भारत को एक मात्र विकल्प : सैन्य क्षमताओं में इजाफा करे
प्रेमचन्द्र सिंह, लखनउ,२२ सितम्वर । चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिकी यात्रा के कुटनीतिक महत्व और भी बढ़ गए हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष सामरिक चुनौती एक बड़ी समस्या है। इस मामले में उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के सन्दर्भ में
त्रिकोणीय संबंधो को लेकर एक बेहतर संतुलन कायम किया था जिसके एक तरफ अमेरिका था,तो दूसरी तरफ चीन और बीच में भारत था।
उभरते हुए वृहद वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में आगामी दशकों में इस त्रिकोणीय व्यवस्था के तहत वर्ष २०२५ तक अमेरिका को पछारते हुए चीन विश्व की सबसे बड़ी जीडीपी(ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्ट) वाली अर्थव्यवस्था बन जायेगा। इस नई व्यवस्था में अमेरिका चीन से थोडा ही पीछे होगा और वह दुसरे स्थान पर होगा,जबकि भारत तीसरे स्थान पर होगा लेकिन यह दूरी कही अधिक होगी। हालांकि इस असंगत हालात में चीन सभी मामलो में दुनिया का सर्बाधिक समृद्ध राष्ट्र होगा,जबकि अमेरिका सैन्य मामलो में विश्व का सर्बाधिक ताकतवर राष्ट्र बना रहेगा और वैश्विक मामलो में वह लोकतान्त्रिक व्यवस्था का प्रतिक रहेगा। ऐसे में भारत के समक्ष जो चुनौती होगा कि कैसे वह अपनी जगह बनाता है और दोनों से खुद को बचाये रखते हुए किस तरह इन जटिल हालात में अपने राष्ट्रिय हितों को आगे बढ़ाते हुए नई वैश्विक व्यवस्था में अपनी उपस्थिति बढाता है।
राष्ट्रपति शी चिनफिंग की यात्रा से यह बात सामने आयी है कि भूभाग एवं सीमा सम्बन्धी विवाद अभी भी दोनों देशों के संबंधों में बहुत बड़ी बाधा बनी हुई है। वर्णित परिस्थितियों में भारत के समक्ष विकल्प मात्र यह है कि वह अपनी आर्थिक,तकनिकी और सैन्य क्षमताओं में इजाफा करे।