चित्रकूट में भव्य रामायण उत्सव, नेपाल से अजयकुमार झा सहभागी
चित्रकूट ।जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय एशिया का पहला दिव्यांग विश्वविद्यालय है। यहां दूर-दूर से दिव्यांग बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं और अपने जीवन को स्वावलंबी बन रहे है। यह विकलांग विश्वविद्यालय की स्थापना 27 जुलाई 2001 को जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा की गई थी। इसे जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग शिक्षण संस्थान नामक एक संस्थान द्वारा संचालित किया जाता है। 2001 में यूपी के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह ने इसका शिलान्यास किया था। जिसके बाद से यह विकलांग विश्वविद्यालय में देश भर से दिव्यांग छात्राएं शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते हैं। यहां से पढ़कर निकलने वाले लगभग हजारों से ज्यादा दिव्यांग छात्र छात्राएं सरकारी नौकरी व अन्य बड़े पदों पर आसीन हैं। इस विश्वविद्यालय के प्रांगण में प्रवेश के साथ ही यहां हर इक दिवाल पर बाबा के प्रेरणास्पद महावाणी आपके मनोमस्तिकको शुद्धता प्रदान करते हुए तरोताजा कर देंगे। पूर्ण प्राकृतिक छटा और पेड़ पौधों के जीवंत आवोहवा आपके मानसिक संताप को यूं हर लेंगे जैसे जेठ महीने की कड़कती धूप को ढकने के लिए काले काले बादल घिर जाएं। स्वयं कुलपति महोदय डा. श्री शिशिर कुमार पाण्डे जी का मधुरम और कोमल वाणी आपके हृदय को स्पंदित करते रहेंगे। यहां अनेकों गार्गी, मैत्रेयी और शांडिली रूपी विदुषियां अपनी दिव्य आभा को बिखेरते हुए आपके हृदय को तार को झकझोरती हुई दिख जाएंगी। विद्वत आचार्य वर्ग के सुकोमल स्वभाव सायद ही कोई प्रभावित न हुआ हो। यहां के कार्यालय सहयोगी, भोजन व्यवस्थापक तथा संबंधित सभी कर्मचारियों का स्वभाव में बाबा के दिव्यता का सहज झलक मिल जाता है। यह इस दिव्यांग विश्वविद्यालय के दिव्यता का प्रमाण भी है।
जगदगुरू रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो. शिशिर कुमार पांडेय जी के अनुसार अयोध्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग की ओर से राम वन गमन से जुड़े हुए मुख्य स्थान पर रामायण उत्सव का भव्य कार्यक्रम निश्चित किया गया है। प्रथम चरण में चित्रकूट, श्रृंगवेरपुर, अमरकंटक और वर्धा में रामायण उत्सव का आयोजन किया जाएगा। उन्होंने बताया कि चित्रकूट भगवान राम की बिहार भूमि और कर्मभूमि है। रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि, श्री रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास हो अथवा वर्तमान में पूरे विश्व में श्री राम के चरित्र को प्रचार करने वाले जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य हो, यह सभी चित्रकूट के प्राण हैं। ऐसे में पूरे देश में राम वनगमन पथ पर आयोजित होने वाले रामायण उत्सव का प्रारंभ चित्रकूट से किया जाना सर्वथा उपयुक्त है। उत्तर प्रदेश सरकार एवं संस्कृति विभाग की प्राथमिकता से ही चित्रकूट का सांस्कृतिक उद्भव संभव है, इसीलिए श्री राम जन्म महोत्सव, गोस्वामी तुलसीदास जी जयंती, वाल्मीकि जयंती, रामायण कांक्लेव के साथ रामायण उत्सव मनाया जाना भी उसकी एक कड़ी है।
अयोध्या शोध संस्थान संस्कृति विभाग के आयोजकत्व में रामायण उत्सव का शुभारंभ 18 नवंबर 2023 शनिवार को हुआ। जगदगुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय के अष्टावक्र सभागार में मुख्य अतिथि राज्य मंत्री रामकेश निषाद, कुलपति प्रो शिशिर कुमार पांडेय, सांसद आरके सिंह पटेल, पूर्व सांसद भैरों प्रसाद मिश्र ने दीप प्रज्जवलित कर वनवासी राम विषय पर आयोजित गोष्ठी में प्रतिभाग किया।
राज्य मंत्री ने कहा कि चित्रकूट भगवान राम की तपस्थली है। ऐसे में अन्य स्थानों की अपेक्षा इस स्थल का महत्व अधिक है। प्राचीन काल से यह ऋषियों मुनियों की भूमि रही है। रामायण उत्सव से चित्रकूट में सांस्कृतिक क्रांति भी आएगी। विशिष्ट अतिथि सांसद ने कहा कि इस देश को अंग्रेजों से उतना नुकसान नहीं हुआ जितना मुगलों ने सांस्कृतिक क्षति का प्रयास किया। भाजपा की डबल इंजन की सरकार से पूरे देश में सांस्कृतिक उत्सव का वातावरण बन गया है। पूर्व कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल श्रीराम के गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला। अयोध्या संस्थान के निर्देशक डा. लवकुश द्विवेदी ने आभार जताया। इसके बाद कवि सम्मेलन रामार्चन के रूप में हुआ। जिसमें जय अवस्थी, पं. सुनील द्विवेदी आदि कवियों ने राम पर अपने स्वरचनाओं से खूब तालियां बटोरी। कार्यक्रम में दिव्यांग विद्यार्थियों की बनाई जा रही स्पॉट पेंटिंग जो राम वनगमन थीम पर है लोगों का मन मोह लिया। सांस्कृतिक संध्या का संयोजन डॉ. गोपाल कुमार मिश्रा ने किया। संगीत रामायण वनवासी राम के प्रसंग को शास्त्रीय संगीत की बंदिशें में अद्भुत प्रस्तुति श्रोताओं के विशेष आकर्षण का केंद्र रहे।
