गणतंत्र के गुलाम युवा ! : अजय कुमार झा
अजयकुमार झा, हिमालिनी अंक नवंबर 024। नेपाली राजनीति में युवाओं की भागीदारी न के बराबर है । हालांकि पार्टी के भ्रातृ संगठन में युवाओं की बहुलता है, लेकिन निर्णायक केंद्रीय समिति और नेतृत्व में उनकी मौजूदगी कोई शून्य है । हम विकास और समृद्धि के लिए युवा नेतृत्व का नारा देकर विकसित देशों का उदाहरण तो देते हैं, लेकिन उसके अनुरूप माहौल नहीं बनाते । मरघट जिन्हे अपनी ओर बुलाती है; हम नेपाली उन्हें राजसत्ता पे बिठाकर राष्ट्र के सुरक्षा और समृद्धि की कल्पना में खोए रहते हैं । देशको लूटकर जमा किए अकूत संपत्ति के कारण उन अशक्त वृद्धों के पैसों में अपना भविष्य खोजते हैं । जबकि वो हमें चुनाव के समय में कुत्तों को अपने पीछे दौड़ाने के मनोविज्ञान से कौरा छीटकर हमें हमारे भविष्य के ही विरुद्ध प्रयोग कर लेते हैं । अतः ६० वर्ष पार किए लोगों का राजनीति से पूरी तरह विस्थापित करने के लिए वृहद राष्ट्रीय आंदोलन की आवश्यकता है ।

ज्ञातव्य हो ! संसार का हरेक आंदोलन युवाओं के दमपर ही सफल हुआ है । आजतक युवाओं ने दूसरों के लिए आंदोलन किया है, अब अपने लिए और राष्ट्र के सच्चे प्रहरी के लिए आंदोलन करने की घड़ी आ गई है । बालेन, हर्क और घंटी के युवाओं को एकजुट कराकर एक वृहद राष्ट्रीय अभियान चलाया जा सकता है । हाल ही में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी को दूसरी पीढ़ी का नेतृत्व मिला है. हालाँकि, वहाँ भी युवा बहुसंख्यक नहीं हैं । जहांतक पूर्णतः युवा वर्गका ६० के भीतर का सवाल हो तो एक भी मिलना मुश्किल है । इसके पीछे अनेक कारण हो सकते हैं । लेकिन, सबसे पहला और सशक्त कारण है; पार्टी नेतृत्व में वृद्धों की पकड़ और परिवारवाद का कहर । अपने पराए का जहर । नेताजी के पुत्र भले ही गड़हा ही क्यों न हो; उनके विचारों का सम्मान और आज्ञा का पालन परमादेश होता है । इसके प्रमाण के लिए बहुत दूर जाने की जरूरत नहीं है । भारत मे इंदिरा और लालू परिवार तथा नेपाल में दाजु भाऊजू, थापा–कोइराला आदि उसी के अवशेष हैं । ६५ वर्ष के युवा नेता मधेस में आते हैं और उनके गुणगाण में उनके ही पार्टी के २०–३० वर्ष के युवा दुम हिलाते दिखाई देते हैं । उन्हें न अपनी प्रतिष्ठा से मतलब है और न मधेस के स्वाभिमान से । बस, पार्टी नेतृत्व के इशारे पर और भट्ठी के लोभ में बिना कुछ सोचे समझे मैदान मे कूद जाते हैं । अतः ऐसे नपुंसकों को युवा कहना तो दूर मानव भी नहीं कहा जा सकता ।
किसी भी पुरानी पार्टियों में हमने कोई ‘आदर्श’ युवा नहीं देखा है, जिसे समाज स्वीकार कर सके । समाज को युवाओं पर भरोसा नहीं है क्योंकि वे उन्हें देश के नीति निर्धारण और राज्य संचालन में सशक्त भूमिका निभाते नहीं देखते हैं । दो चीजें युवाओं को नेतृत्व स्तर तक पहुंचने से रोकती हैं । पहला, राजनीतिक इतिहास; जो प्रौढ़ो के द्वारा लिखा गया है; और उस काल खंड में व्यावहारिक अनुभव को सर्वोत्तम माना जाता था । अधिक उम्र के लोगों में ज्ञान अधिक होना एक सर्वमान्य मान्यता थी, जो आज के समय में