Tue. Mar 18th, 2025

नेवारी संस्कार में सामूहिक बेलविवाह और ब्रतवन्ध साथ सम्पन्न

नेपालगन्ज/(बाँके) पवन जायसवाल । नेवारी समुदाय की संस्कार विधिवत रुप में बालिकाएँ की सामूहिक ईही (बेल विवाह) और बालकों के लिये सामूहिक कय्ता पूजा (ब्रतवन्ध तथा उपनयन संस्कार) कार्यक्रम नेपालगञ्ज में भव्यतापूर्वक सम्पन्न हुआ है ।

पश्चिम नेपाल की प्रसिद्ध शक्तिपीठ बागेश्वरी मन्दिर परिसर में नेवाः पुचः बाँके ने विगत के वर्ष जैसे ही इस वर्ष भी बसन्त पञ्चामी की अवसर पर भव्यतापूर्वक सम्पन्न हुआ है । 

बाँके जिला में बसोबास कर रहे नेवार समुदाय की साझा तथा छाता संगठन नेवाः पुचः बाँके जिला के अध्यक्ष जितेन्द्र कुमार जोशी और चन्द्र बहादु श्रेष्ठ के संयोजन में आयोजन किया गया नेवार समुदाय की अनिवार्य संस्कार मानने वाली विधिवत रुप में सम्पन्न किया गया बालिकाएँ की सामूहिक ईही (बेल विवाह) में बाँके, बर्दिया, सुर्खेत, दैलेख और काठमाण्डौ के १२ लोग बालिकाएँ की सहभागिता रही थी ।

इसी तरह हिन्दू धर्मावलम्वियों की अनिवार्य संस्कार के रुप में माने वाला संस्कार बालकों के लिये सामूहिक कय्ता पूजा (ब्रतवन्ध तथा उपनयन संस्कार) कार्यक्रम में ७ लोग  बालकों की सहभागिता रही थी । कार्यक्रम में करीब ३ सौ लोगों की उपस्थिति रही थी ।

जितेन्द्र कुमार जोशी की अनुसार नेवाः देय् दवू बाँके जिला शाखा और नगर कमिटी, मिसाः देय् दवूः, भृकुटीनगर गुठी, झिगु नेवाः गुठी घरवारीटोल, कारकाँदो गुठी, राँझा गुठी, भीमसेन गुठी कोहलपुर लगायत की सहकार्य में सम्पन्न वह कार्यक्रम में काठमाण्डौं से आये हुये नेवाः व्राम्हण मूल गुरु विजय राजोपाध्याय और अर्का गुरु विरु राजोपाध्याय से  दो दिन तक नेवारी संकार और परम्परा अनुसार विधिवत रुप में किया गया था । मूल गुरु विजय राजोपाध्याय नेवाः देय् दवू के केन्द्रीय सचिव भी रहे हैं ।

यह भी पढें   सांसद रघुजी पंत और ज्ञानबहादुर शाही के बीच संसद् में हुई बहस

वह कार्यक्रम सफल बनाने केक लिये अध्यक्ष जितेन्द्र कुमार जोशी, संयोजक चन्द्र बहादुर श्रेष्ठ, उपाध्यक्ष हरिश्चन्द्र श्रेष्ठ, सचिव विवेक श्रेष्ठ लगायत समिति के सदस्यों की सक्रियता रही थी ।

नेवाः पुचः बाँके के पार्षद् पूर्णलाल चुके ने नेवार समुदाय में अनिवार्य संस्कार के रुप में सामूहिक ईही (बेल विवाह) और बालकों के लिये सामूहिक कय्ता पूजा (ब्रतवन्ध तथा उपनयन संस्कार) के लिये बाँके और पडोसी जिला से नेवाः पुचः स्थापना से पूर्व इस क्षेत्र में विधिवत पूजा करने पुजारी नही मिलने की कारण से काठमाण्डौं, बुटवल, पाल्पा में जाने की वाध्यता रही है नेवाः पुचः ने नेपालगञ्ज में अइसे ही सामूहिक कार्यक्रम की आयोजन की शुरुआत की बताया ।

