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मालिनी मिश्रा:हिन्दू पंचांग का आरम्भ चैत्र मास से होता है । चैत्र मास से पाँचवा माह श्रावन मास होता है । ज्योतिष विज्ञान के अनुसार इस मास की पूणिर्मा के दिन आकाश में श्रवण नक्षत्र का योग बनता है । इसलिए इसी नक्षत्र के नाम से इस माह का नाम श्रावण हुआ है ।  इस माह से चातर्ुमास की शुरुआत होती है । यह माह चातर्ुमास के चार महीनों में बहुत शुभ माना जाता है ।images
जिस तरह कार्तिक मास को विष्णु का मास माना जाता है उसी तरह श्रावण को शिव का मास माना जाता है । श्रावण शब्द श्रवण से बना है, जिसका अर्थ है सुनना । अर्थात् सुनकर धर्म को समझना । वेदों को श्रुति कहा गया है अर्थात् उस ज्ञान कोर् इश्वर से सुनकर ऋषियों ने लोगों को सुनाया था । इस माह के सभी दिन पवित्र होते हैं लेकिन सोमवार, गणेश चतर्ुदशी, मंगला गौरी व्रत, मौनी पंचमी, श्रावण का पहला शनिवार, कामिका एकादशी, कल्कि अवतार शुक्ल, ऋषि पंचमी, हिंडोला व्रत, हरियाली अमावस्या, विनायक चतर्ुर्थी, नागपंचमी, पुत्रदा एकादशी, त्रयोदशी, वरा लक्ष्मी व्रत, गोवत्स और बाहुलन व्रत, पिथोरी, नराली पूणिर्मा, श्रावणी पूणिर्मा, पवित्रारोपण, शिव चतर्ुदशी, और रक्षा बन्धन प्रमुख हैं । अर्थात् यह महीना व्रतों का महीना है और यह महीना ही नहीं बल्कि इसी महीने से सारे त्योहारों की शुरुआत भी होती है ।
सावन की हरियाली दिलो दिमाग को ताजा कर देती है । महिलाओं के लिए तो यह पूजा के साथ ही सजने सँवरने का भी महीना होता है । कलाइयों में हरी पीली चूडिÞयाँ, हथेलियों पर भरी भरी मेंहदी से सजी महिलाएँ और युवतियाँ हर ओर दिख जाती हैं । इस महीने का हिन्दू संस्कृति मंे अत्यधिक महत्व है । भारत और नेपाल दो भिन्न देश सही पर इन दोनों की संस्कृति एक है । शिव के सभी धाम में भक्तों की भीडÞ उमडÞती है । झारखण्ड के देवघर और बासुकीधाम में तो पूरे एक महीने शिव भक्त का जमावाडÞा होता है । नेपाल के भी भक्तगण वहाँ जाते हैं । काँवर लेकर जल चढÞाने की प्रथा तो अब नेपाल में भी शुरु हो चुकी है । काठमान्डू में यह दृश्य सभी ओर दिखता है । भक्त सुन्दरीजल से जल भरते हैं और पशुपतिनाथ को अर्पित करते हैं ।
इस मास का सबसे प्यारा पर्व है रक्षाबन्धन । यह श्रावण मास की पूणिर्मा को मनाया जाता है । रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का अत्यधिक महत्व है । राखी कच्चे सूत से लेकर रेशमी धागे और सोने चाँदी जैसी मंहगी चीजों से भी निर्मित हो सकती है । राखी सामान्यतया बहनें भाई को बाँधती है, परन्तु ब्राहृमणों, गुरुओं द्वारा भी बाँधी जाती है । कभी कभी र्सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्तियों को भी राखी बाँधी जाती है । अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को भी राखी बाँधने की परम्परा प्रारम्भ हो गई है । भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं । हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक उच्चारण करते हैं । जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट रूप से है । यह श्लोक रक्षाबन्धन का अभीष्ट मन्त्र है जिसका हिन्दी भावार्थ है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ । तू अपने संकल्प से कभी विचलित न हो ।
रक्षाबन्धन का सामाजिक प्रसंग ः
नेपाल के पहाडÞी इलाके में ब्राहृमण एवं क्षत्रीय समुदाय में रक्षा बन्धन गुरु और भागिनेय के हाथों से बंधवाया जाता है । लेकिन दक्षिण सीमा में रहने वाले भारतीय मूल के नेपाली भारतीयों की तरह ही बहन से राखी बँधवाते हैं । इस दिन बहनें अपने भाई के दाँए हाथ पर राखी बाँध कर उसके माथे पर तिलक करती हैं और उसकी दर्ीघ आयु की कामना करती हैं । ऐसा माना जाता है कि राखी के ये रंगविरंगे धागे भाई बहन के प्यार के बन्धन को मजबूत करते हैं । यह एक ऐसा पावन पर्व है जो भाई बहन के पवित्र रिश्ते को पूरा आदर और सम्मान लेता है । यह पर्व सामाजिक और पारिवारिक एकबद्धता और एकसूत्रता का सांस्कृतिक उपाय रहा है ।