दो कौड़ी बराबर भी नहीं है । आज आधुनिक प्रविधि के कारण ४० वर्ष भीतर के युवाओं में ही वृद्धों के वनिस्पत जानकारियों का अत्यधिक ताजा भंडार मिलता है । आज के समय में ६० वर्ष पार किए हुए लोग स्वतः तिथिवाह्य हो गए हैं । आउट ऑफ डेट बुद्धि और शस्त्र समग्र विनाश के कारण होता है । वास्तव में हमारे समाज और राजनीति ने नेतृत्व में युवाओं की कल्पना नहीं की है । हमने कोई ‘ आदर्श’ युवा नहीं देखा है जिसे समाज स्वीकार कर सके । समाज को युवाओं पर भरोसा नहीं है क्योंकि वे उन्हें देश के नीति निर्धारण और राज्य संचालन में सशक्त भूमिका निभाते नहीं देखते हैं । उपरोक्त सभी आशंकाओ के पीछे यही देश बेचूआ वृद्धों का षडयन्त्र है ।
जिसका ज्वलंत उदाहरण काठमांडू के युवा मेयर बालेन के लोकप्रियता से घबराकर उनके साथ सरकार द्वारा बारम्बार किया जा रहा षडयन्त्र है ।
युवा देश का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी से न बच सकते हैं और न भाग ही सकते हैं, क्योंकि आगे का ६०–७० साल का सशक्त भविष्य उन्हीं का है । उन्हें पारंपरिक राजनीति में हस्तक्षेपकारी भूमिका निभाकर राजनीति की परिभाषा बदलने में सक्षम होना ही होगा । इसके लिए सभी दलों के युवा नेताओं को मिलकर एक राय बनानी होगी । एक मजबूत धार फोड़नी होगी । अस्तित्व पार्टी का नहीं देश का होता है, संस्कृति की होती है, व्यक्ति का होता है । युवा पीढ़ी किस तरह के देश का कल्पना करती है, इस पर बहस विभिन्न मीडिया, सरकारी और गैर–सरकारी निकायों की बैठकों और संवाद कार्यक्रमों में चल रही है । गणतंत्र के साथ जन्मी नई पीढ़ी को देश का नागरिक बनते समय राज्य से कोई अपेक्षा न रहना भी एक गंभीर स्थिति है । नई पीढ़ी नये वातावरण की अभ्यस्त हो जाती है । स्वाभाविक रूप से वह उन नये विषयों का उपयोग जीवन में करना चाहता है । बदलते समाज की नई पीढ़ी का नेतृत्व करने के लिए किस प्रकार का नेतृत्व अपेक्षित है ? नई पीढ़ी क्या चाहती है, क्या नहीं चाहती ? इन सारी बातों पर ध्यान अबतक के सरकार को देना चाहिए था, लेकिन हुआ इसके ठीक विपरीत । कारण एक ही है; वृद्ध अपनी राजनीति और सत्ता को सुरक्षित रखने के लिए युवाओं को देश से पलायन होने के लिए मजबूर कर रही है ।
हमारे नेता नई पीढ़ी को आसानी से नेतृत्व नहीं देना चाहते, युवाओं को वृद्धों के हाथों से सत्ता छीननी होगी । नेतृत्व परिवर्तन के लिए निरंतर प्रयास जारी रखना होगा । नेताओं से समाज की अपेक्षाएं भी बदलनी चाहिए । २४ घंटे केवल पार्टी का नेता मानने की प्रथा को खत्म किया जाना चाहिए । आखिरकार पार्टी है क्या ? न कोई ठोस सिद्धांत है, न ठोस व्यावहारिक पक्ष; बातबात पर खंडित÷विभाजन होना ही पार्टी का संस्कार दिख रहा है । कौन कबतक किस पार्टी में है ? यह कहना भी मुश्किल ही है । अतः ये सब एक लाभ उन्मुख संस्थाएं है । और संस्था का भविष्य नाफा और नुकसान के सिद्धांत पर आधारित रहता है । अतः यह भी सोचना आवश्यक है कि पार्टी को सहयोग करनेवाले युवा कार्यकर्ताओं का मासिक तलब पार्टी के द्वारा अनिवार्य किया जाए । जो