वरिष्ठ पत्रकार नेवाः पुचः बाँके के पार्षद् पूर्णलाल चुके ने अपनी बिचारों कहा नेपाल में बसोबास करनेवाले विभिन्न जातजातियाँ मध्ये पृथक और विशिष्ठ प्रकार की संस्कृति, संस्कार रही नेवार जाति की नेवारशब्द की अर्थ नेपाल की बासिन्दाकहा जाता है नेपाल देश स े भी इस जाति की प्रत्यक्ष परोक्ष सम्बन्ध रही है । नेवार जाति की अपनी भाषा, लिपि, सम्वत्, संस्कार और संस्कृतियाँ है लेकिन व्राम्हण से सरसफाई करने वाले (स्वीपर) अलग अलग जातियाँ हैं ।

यह भी पढें   तस्वीर जलाने को आधार बनाकर किसी को गिरफ्तार करना उचित नहीं – प्रचंड

उल्लेखनीय है, ७ वर्ष होने की बाद बालिका को बेल को साक्षी रखकर सिन्दूर डलने की बेलविवाह संस्कार (ईही) संस्कार प्राचीनकाल से चलते आ रही है बताया गया जा रहा है । नेवारी भाषा में ईहीकी अर्थ विवाहहै । यह संस्कार ने नेवार महिलाएँ कभी भी विधवा न होने की मान्यता स्थापित की है । ईही एक समारोह है, जिस में किशोरावस्था की वालिकाएँ को भगवान विष्णु के प्रतीक सूवर्ण कुमार से विवाहकिया जाता है । इसी लिये  विवाहित महिला की श्रीमान का मृत्यु हुआ तो विष्णु से विवाह होने से विधवा नही माना जाता है और इसी तरह पहिले से ही पति जीवित रहे है विश्वास किया जाता है ।

अइसे ही नेवार समुदाय क बालक अर्थात् बटुक के लिये किया जानेवाला अनिवार्य संस्कार व्रतबन्ध को केय्ता पूजाकहा जाता है । केय्ताको अर्थ लगौँटी होती है । लगौँटी को विधिवत् पूजा करके बटुक अर्थात् बालक को लाज बचाने की सीखाया जाता है । बालक के फुपूm (बुवा) ने सात टुकडा कपडा (बस्त्र) जोडकर सीलाया गया लगौँटी ने ७ ही लोक में अपनी लाज बचाना की सन्देश देनी की आभास होती है । यह संस्कार में बालक के मामा और फुफू (बुवा) की प्रमुख भूमिका रहती है । 

नेवार समुदाय में व्रतबन्ध (कय्ेता पूजा) की बारे में ऋग्वेद (ब्रम्ह गायत्री मन्त्र) और ऋग्वेद (शिव गायत्री मन्त्र) में उल्लेख की अनुसार नेवारों ने ब्रह्मचर्य की अनुष्ठान पालन के रूप में कयेता पूजा कहने की उपनयन समारोह करती है, यह जीवन की परम्परागत चार चरणो में पहली चरण है । अनुष्ठान की समय में, जवान लडका ने ब्रह्मचारी धार्मिक जीवन क लिये परिवार और वंश त्यात करता है । उस के मूड के उपर केवल चोटिया बाहेक पूरै काटा जाता हैउस को पीला ÷सुन्तरा रंग की बस्त्र लगाना पडता है, उस ने अपने आफन्तों से चामल माँगकर संसार में घुमने के लिये तयार होना पडता है । ए तपस्वी आदर्श को प्रतीकात्मक रूप में पूरा करने के बाद, उस को अपने परिवार ने घरधनी को जीवन, पति और पिता के रूप में अन्तिम कर्तव्य ग्रहण करना वापस बोला सकते हैं । दो बार जन्मे (ब्राह्मण और क्षेत्रीय) नेवारों राजोपाध्याय और छथरिया नेवार ब्राह्मणों ने थप रूप में उपनयन दीक्षा करते हैं जहाँ लडका ने अपनी जनेऊ (संस्कृतः यज्ञोपवित) और गुप्त वैदिक मन्त्रें प्राप्त करते हैं । उस के बाद लडका को पूर्ण रूप में द्विज के रूप में अपनी जातिय हैसियत में सम्मिलित किया जताा है और अब से सभी सामान्य नियम और अन्य जातीय दायित्वों पालन करने की दायित्व तथा कर्म चली है माना जाता है ।

About Author

आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com