कपिलवस्तु एक झलक
राधवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव:विश्व के इतिहास में नेपाल की धरती विगत कई युगों से आज तक पूजित वन्दित तथा महान कर्ीर्ति के रूप में परिचित है । चाहे महाराज जनक के समय का युग हो या पशुपतिनाथ से पहचाना जानेवाला या हिमालय से जाना जाने वाला अथवा महात्मा गौतम बुद्ध से अपनी पहचान बनाने वाला । परन्तु मानवता के र्सर्न्दभ में कहा जाय तो इतिहास माँ जनक नन्दनी को मानव समाज मंे रख कर, जव भी देखता है तो, आजतक के समाज में जीवन जीनेे के लिये और सारे समाज को मर्यादित रखने के लिये जो कर्तव्यपरायणता माँ सीता ने निभाया है उसके द्वारा महिलायें गौरवान्वित तो है हीं, आने वाले युगों युगों तक गौरवान्वित होती रहंेगी ।
इसी सर्न्दर्भ में हम कपिलवस्तु के बारे मंे देखें तो पता चलता है कि महामानव महात्मा बुद्ध आज एशिया के नयनाभिराम हैं । आज दुनिया के देशांे, राज्यांे मंे भले ही संवृद्धि पराकाष्ठा पर हो, लेकिन समाज के सर्न्दर्भ में जो मार्ग गौतम बुद्ध ने दिखाया विश्व उसका सदैव ऋणी रहेगा । मानवता एवं विश्वशान्ति के अग्रदूत महामानव गौतम बुद्ध का घर तिलौराकोट में है इस बात से संसार को स्वयं परिचित हो जाना चाहिये था, लेकिन प्रचार प्रसार की कमी से ऐसा नहीं हो पाया है । विकास की जो अवस्था पार कर जानी चाहिये थी वह अब तक नहीं हो पायी है । कपिलवस्तु ऐतिहासिक पुरातात्विक, धार्मिक तथा पर्यटकीय स्थल होने के नाते इसके महत्वपर्ूण्ा विषयवस्तु पर चर्चा करना अनिर्वाय है । महात्मा बुद्ध के जीवन काल से प्रत्यक्ष सम्वन्धित इस कपिलवस्तु से सटे ज्ािला रुपन्देही, नवलपरासी समेत के अन्तरसम्वन्ध को देखा जाये तो बुद्ध स्थलों का महत्व बौद्धमार्गियों के लिये तो हेै ही, पर्यटकीय एंव पुरातात्कि हिसाव से भी इसके महत्व को नकारा नहीं जा सकता है । लेकिन नेपाल सरकार ही नजरअन्दाज करे तो कोई क्या करे । यह बौद्ध लोगों के लिये महान तर्ीथ स्थल पवित्र भूमि है । और इसी के नाम से इस जगह का दोहन भी कर रहे हैं । तथाकथित लुम्विनी विकास कोष के नाम पर कपिलवस्तु का विकास लुम्बिनी विकास कोष से सम्भव नहीं है । वरन सम्बन्धित निकाय के लोगों का ध्यान देना होगा कि कपिलवस्तु के विकास के लिए अलग ही कोष की स्थापना होनी चाहिए ताकि इस ऐतिहासिक जगह का पर्ूण्ाता के साथ विकास हो सके, अगर ऐसा नहीं होता है तो विकास होना सम्भव नहीं है । । लुम्बिनी के विकास के साथ इसका भी विकास होना चाहिए परन्तु ऐसा हुआ नही, न ही होगा ये मेरी निजी धारणा न होकर आमलोगों की भी धारणा है । कपिलवस्तु अन्तरराष्ट्रीय महत्व से सीधा सम्बन्ध रखता है फिर भी ‘दीपक तले अँधेरा’ वाली कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही है । लेकिन आज का युवक अब चुप बैठने के पक्ष में नहीं है यदि कपिलवस्तु के विकास के लिए