युवा किसी राजनीतिक पार्टी में पूर्णकालीन रूप से सक्रिय हैं उनके आर्थिक और भौतिक आवश्यकताओं की परिपूर्ति तथा भुगतान पार्टी के द्वारा अनिवार्य किया जाए । ऐसा न करनेवाली पार्टी की वैधानिक मान्यता समाप्त कर दिया जाए तथा उसके केन्द्रीय समिति सदस्यों को सदा के लिए राजनीति से वहिष्कृत कर दिया जाए । इससे एक तरफ युवाओं का भविष्य सुरक्षित होगा तो वही दूसरी ओर कुकुरमुत्ते की तरह उगनेवाली राजनीतिक पार्टियों पर अंकुश लगने से भ्रष्टाचार न्यून होता जाएगा ।
उपरोक्त विचारधारा को सबलता प्रदान करने के लिए राजनीति में युवाओं की हस्तक्षेपकारी भूमिका को बढ़ाने के लिए ‘ अंशकालिक राजनीति’ की अवधारणा उपयुक्त होगी । सभी राजनीतिक दलों और समाज को इससे अवगत होना पड़ेगा । ऐसा करके युवा पढ़ाई कर सकते हैं, काम कर सकते हैं और साथ मिलकर राजनीति को आगे बढ़ाने में मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हो सकते हैं ।
राजनीति अवसरों और चुनौतियों, संवेदनाओं और संभावनाओं दोनों से भरी होती है । नेपाल की वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को विकास का मार्ग तय करने के लिए एक कुशल नेतृत्व की तलाश है । नई पीढ़ी की भी इच्छा है कि वह अतीत की ओर न देखते हुए, वर्तमान और भविष्य को देखते हुए एक सशक्त नेपाल देश का निर्माण कर सके । यदि किसी कुशल राजनीतिज्ञ को सरकार का नेतृत्व करने को मिलता है, तो वह आमूल–चूल परिवर्तन करने का प्रयास करता है । एक मजबूत नींव का मतलब एक मजबूत प्रणाली है । व्यक्ति की ताकत से नहीं बल्कि व्यवस्था की ताकत से देश में सुशासन और सुधार की नींव पड़ती है । कानून के शासन और सुशासन के बिना राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन लगभग असंभव है । कुशल नेतृत्व सरकारी कार्यभार संभालने से पहले समय और माँग के महत्व का अध्ययन करके जनता से प्राप्त जनादेश को पूरा करने के लिए नीति, कार्यक्रम और बजट का व्यवस्थापन और कार्यान्वयन करता है ।
नई पीढ़ी की इच्छा संविधान और नई व्यवस्था की वकालत करने की नहीं, बल्कि इस व्यवस्था को उपलब्धि मूलक व्यवस्था के रूप में विकसित करने की है । जागरूक नई पीढ़ी निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था और संवैधानिक सर्वोच्चता में आश्वस्त है । संविधान लागू होने के आठ साल बाद भी संविधान के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक महत्वपूर्ण कानून अभी तक नहीं बन पाये हैं । यह सीधा संविधान का ही उल्लंघन है । वर्तमान समय में कानून का शासन और सुशासन के प्रति प्रतिबद्धता तथा भ्रष्टाचार के प्रति सून्य सहनशीलता अपरिहार्य है । कानून के वास्तविक व्यवहार और सुशासन में जिम्मेदारी की परम आवश्यकता है, कानूनी दावपेच के माध्यम से स्वार्थी ढंग से शासन करने की प्रवृति राष्ट्रघाती प्रवृति है । इस संबंध में सभी की गंभीरता अनिवार्य है । ऐसों पर राष्ट्रद्रोह का मुद्दा लगाकर सलाखों के पीछे चक्की पीसने के लिए भेजना देशहित मे होगा । जबकि नेपाल में ठीक इसका उल्टा हो रहा है । बालेन के ऊपर कार्यवाही का जो जुनून सरकार पर सवार है, वह इसी का प्रमाण है । वर्तमान में बालेन काठमांडू के मेयर न होकर अन्य किसी पालिका के होते तो आज वो अच्छाई के बदले जेल मे होते । परंतु काठमांडू के प्रबल जागरूक युवाओं के आगे षडयंत्रकारी सरकार को घुटना टेकने पर मजबूर होना पड़ रहा है । फिर भी सतर्कता की आवश्यकता है । हमें इससे सीख लेना ही पड़ेगा । अन्यथा आत्मविनास को स्वीकारना पड़ेगा ।
