सृष्टि आपकी दृष्टि हमारी
किताब ः बाजेको सेकुवा
विधा ः हास्य-व्यंग्य निबन्ध संग्रह
लेखक ः पिंडालू पंडि -वासुदेव गुरागाईं)
प्रकाशक ः सीता गुरागाई
मूल्य ः रु. १५१।-
पृ. संख्या ः ८०±१४Ö९६
नेपाली साहित्य में शक्ति बल्लभ अर्याल का हास्य-नाटक ‘हास्य कदंव’ -वि.सं. १८५९ के आसपास) को प्रायः सभी समालोचकों ने पहली कृति की मान्यता दी है । उसके बाद लेखकों की बडÞी लम्बी लाइन देखने को मिलती है और उसी लाइन में एक दबंग लेखक के रूप में नजर आते हैं- पिंडालु पंडित -वासुदेव गुरागाईं), जिनकी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और कुछ किताबें प्रकाशोन्मुख हैं । कहानी, कविता, यात्रा संस्मरण के साथ-साथ हास्यव्यंग्य में दमदार कलम चलाने वाले वासुदेव जी की नवीनतम कृति है प्रस्तुत किताब ‘बाजे को सेकुवा’ । इसमें दस निबन्ध संग्रहित हैं, जिन्हे स्वयं लेखक ने समर्पित किया है- उन लोकतान्त्रिक दिलों को जो नेपाल और नेपाली की समृद्धि के लिए मन-वचनर्-कर्म से समर्पित हैं ।
प्रस्तुत कृति प्रसिद्ध रचनाकार वासुदेव गुरागाईं के लेखन का नयाँ आयाम है । यह न केवल व्यंग्य लेखन के नजरिए से महत्वपर्ूण्ा हैं, बल्कि समाज में चारो ओर व्याप्त व्रि्रूपों के उद्घाटन की दृष्टि से भी बेमिसाल है । समाज के हर क्षेत्र में आज जो गिरावट और पतन दिखाइ दे रहा है उसे उजागर करने में यह निबन्ध संग्रह सफल नजर आता है ।
हमारे विकास के माँडल, चुनाव, नौकरशाही, सांस्कृतिक क्षरण, देश-विदेश संबन्धी गलत नीतियाँ आदि अनेक जरूरी मुद्दों को व्यंग्य-विनोद की सम्पन्न भाषा में तल्ख और गम्भीर पडÞताल की है, इस किताब की रचनाओं ने ।
आनेवाले दिनों में सरस्वती और सरकार दोनों की खिदमत में खुद को खलास कर देने वाले वासुदेव जी की लेखनी और ज्यादा दमदार और धारदार हो । उनकी र्सतर्क और सचेत लेखनी सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनैतिक हर क्षेत्र की कमी कमजोरी को उजागर करती रहे और सधे हाथों से उन पर कलात्मक प्रहार भी करती रहे, यही शुभकामना है । शुभास्ते पन्थाः ।
किताब – उनको सम्झना -उनकी याद)
लेखक – दर्ुगा घिमिरे
प्रकाशक – जगदीश घिमिरे प्रतिष्ठान
मूल्य – रु. २००।-
पृष्ठ- १०२
स्वनामधन्य रचनाकार एवं प्रख्यात समाजसेवी स्व. जगदीश घिमिरे की धर्मपत्नी श्रीमती दर्ुगा घिमिरे द्वारा अपने स्वर्गीय पति की याद में कुछ अंतरंग यादें, भावनाओं, और घटनाओं को सिलसिलेवार ढंग से रोचक शैली में हृदयस्पर्शी रूप में इस पुस्तक में वर्ण्र्ााकिया गया है । लेखिका की विशेषता यह है कि उन्होंने अपनी पीडÞा को इस कदर बयां किया है कि पाठक की आँखें समय-समय में खुद-ब खुद नम हो जाती हैं ।
लेखिका दर्ुगा घिमिरे ने अपनी कृतियों से साहित्यिक जगत में अपनी जगह पहले ही पक्की कर ली है । छात्र-राजनीति से उन्होंने अपना कैरियर शुरु किया था, लेकिन शादी के बाद उन्होंने खुद को परिवार की देखभाल करने में व्यस्त रखा ।
छोटे-छोटे तीस अध्यायों में बंटी इस किताब में लेखिका ने अपने पति के अच्छे-बुरे सभी पहलुओं कोर् इमानदारी के साथ सामने रखा है । अपने पति को लेखिका ने सिर्फअपना हमसफर नहीं एक रहनूमा और उस्ताद भी माना है । लेखिका अपने मरहूम शौहर के बाँकी सामाजिक सेवा के कामों को अंजाम देने का वादा करती हैं । इस तरह लेखिका ने पति के अरमानों को पूरा करने के लिए खुद को कर्ुवान कर दिया है । आज के इस खुदगर्ज जमाने में कोई धर्मपत्नी ही ऐसा कर सकती है । इसके लिए उनकी जितनी तारीफ की जाए, कम होगी । प्रस्तुत पुस्तक बहुतों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है । सरल भाषा में अन्तरंग भावों को उकेरने की लेखिका की कोशिश सराहनीय है । मगर अशुद्धियों की बहुलता ने किताब की स्तरीयता पर सवालिया निशान लगा दिया है । राजनीति और समाजसेवा के अलावा साहित्य सेवा भी लेखिका करें तो सोने में सोहागा होता । हम उम्मीद रखें, आनेवाले दिनों में मोहतरमा दर्ुगा घिमिरे अपनी कलम को तेजी के साथ चलाएंगी ।
खैर …, इस किताब को लेखिका ने एक बहुमूल्य कृति बनाने के बदले दिली जज्बातों का सफरनामा बनाया है, ऐसा कहा जा सकता है । नेपाली साहित्य जगत आश लगाए, टकटकी बांधे आपकी कलम की ओर देख रहा है । आने वाले दिनों में आप की कामयाबी के परचम लहराएँ, स्वर्गीय पति के अधूरे कामों को आप पूरा करें । हम खुदा से दुआ मांगते हैं । -प्रस्तुतिः मुकुन्द आचार्य