सरकार कुछ नहीं करती है तो, इस बुद्ध भुमि कपिलवस्तु के संरक्षण पर््रवर्धन तथा संस्कृतिक विकास के लिए सम्बन्धित सरकारी तथा गैरसरकारी राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय निकायांे में इसकी खुली वकालत एवं पैरवी होनी चाहिए बुद्ध के शिक्षा से सौभाग्य वस मानव समाज का कल्याण ही हुआ है एवं समाज का परस्पर एक दूसरे से मैत्री भाव एवं प्रेमवत जीवन जीने का सवल मार्ग भी प्रशस्त हुआ है विगत के दिनों मंे जो उत्खनन से प्राप्त हुआ या पाया गया उससे बुद्ध की राजधानी प्राचीन कपिलवस्तु यही है यह प्रमाणित हो चुका है । हाल में हुये उत्खनन से और भी ढेर सारी मानव बस्ती का यहाँ वास था और तिलौराकोट एक संवृद्ध नगरी -राज्य) के रूप में अवस्थित था यह पता चलता है । बुद्धकालीन से पहले भी यहाँ मानव बस्ती थी यह भी प्रमाण मिला है जो अभी पूरी तरह प्रमाणित नहीं हो पाया है पर यह निर्विवाद सत्य है कि बुद्ध की राजधानी तिलौराकोट ही है जिसके किनारे भागीरथी गंगा होना अनिवार्य है जो यहाँ पर आज वाणगंगा नदी के नाम से जाना जा रहा है यही तत्कालीन समय मंे भागीरथी कहलाती थी ।
तिलौराकोट से हिमालय का स्पष्ट दिखना भी इतिहास को साबित करता है । यह बात विश्व प्रसिद्ध चीनिया यात्री द्धय फाहियान और हृवेनसाङ के यात्रा वृतान्त में भी स्पष्ट रूप से वणिर्त है । महात्मा गौतम बुद्ध का जन्म स्थल लुम्बिनी भूमि होने के नाते अति महत्बपर्ूण्ा तो है ही साथ ही कपिलवस्तु में उनकी २९ वर्षकी लम्बी जीवन यात्रा बीती है इस कारण कपिलवस्तु का भी अपना महत्वपर्ूण्ा स्थान है । कपिलवस्तु मे ही तिलौराकोट राजदरबार है । कपिलवस्तु की धरती पर महात्मा गौतम बुद्ध, कक्रुच्छन्द बुद्ध का जन्म स्थल गोटिहवा एवं कनकमुनी बुद्ध का जन्म स्थल निग्लिहवा भी कपिलवस्तु मंे ही पडÞता है । तीन-तीन बुद्ध का जन्म स्थल यहाँ होने के नाते बौद्धमार्गियों के लिये परम पावन पवित्र स्थल है जिसका प्रमाणीकरण सम्राट अशोक द्धारा निर्मित शिलास्तभ, का वृतान्त भी वही विश्व प्रसिद्ध द्वय फहीयन एंव हृवेनसाङद्धारा यात्रा वृतान्त तथा बौद्ध साहित्य एंव अन्य एैतिहासिक पुरातात्विक तथा स्ांास्कृतिक महत्व का बौद्धकालीन धरोहरों से होता है जो आज भी निग्लिहवामे अवस्थित है इन सबों का प्रचारप्रसार जोरदार तरीके से होना जरूरी है बौद्ध संदेश मानव समाज के विकास के लिये समाज मंे व्याप्त विकृतियों को सुधारने के लिये सहायक था और हमेशा रहेगा । कपिलवस्तु में बुद्ध से सम्बन्धित लगभग १५० जगह है जिसे खुला संग्राहलय के रूप में विकास करते हुये दुनिया के सामने लाना जरुरी हो गया है । जो देश के पर्यटकीय विकास में अति महत्वपर्ूण्ा भूमिका निर्वाह करेगा और साथ ही देश को एक संवृद्ध राष्ट्र बनाने के रूप मंे भी सहायक होगा । सम्वन्धित निकायों का इस ओर ध्यान जाना अति जरूरी है ।