समारोह के दौरान वनवासी राम विषय पर विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही राम वन गमन पथ की सांस्कृतिक विरासत पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र रहा। वहीं 19 नवंबर को नेपाल के जनकपुर से पधारे साहित्यकार अजय कुमार झा जी के अध्यक्षता में “सामाजिक समरसता के प्रतीक राम” विषय पर अनेकों विद्वान के द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किया। जिसमे डा. किरण तिवारी जी ने रामायण रूपी सागर को मंथन कर गागर में डालते हुए, ” भगवान श्रीराम आदर्श के श्रोत और प्रतीक हैं, तुलसी के राम ब्रह्म और नर दोनो रूप में हैं, रामाचारित मानस आज वैश्विक धर्म ग्रंथ है, सामाजिक समरसता मतलब एकाकार का भाव, दांपत्य जीवन में विश्वास और प्रेम ही उसकी सार्थकता है, वैदिक ग्रंथों में एक पत्नी और एक पतिव्रता का आदर्श स्थापित होना, राम के बाल्यकाल का प्रेम प्रणय सर्वाग्राह्य होना। यह सामाजिक समरसता का द्योतक है। इसी प्रकार डा. सुनीता श्रीवास्तव ने श्रीराम के प्रताप को विश्लेषण करते हुए रामको कलयुग का कल्पवृक्ष मानना, जटायु सहित वानर सेना को अपने परिवार का अंग मानना, आतंक और अराजकता के विरुद्ध लड़ना तथा सज्जन को संरक्षण देना। इसी तरह श्री दीपक मिश्र ने हनुमान को भक्त शिरोमणि का ताज देते हुए माता सीता के श्रृंगार के समय हनुमान द्वारा प्रश्न करना और खुद को भगवान के प्रिय होने के लिए श्रृंगार करना, हनुमान का अनेक नाम होना, अनेकों पुराणों में हनुमान का चर्चा होना, राम को पाने के लिए हनुमान रूप में जन्म लेना। इसी क्रम में डा. प्रमिला मिश्रा ने अपनी शोध पत्र में माता सीता के दिव्य चरित्र का वर्णन करते हुए राम के वनवास को अपना समझकर सीता भी वन को प्रस्थान करना, अपने प्रिय को अकेला नहीं छोड़ना, सुकुमारी राज दुलारी कंटक पथ को चुनना, सीता जी परम तेजस्विनी और दानी होने के साथ परम् स्वाभिमानी मानना, अपनी शोध पत्र प्रस्तुति के क्रम में डा. निहार मिश्रा ने राम के जीवन के घटनाओं को क्रमिक रूप में उल्लेख करते हुए सामाजिक समरसता के आधार पुरुष के रूप में राम के दिव्य चरित्र को स्थापित करना, राजाराज्य स्थापित करने के लिए आज के युवाओं को राम के पथ पर चलने का निर्देश देना। डा. गरिमा मिश्रा ने राम को सनातन समाज के पथ प्रदर्शक के रूप में मानना, राम संपूर्ण विश्व के हैं, वंचित समुदाय को भी गले लगाते हैं, प्राचीन काल में पूरा समाज एक शरीर की तरह था, समाज को सुगठित रखने के लिए संगठन का होना आवश्यक है। इसी प्रकार डा. शशिकांत जी ने राम के साकार निराकार, सामाजिक और व्यवहारिक पक्ष तथा वृहद स्वरूप का वर्णन अपने शोध पत्र के जरिए प्रस्तुत किए। अध्यक्षीय एवं समीक्षकीय उद्बोधन के क्रम में नेपाल से सहभागी अजय कुमार झा ने हिंदी, बज्जिका और नेपाली भाषा में सभाको संबोधन करते हुए अब राम के शाब्दिक विश्लेषण से आगे बढ़कर रामावतार के लिए प्रयास करने की आवश्यकता पर जोर दिया, उन्होंने कहा कि जबतक हम अपनी साधना और तप से तन और मन को शुद्ध नहीं करेंगे तब तक राम का जन्म संभव नहीं। हमें धरती पर दिव्यात्मा को लाने के लिए मूलाधार चक्र को शुद्ध करते हुए कमसेकम अनाहत चक्र तक पहुंचना ही होगा। वर्ण व्यवस्था के गुणवत्ता की सूक्ष्मता को गहनता से समझना होगा। पाठ्यक्रम में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है। आज से 25 वर्ष पहले नेपाल के पाठ्यक्रम में रामायण के अंश होते थे परंतु इसाईकरण और तथाकथित सेकुलरिज्म के कारण सब कुछ हटा दिया गया है। शिक्षा को नैतिकता और आदर्श से दूर कर दिया गया है। इसी क्रम में कविता के मार्फत उन्होंने जनकपुर विवाह पंचमी में आने के लिए आमंत्रण भी कर दिया। इस प्रकार आजका प्रथम सत्र को विश्राम दे दिया गया। साम को रामघाट आरती स्थल पर भव्य सांस्कृतिक संध्या का आयोजन, जिस मेें वाराणसी के पदमविभूषण पं. छन्नू लाल मिश्र एवं मुम्बई के पदमश्री अनूप जलोटा की शानदार प्रस्तुति रही।
इन कार्यक्रमों को सफल बनाने में अयोध्या शोध संस्थान के अध्यक्ष एवं प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग मुकेश मेश्राम, अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डा. लवकुश द्विवेदी, उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के विशेष सचिव राकेश चंद्र शर्मा, संस्कृति विभाग के निर्देशक प्रो. शिशिर पाण्डे आदि के अथक प्रयास रहा।