सार्वजनिक यातायात और आम नागरिक की पीड़ा : कंचना झा
कंचना झा, हिमालिनी अंक अप्रैल 023 । अनिता देवी (काल्पनिक नाम )चैत्र महीना और आज प्रचण्ड धूप में चलते–चलते थक गई हैं । पसीने से तरबतर शरीर और खल–खल पसीना बहने से उसे चलने में परेशानी हो रही है । कीर्तिपुर से रत्नपार्क आना था उसे । आराम से बस में चढ़ी और सोचा कि चलो अब एक ही बार रत्नपार्क में उतरकर वीर अस्पताल में अपना जाँच करवा लेगी । लेकिन आज गर्मी भी बहुत ज्यादा है, और उपर से ये बीमारी । अनीता देवी बहुत दिनों बीमार रहने की वजह से बाहर नहीं निकल पाई थी सो बाहर की दुनिया में बहुत कुछ बदल सा गया था जिसका उसे अनुमान भी नहीं था । अनिता देवी के दो बच्चे हैं जिनमें से एक उसके साथ है । उम्र लगभग ३० वर्ष की है । वह बार–बार कह रहा था कि टैक्सी ले लेते हैं माँ । लेकिन वो तो माँ है, जानती है बेटे के पॉकेट में उतने पैसे नहीं हैं कि वह रोज–रोज उनके लिए टैक्सी की व्यवस्था कर सके । वह तो डरी हुई है कि कहीं डॉक्टर ने यदि कोई ऐसी बीमारी कह दी या फिर मंहगी दवाईयां दे दी तो क्या होगा ? बच्चा कहाँ से पूरा कर पाएगा इतना खर्च ?

वो बहुत दुखी है आज क्योंकि बस ड्राईभर ने दोनों माँ बेटे को आर एन ए सी नामक जगह पर उतार दिया है जहाँ से उन्हें वीर अस्पताल तक पैदल सफर करनी होगी । और अनीता देवी इस हालत में नहीं हैं कि वह पैदल यात्रा कर सके ।
वो बार–बार कह रही थी खलासी से कि पहले तो ऐसा नहीं था । इतना तो नहीं चलना पड़ता था । सरकार न जाने क्या कर रही है ? उसे अपनी जनता की पीड़ा का जरा सा भी ध्यान नहीं है । ये केवल अनीता देवी की बात नहीं है । जो भी लोग सार्वजनिक बस से सफर करते हैं । हर उस व्यक्ति की हर दिन की कहानी नहीं हकीकत है ।
बस की भीड़ से बहुत से लोगों को डर लगता है । क्योंकि वो जानते हैं कि अगर अगली सीट पर भी वह बैठे तो अगले स्टैंड पर इतने लोग चढ़ जाएँगे कि उतरना मुश्किल हो जाएगा । ऐसा नहीं है कि यह केवल और केवल हमारे देश में होता है बहुत से देश में यही होता आया है ।
रही बात नेपाल की तो यहाँ दस खर्ब निजी क्षेत्र का निवेश है सार्वजनिक यातायात में । जनसाधारण सार्वजनिक यातायात में ही निर्भर है । सार्वजनिक यातायात की व्यवस्थापन ही देश रूप का चित्रण करती है । इस सेवा उद्योग में शत प्रतिशत नेपाली का ही निवेश है । फिर भी देश भर में ही सार्वजनिक यातायात में समस्या है ।
रौशनी (काल्पनिक नाम) का कहना है कि कभी–कभी तो लगता है कि काश बस से सफर नहीं करना होता तो कितना अच्छा होता । न जाने कब हमारे देश में अच्छे सिस्टम का आना होगा । जब इस तरह के धक्के खाना बंद होगा । एक तो इतनी तेज बस चलाते हैं कि आप खड़े कहीं होते हैं और अचानक से जब स्पीड में बस चलती है तो आप लुढ़क कर कहाँ चले आते हैं । कितनी बार मैं डर जाती हूँ ।
दूसरी बात यह कि एक बस में इतने लोगों को बिठा लेते हैं कि बस में खड़े होना भी संभव नहीं लगता है । चढ़ना और उतरना तो युद्ध जीतने जैसा है । उपर से ड्राईभर और खलासी की बद्तमीजी की तो बात ही छोड़ दें । यहाँ तक की भाड़ा भी फिक्स नहीं है । कहने को लोग कहते हैं कि यातायात व्यवसायी द्वारा जो रिश्वत दी जाती है वह ट्राफिक प्रहरी से हाकीम तक और वहाँ से मन्त्री तथा सचिव तक पहुँचती है तो ऐसे में दोष किसे दें ?