राजनीतिक स्थिरता एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसका असक्षम उदाहरण नेपाल में पिछले ३० वर्षों में २८ बार सरकार बदलने का है । राष्ट्रीय समृद्धि और सशक्तता के लिए योजना आयोग पंचवर्षीय योजना बनाता है, लेकिन कोई अकेला नेतृत्व ऐसी योजना लागू नहीं कर सकता । सरकार बदलते ही योजनाओं की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं । इस प्रकार, योजना के उचित कार्यान्वयन की कमी के कारण, नेपाल के कुछ बुनियादी ढांचे के सतत विकास में बाधाएँ देखी गई हैं । चूँकि अल्प समय में सरकार बदल रही है इसलिए महत्वपूर्ण मुद्दे की प्राथमिकता न्यून हो जाती है । सरकार के बदलते ही विचार बदल जाते हैं, और विचार के कारण व्यवहार बदल जाता है । बस, इसी अदलाबदली में हमारा अस्तित्व समाप्ति की ओर गतिशील हो गया है । लूट खसोट चरम पर है । देश छोड़कर भागाभाग होने लगा है । सारे उच्चपदस्थ कर्मचारी और नेताओं ने अपने अपने संतानों को विदेशों मे व्यवस्थित करने लगे हैं; ताकि देश जब डूबने लगेगा तो भागकर सुरक्षित जीवन तो जी सकूँगा । और हम मूर्ख लोग उन्हीं की हाथों मे देश का बागडोर देकर स्वयं को सुरक्षित होने का गौरवगान कर रहे हैं ।
ध्यान रखें, जनता की अपेक्षाओं और सरकार की नीतियों के बीच कोई प्रभावी समन्वयकारी शक्ति नहीं है । एक ओर जहां राजनीतिक दलों के प्रति आस्था कम हो रही है, वहीं दूसरी ओर संवैधानिक संस्थाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी संवेदनशील संस्थाओं का अत्यधिक राजनीतिकरण समाज को विकृत कर रहा है । राज्य संरचना की महत्वपूर्ण संस्थाएँ अभी भी संस्थागत नहीं हो पाई हैं और अपेक्षाकृत घटिया प्रदर्शन कर रही हैं । दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश और भूटान की आर्थिक प्रगति; स्थायी राजनीति और सरकार का परिणाम है, जबकि नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और अफगानिस्तान; राजनीतिक अस्थिरता में फंसे हुए हैं और समृद्धि मृगतृष्णा बन गई है । विश्व समुदाय में नेपाल की नवीनतम सामाजिक–आर्थिक उपस्थिति पर ध्यान देकर देखा जाए । नेपाल भ्रष्टाचार में ३४ अंकों के साथ ११३वें, संपत्ति सूचकांक में ११०वें, सुरक्षा में ९४वें, अस्थिर राजनीति में ४९वें, सुशासन में ७२वें, व्यापार करने में ७११वें, लोगों की आजीविका में १२३वें, सतत विकास में ९९वें, पासपोर्ट हैकिंग, न्याय में ८५वें स्थान पर है । और कानून के शासन पर ६९वें, स्वतंत्र प्रेस और लोकतंत्र पर जीडीपी पर क्रमशः १००वें और १०२वें स्थान पर हैं । कैपिटा इंडेक्स १५८वें, ग्लोबल कॉम्पिटिटिव इंडेक्स ९८वें स्थान पर है ।