धार्मिक प्रसंग ः उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं । इस दिन यजर्ुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है । उर्त्र्सजन, स्नान विधि, ऋषि तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है । अमरनाथ की अति विख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूणिर्मा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन पर्ूण्ा होती है । माना जाता है कि इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग भी अपने पर्ूण्ा आकार को प्राप्त होता है ।
पौराणिक प्रसंगः
राखी का त्यौहार कब शुरु हुआ, यह तो निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है, लेकिन भविष्य पुराण में यह वर्ण्र्ाामिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरु हुआ तो ऐसा लगा कि दानवों की जीत हो जाएगी । इस कारण भगवान इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गए । वहाँ बैठी इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी सब सुन रही थी उसने मंत्रों से सिद्ध कर के रेशम का धागा इन्द्र की कलाई पर बाँध दिया संयोग से वह श्रावण पूणिर्मा का दिन था । यह विश्वास किया जाता है कि उसी मंत्रपूत धागे के करण देवताओं की विजय हर्ुइ । उसी दिन से यह परम्परा शुरु हो गई ।
स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत गीता में भी रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है । रक्षा बन्धन के ऐतिहासिक और साहित्यिक प्रसंग भी मिलते हैं ।
इस महीने के अंत और भाद्र शुक्ल द्वितीया को नेपाली महिलाओं का सबसे महत्वपर्ूण्ा पर्व आता है तीज । इसका औपचारिक नाम हरितालिका तीज है । प्रायः सभी हिन्दू महिलाओं की आस्था इससे जुडÞी हर्ुइ है । अपने पति की दर्ीघायु की कामना करते हुए इस व्रत को पूरी लगन के साथ महिलाएँ सम्पन्न करती हैं । आराध्य देव शिव की आराधना करती हैं । यह पर्व नेपाल के साथ-साथ भारत के भी कई प्रान्तों में मनाया जाता है । माना जाता है कि आद्य शक्ति शिव की अर्धागिंनी हिमालय पुत्री पार्वती ने भगवान शिव के सुमंगल हेतु यह व्रत किया था । इसी मान्यता के साथ हिन्दू नारी भी यह व्रत करती हैं ।
नेपाल में यह व्रत कई दिनों पर्ूव तक चलता है । यहाँ तीज से पहले दर खाने की रीति है । मायके और संगी साथी के यहाँ जाकर स्वादिष्ट भोजन करने की और खुशी मनाने, नाचने-गाने की परम्परा है । यों तो इसके कई अच्छे पक्ष हैं, किन्तु कभी कभी यह विकृति का भी रूप ले लेती है । दिखावे का प्रचलन ज्यादा हो गया है । तीज के दिन निराहार व्रत किया जाता है और यह गणेश चतर्ुदशी और ऋषि पंचमी तक चलता है । इसे हरितालिका व्रत कहने के पीछे भी एक कथा है । कहते हैं- जब हिमालय ने अपनी पुत्री का विवाह विष्णु के साथ करना चाहा तो पार्वती को सखियों ने हर लिया अर्थात् उसका हरण कर लिया । क्योंकि पार्वती यह विवाह नहीं करना चाहती थी । फिर पार्वती ने जंगल में कठिन तपस्या की और शिव को पति रूप में प्राप्त किया । चूंकि सखियों ने पार्वती का हरण किया था, इसलिए इस व्रत को हरितालिका व्रत भी कहते हैं ।
हमारे समाज में यह पर्व महिलाएँ मनाती हैं । आधुनिक समाज में तीज के महत्व को जिस भी रूप में व्याख्यायित किया जाय किन्तु यह पौराणिक काल से चली आ रही परम्परा है । सामाजिक मान्यता के अनुसार महिलाएँ शादी के पश्चात् अपने पति के घर में रहती हैं । अपने पति की दर्ीघायु और परिवार की मंगल कामना के लिए महिलाएँ व्रत रखती हैं । नए कपडेÞ और गहने से सुसज्जित होती हैं । अविवाहिता भी सुयोग्य वर हेतु इस व्रत को करती हैं । व्रत के समय में महिलाएँ तीज की व्रतकथा सुनती हैं समापन में ब्राहृमण को यथाशक्ति दान देती हैं । इस व्रत की समाप्ति ऋृषिपंचमी व्रत के पश्चात् होती है । वास्तव में तीज एक सुन्दर पर्व है । लाल टीका, लाल कपडÞा, लाल चूडÞी और माला में सजी महिलाएँ उस पर्व की रौनक होती हैं ।





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