हम रौशनी की बातों से वाकिफ हैं । सभी जानते हैं कि ट्राफिक प्रहरी का क्या काम होता है लेकिन क्या किया जाए देश की अवस्था ही कुछ ऐसी है जहाँ किसी को किसी समस्या का समाधान निकालने की आवश्यकता महसूस नहीं हो रही है ।
रौशनी कहती है कि जब स्थानीय तह का चुनाव हुआ तो एक नया चेहरा आया । काठमांडू महानगरपालिका में बालेन साह बहुत चर्चित हुए । आम जनता को बहुत सी उम्मीदें थी उनसे । वो चुनकर भी आए । अभी मेयर पद पर भी हैं लेकिन उनकी नजर भी गरीब लोगों को साफ करने पर लगी हुई है । वो गरीबी नहीं गरीबों को खत्म करना चाहते हैं शायद । वो स्वच्छ, और सुन्दर काठमांडू बनाने के चक्कर में कुछ इस तरह से फंसे हैं कि गरीबों को ही दुख देने लगे है । जहाँ सबसे ज्यादा लोगों का आना जाना होता है । वहाँ की सुविधा को ही समाप्त कर दिया । कहते हैं विकास करना है तो सड़क बनाइए । हाँ सड़क बनाइए मगर उससे पहले कुछ योजनाओं पर काम तो कर लें ताकि जिसने आपको यहाँ तक पहुँचाया है वह पीडि़त न हो । उसे तकलीफ न हो ।
रमेश खडका का कहना कि खासकर सार्वजनिक यातायात का प्रयोग कौन करता है? हम और आप जैसे नागरिक जिनके पास अपना साधन नहीं है और ना ही इतने पैसे हैं कि वो टैक्सी में हमेशा सफर कर सकें । तो वो चढ़ेगे तो सार्वजनिक यातायात में ही । लेकिन दोष किसे दें ? सरकार की नीति नियम को या फिर ट्राफिक प्रहरी को । उसकी अपनी एक अलग ही पीड़ा है ।
वो भी पीडि़त है । कहते हैं कि शायद वो भी अच्छा काम करना चाहते हैं लेकिन कभी उनकी बदली कर दी जाती है तो कभी नौकरी जाने का खतरा नजर आने लगता है । वो भी क्या करें ? नौकरी चली जाएगी तो परिवार कैसे चलेगा ? खासकर जो निचले तह में काम करते हैं वह प्रायः आम नागरिक परिवार से ही होते हैं । और जिनकी आर्थिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं होती है ।
कुछ समय पहले की यदि बात करें तो नेपाल के कुछ सफल व्यवसायी नगद व्यापार होने वाले इस यातायात व्यवसाय में थे लेकिन अभी नहीं हैं ।
सच्चाई तो यही है कि सार्वजनिक यातायात की खराब अवस्था के लिए हम केवल यातायात व्यवसायी को ही दोष नहीं दे सकते हैं, यह उनके लिए अन्याय होगा । इसमें हम सभी दोषी है जैसे –
उचित भाड़ा जो एक जैसा नहीं है । यात्रियों से जो मांग की जाती है वह बिना किसी जिरह के मान लेते हैं ।
यातायात व्यवस्था विभाग के साथ ही सरकारी निकाय की लापरवाही तथा भ्रष्टाचार, इसी तरह सवारी मालिक से ‘क्यु’ शुल्क के नाम पर उठाए जाना वाला शुल्क, ट्राफिक प्रहरी की मिली भगत में तथा नागरिकों के प्रति दायित्व की उपेक्षा, मतलबी तथा लापरवाह यात्री, सार्वजनिक सवारी के पाटपुर्जा, टायर इन्धन में लगाए गए कर आदि भी यात्रियों के असुविधा बढ़ाने में प्रत्यक्ष परोक्ष भूमिका खेल रही है । भन्सार, मुअक अन्तःशुल्क, रोड परमिट में यात्रियों की भीड़, बस संख्या, सड़क का आकार, दूरी, चालकों की उम्र, अनुभव की जाँच तथा लाइसेन्स वितरण में होने वाले अनियमतिता, बैंक से वसूलने ब्याज में अस्थिरता आदि भी इसका कारक तत्व है ।
खासियत तो यह है कि ये सभी बातें जनता के सरोकार का विषय है । जनता के लिए है । फिर भी ये सरकार की प्राथमिकता में नहीं है । हवाई यातायात की ही अगर बात की जाए तो इसकी सुरक्षा को लेकर बहुत बड़ी चुनौती है । आने वाले समय में हवाई यातायात तथा सार्वजनिक यातायात को लेकर बहस होना बहुत जरूरी है । क्योंकि ये सीधे–सीधे जनता के जीवन के साथ जुड़ा हुआ है । जिसमें बंैकों का भी अरबों का निवेश है ।
कम से कम इतना तो हो कि हम जिस शहर में रहते हैं । अपना सबकुछ छोड़कर कमाने और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने आते हैं । वहाँ और कुछ मिले न मिले कुछ सम्मान मिले । सार्वजनिक यातायात में सफर करें तो पैसे की बचत के साथ मानसिक सुकून मिले ।
कहने को तो कहा जा रहा रहा है कि सार्वजनिक यातायात को व्यवस्थित करने की बात चल रही है देखें क्या होता है । एक प्रश्न आगे में है कि न जाने कब अनीता देवी जैसे लोगों की निराशा समाप्त होगी ?