उल्लिखित संकेतक दुखद होने के साथ ही इसमें अविलंब सुधार के लिए तीव्र सक्रियता की जरूरत है । सुधार का लक्ष्य सिर्फ आर्थिक समृद्धि ही नहीं बल्कि सामाजिक न्याय के साथ आर्थिक प्रगति भी है । नागरिक–हितैषी सामाजिक न्याय ही मुख्य कारण है कि यूरोपीय देश सुशासन और सामाजिक न्याय के मामले में आगे बढ़ रहे हैं । और यह कार्य ये वृद्ध महारथी लोग नहीं करेंगे । उन्हें हमारी विकास से कोई लेनादेना नहीं है । वो तो पके हुए आम है । अब गिरा तब गिरा; उन्हें अपने संतानों का भविष्य सवारना था सो हम युवाओं के शक्ति को प्रयोग कर सफल हो गए । अब भी हम पार्टियों के झंडे लेकर पागलों की भांति सड़कों पर आंदोलन करेंगे तो आनेवाली पीढ़ी हम पर अवश्य हो थूकेंगी । अतः गंभीरता पूर्वक विचार कर हम युवाओं को सक्रिय होने की जरूरत है ।
देश की राजनीति को एक ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो सैद्धांतिक, वैचारिक और संगठनात्मक रूप से नयापन प्रदान कर सके ताकि संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य को मजबूत और संस्थागत बनाया जा सके और नई गति पैदा करने के लिए राजनीति में नई और युवा पीढ़ी की भूमिका और भागीदारी सुनिश्चित की जा सके । नई पीढ़ी को नई सोच के साथ एकजुट करने और विद्वेष और अस्थिरता को दूर कर प्रगति की ओर ले जाने की जरूरत है । मौजूदा सरकारी खर्चों को कम करते हुए लोगों की सेवा वितरण और विकास कार्यक्रमों में प्राथमिकता के आधार पर तीनों स्तरों की सरकार को समन्वय से काम करना जरूरी है । देश में युवा रोजगार का नेतृत्व सामाजिक–आर्थिक परिवर्तन के लिए अपरिहार्य है । समृद्ध देशों का चुनावी एजेंडा रोजगार सृजन पर केंद्रित राहत है ।
हमारे जैसे सक्रिय जनशक्ति से समृद्ध देश में जातीय और प्रांतीय मुद्दे को उठाकर अराजक राजनीतिक वातावरण तयार किया जात है । हम युवाओं को उग्र राष्ट्रवाद के लिए प्रेरित करते हैं, लेकिन हम अपनी युवाओं के लिए देश के भीतर पसीना बहा सकें ऐसा माहौल बनाना नहीं चाहते हैं । सालाना पांच लाख युवा विश्वविद्यालय से श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन केवल ज्ञछ प्रतिशत को ही रोजगार मिलता है । प्रतिदिन लगभग २,५०० युवा विदेश प्रवास करते हैं । अतः अब एक ऐसी व्यवस्था जो युवाओं को रोजगार और घरेलू उत्पादन पर जोर दे सके; की आवश्यकता है । गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य, सुरक्षित आवास, स्वच्छ वातावरण, सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना अब अपरिहार्य है । एक ऐसे नेता की आवश्यकता है जो नई पीढ़ी को उद्यमिता की ओर प्रेरित और आकर्षित कर सके, उच्च आय स्रोतों की पहचान कर युवा जनशक्ति के समक्ष प्रस्तुत कर सके । उपरोक्त विषयों को अक्षरशः व्यवहार में लागू करने के लिए देश के प्रत्येक युवाको समग्र मानवीय भाव तथा राष्ट्रीय सम्मान के साथ एकताबद्ध होकर आगे आना होगा । अन्यथा भगवान भी हमारी रक्षा नहीं कर सकेंगे ।

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