तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात अंधकार में प्रकाश का उदय

काठमांडू, २६ कात्तिक – लक्ष्मी अर्थात – धन , सुख और समृद्धि की देवी । पूरे साल हम प्रतिक्षा करते हैं दीपावली की । दीया और बाती के इस त्योहार में कहते हैं कि माँ लक्ष्मी और गणेश सबकी मनोकामना को पूरा करते हैं । यही धारणा रही है समस्त हिन्दु धर्मावलम्बी के बीच । आज माँ लक्ष्मी की पूजा की तैयारी में सभी लगे हुए हैं । कार्तिक अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी का आगमन होता है यही सोच कर पूजा से पहले घर, आंगन ,चौक और चौराहों को साफ सुथरा किया जाता है और शाम के समय में दिया बाती जलाई जाती है । पूजा के बाद विशेष कर मधेश और मिथिला में उक फेरने की परम्परा रही है । उक खर आ संठि से बनाई जाती है । गोसाई घर से शुरु होकर इसे अांगन घर के चारों और धुमाया जाता है और साथ ही साथ मंत्र भी पढ़ी जाती है –अन्न ,धन, लक्ष्मी घर आएं दरिद्रा बाहर जाएं । प्रायः घर के जेष्ठ श्रेष्ठ पुरुष ये काम करते हैं । कहते हैं कि मिथिला के हर घर में लक्ष्मी पूजा के दिन उक फेरने की परम्परा रही है और लोग इसे करते ही करते हैं ।
वैसे जैसे जैसे समय बदला है वैसे वैसे बहुत सी पुरानी चीजें खत्म हो रही हैं और नई चीजें जगह लें रही हैं जैसे अभी उक की जगह लोगों ने छुरछुड़ी और पटाखें को दे दिया है । इन तीन दशकों में इतने बदलाव आए हैं जिसकी कोई सीमा ही नहीं है । क्योंकि अब यह बदलाव इससे ज्यादा होने वाला है । अब लोग एक दूसरे से मिलकर शुभकामना नहीं दे पाते तो इंटरनेंट का सहारा लेते हैं । अब लोग घर में मीठाइयां नहीं बनाते लोग खरीद कर लाते हैं । हाँ एक नई बात ये जरुर है कि लोग पूजा अर्चना पहले से ज्यादा करने लगे हैं साथ ही दिखावा बहुत ज्यादा हो गया है । दूसरी मंहगाई ने आम लोगों की कमर तोड़ दी है । एक तो बहुत ज्यादा मंहगाई और दूसरा प्रदुषण का खतरा । और तो कुछ नहीं आतिशबाजी को लेकर बच्चें बहुत खुश हो जाया करते हैं ।
तमसो मा ज्योतिर्गमय अर्थात अंधकार में प्रकाश का उदय । इस त्योहार में दीया के जगमग से घर, अंगना आ मौहल्ला चमक उठती है । कहा गया है कि आज ही के दिन भगवान श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या वापस आए थे । और उनके स्वागत में पूरे अयोध्या को दीप से सजाया गया था ।
समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है । उक की जगह छुरछुरी और पटाखा ने ले ली है । मिट्टी के दीया के बदले बिजली से जलने वाली बत्ती और अरिपन के बदले रंगोली ने ली है । वैसे तो बदलाव स्वाभाविक भी है क्योंकि तो केला के थम्भ, खर और दिया बाती सभी जगह आसानी से उपलब्ध नहीं होती है ।
वैसे तो बेहतर यही होता कि हम सभी मिट्टी से बनी दिया का ही प्रयोग करें ताकि अपने हाथ की कलाकारी जिंदा रहे और घर का पैसा घर में रहे । ये बिजली और बत्ति का जो प्रयोग हम और आप सभी कर रहें हैं तो सारा का सारा पैसा विदेश जा रहा है । हम जितना भी बिजली बत्ति का प्रयोग कर रहें हैं उसमें नब्बे प्रतिशत केवल चीन से आ रही है । कहते हैं आज के दिन माँ लक्ष्मी घुमने निकलती हैं और जिसको जिस चीज की जरुरत होती है वह देती भी हैं ।


