था इसलिए बाह्य क्षेत्र में अधिक जोखिम की अवस्था थी । जबकि वर्तमान में यह अवस्था नहीं है । विदेशी विनिमय संचिति सुविधाजनक अवस्था में है । चालू खाता ८ महीने में सिर्फ ४४ अर्ब घाटा में है । शोधनान्तर स्थिति १ खर्ब ४८ अरब बचत में है । वर्तमान में रेमिट्यान्स भी ज्यादा आ रहा है । आयात में कड़ाई होने के कारण व्यापार घाटा कम हुआ है और विदेशी मुद्रा संचिति में सुधार हुआ है । इस वर्ष ८ महीने में १४८ अरब का बचत हुआ है । गवर्नर अधिकारी ने दावा किया है कि विदेशी विनिमय संचिति सुविधाजनक अवस्था में होने के कारण भविष्य में बड़े पूर्वाधार निर्माण के लिए आयात करने और आर्थिक वृद्धि में देश सक्षम है ।
दावा से परे वास्तविकता
भीषण आर्थिक संकट के बीच नेपाल की अर्थव्यवस्था की दृष्टि से वर्ष २०७९ काफी उतार–चढ़ाव भरा रहा । इस साल तीनों स्तरों के चुनाव संपन्न होने और नया सरकारी नेतृत्व प्राप्त होने के बाद सरकार, निजी क्षेत्र और आम जनता को काफी पीड़ा और उत्पीड़न सहना पड़ा ।
अर्थव्यवस्था के आंतरिक और बाहरी कारकों के कारण तरलता की कमी, बाजार की मुद्रास्फीति के साथ–साथ बैंक की ब्याज दरों में वृद्धि ने सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है । संभवतः इस साल पहली बार उद्योग, व्यवसायियों को बैंकों और वित्तीय संस्थानों के खिलाफ सड़क पर उतरना पड़ा । आर्थिक मंदी और व्यापार और आयात प्रतिबंधों में कमी के कारण सरकार को इतिहास की सबसे कमजोर आर्थिक स्थिति से गुजरना पड़ा । ५५ साल में सबसे कम राजस्व वसूली के बाद से सरकारी खर्च घाटे में रहा । चालू वित्त वर्ष के चैत्र मसान्त तक सरकारी खर्च करीब २ अरब पहुंच गया है । इसके अलावा वर्ष २०७९ में विभिन्न राजनीतिक और आर्थिक घटनाएं घटी हैं । आम चुनाव २०७९ के साथ ही एक साल में नई संघीय सरकार के वित्त मंत्री में तीन चेहरे बदले गए । गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी चर्चा में घिरे रहे । इस साल देश को जहां तीन बड़े अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे मिले, वहीं नेपाल को दो बड़े विमान दुर्घटना का दर्द भी सहना पड़ा ।
विशेष रूप से कोविड–१९, रूस–यूक्रेन युद्ध के बाद विश्व आर्थिक मंदी के प्रभाव से निर्मित आयात, निर्यात और उत्पादन के प्रभावों के कारण बीता हुआ वर्ष बहुत मुश्किल भरा रहा । उच्च बाजार कीमतों के बावजूद, बढ़े हुए आयातों ने विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डाला । इसी समय, श्रीलंका में गंभीर वित्तीय संकट ने दुनिया को आतंकित कर दिया । इस आपदा से सहमे नेपाल ने अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए आयात प्रतिबंध की नीति अपनाई । लग्जरी सामान, कार, मोबाइल फोन, टीवी, अतिरिक्त खिलौने और जंक फूड के आयात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने वाली सरकार ने आखिरकार दिसंबर के मध्य (करीब १३ महीने बाद) आयात शुरू कर दिया । लेकिन इसका प्रभाव अब देखने को मिल रहा है । राजस्व ५५ वर्षों से सबसे कम हुआ है । देश में तरलता की बढ़ती कमी, उच्च बाजार कीमतों और बैंकों की उच्च ब्याज दरों के साथ, एक ऐसा वातावरण बन गया, जिसमें उद्योग, व्यापार देनदारों को बैंकों और वित्तीय संस्थानों के खिलाफ सड़क पर संघर्ष करने के लिए बाध्य होना पड़ा ।
इन सबसे उबरने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता देश में एक स्थिर सरकार का होना है । चुनाव, उपचुनाव के भार को झेलता हुआ देश वर्तमान में राजनीतिक उथल पुथल का ही शिकार है । गठबन्धन से बनी सरकार स्वयं को बचाने के लिए अनावश्यक पद और मंत्रालय गठन करने के लिए तत्पर है । यह स्थिति देश पर अत्यधिक आर्थिक भार पैदा करेगी इसमें कोई शक नहीं है । हम सभी जानते हैं कि सतर्कता ही भावी दुर्घटना से बचा सकती है । आज देश को आवश्यकता है स्थायित्व, दूरदृष्टि और मजबूत नीति की ।
