मधेशी दल उपेक्षित ? भारतीय विदेश मंत्री के समक्ष संधीयता पर बल
श्वेता दीप्ति, काठमान्डौ,२६ जुलाई ।
काठमान्डौ २६ जुलाई मधेशी नेताओं ने भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज्य से भेंटवार्ता में यह स्पष्ट किया कि नेपाल में जबतक संधीयता को स्थान नहीं दिया जाएगा तब तक यहाँ स्थिरता नहीं होगी । भेटवार्ता के क्रम में उन्होंने स्वराज्य से आग्रह किया कि मधेश को काठमान्डौ की नजर से न देखें । संघीयता नहीं मिलने से यहाँ विकास की सम्भावना भी नहीं है । प्रायः सभी दल प्रमुख ने संधीयता पर ही बिशेष बल दिया । स्वराज्य ने कहा कि भारत की नई सरकार नेपाल को समृद्ध देखना चाहती है ।
भेटवार्ता में महन्थ ठाकुर, राजेन्द्रमहतो, विजय गच्छदार, उपेन्द्रयादव, अनिल झा, राजकिशोर यादव और जयप्रकाश गुप्ता आदि नेताओं की उपस्थिति थी ।
भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज्य से भेंटवार्ता के लिए जो समय मधेशीदलों के प्रमुख को दिया गया था उसमें भी काँग्रेस, एमाले और एमाओवादियों के मधेशी नेताओं की उपस्थिति मौजूद थी । जबकि यह समय पूरी तरह मधेशीदलों के लिये निर्धारित था । लेकिन ऐन मौके पर अन्य दलों के मधेशी नेताओं की उपस्थिति ने इन्हें आश्चर्यचकित किया । ऐसे में स्वाभाविक ही था कि मधेशी दल के नेताओं को जो बातें या समस्याएँ कहनी थी वो सम्भव नहीं हो पाया । एक तरह से देखा जाय तो उनकी उपेक्षा ही महशुस की गई । एक बार फिर मधेशी दलों से जो पूर्व में गलतियाँ हुई हैं उनका खामियाजा उन्हें भुगतना पडा । बार बार एकीकरण की बातें उठ रही हैं किन्तु अभी भी यह सम्भव नहीं हो पाया है । परिणामों को देखते हुए भी मधेशी दलों में कोई गम्भीरता नहीं दिख रही है । जनता का जो विश्वास इन्होंने खोया है और परिवारवाद के जो आरोप इन पर लग रहे हैं वह सब इनकी स्थिति को दिन प्रतिदिन कमजोर बनाता जा रहा हैं । आखिर कब व्यक्तिगत और पार्टीगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर ये मधेश हित की बात सोचेंगे । टूटने का परिणाम तो देख चुके हैं कम से कम समय रहते इसे सुधारने की कोशिश तो करनी चाहिए । यह तो जाहिर सी बात है कि मधेश की समस्याओं को यही दल उठा सकते हैं । इसके लिए इन्हें ही पूरी तैयारी के साथ आगे आना होगा । बजट में जिस तरह मधेश को नकारा गया कहीं यह आगामी संविधान में मधेश की स्थिति का पूर्वाभास तो नहीं है ?