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फिल्म ‘राजागंज’ को प्रदर्शन से पहले हटाए गए केपी ओली के बयान

काठमांडू, 13 मार्च । नेपाल के केंद्रीय चलचित्र जाँच समिति ने फिल्म राजागंज में पूर्व प्रधानमंत्री एवं तत्कालीन एमाले अध्यक्ष केपी शर्मा ओली के एक पुराने बयान को हटाने का निर्देश दिया है। इस फैसले के बाद ही फिल्म को प्रदर्शन की अनुमति दी गई।

फिल्म राजागंज 1 चैत से रिलीज हो रही है, लेकिन निर्देशक दीपक रौनियार को इसमें से ओली के बयान से जुड़े दृश्य और संवाद हटाने पड़े। इसके बावजूद फिल्म की अवधि (लेंथ) यथावत रखी गई है। निर्देशक रौनियार का कहना है कि वे इन दृश्यों को पूरी तरह हटाने के बजाय खाली स्थान छोड़ देंगे ताकि दर्शक समझ सकें कि कुछ महत्वपूर्ण अंश हटाए गए हैं।

क्या था विवादास्पद बयान?

फिल्म में 2072 (2015) के मधेश आंदोलन के दौरान केपी ओली द्वारा दिए गए एक बयान को दिखाया गया था। उस समय ओली ने मधेशी दलों पर कटाक्ष करते हुए कहा था, “दो-चार आम झरने से कुछ नहीं होता, पेड़ ज्यों का त्यों रहता है।” यह बयान मधेशी समुदाय को अपमानजनक लगा था और आंदोलन के दौरान इसे लेकर काफी विवाद हुआ था।

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समिति की आपत्ति और सेन्सर बोर्ड का फैसला

नेपाल के सेन्सर बोर्ड ने इस दृश्य को हटाने का निर्देश दिया, यह कहते हुए कि प्रधानमंत्री के रूप में ओली द्वारा दिए गए बयान को बिना अनुमति के फिल्म में शामिल नहीं किया जा सकता। जाँच समिति के सदस्य ऋषिराज आचार्य ने कहा, “कोई व्यक्ति एक प्रसंग में जो बोलता है, उसे प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तुत करना उचित नहीं है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति एक संस्था होते हैं, व्यक्तिगत बयान को आधिकारिक रूप से इस्तेमाल करने की अनुमति लेनी पड़ती है।”

निर्देशक का विरोध और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल

निर्देशक दीपक रौनियार ने इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है। उनका कहना था, “हमने इस दृश्य को इसलिए रखा था ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संदेश दिया जा सके, लेकिन हमें इसे हटाने के लिए मजबूर किया गया।”

उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री जनता के सेवक होते हैं, इसलिए उनकी बातों पर सवाल उठाने का हक हर नागरिक को होना चाहिए। उन्होंने पूछा, “अगर फिल्म में प्रधानमंत्री शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते, तो क्या हम फिर से राजा प्रणाली की ओर जा रहे हैं?”

फिल्म में हटाए गए दृश्य का खाली स्थान छोड़ा जाएगा

हालांकि जाँच समिति के फैसले के आगे फिल्म निर्माताओं को झुकना पड़ा, लेकिन उन्होंने इसके खिलाफ अनूठा विरोध करने का फैसला किया। निर्देशक रौनियार ने कहा कि फिल्म के विवादास्पद हिस्से को पूरी तरह हटाने के बजाय वहां खाली स्थान छोड़ दिया जाएगा ताकि दर्शक खुद समझ सकें कि कौन सा दृश्य हटाया गया है और क्यों।

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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस

नेपाल में यह मामला कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक नई बहस छेड़ रहा है। क्या सरकार और संबंधित संस्थाएं फिल्मकारों को स्वतंत्र रूप से ऐतिहासिक घटनाओं को प्रस्तुत करने की अनुमति नहीं देना चाहतीं? इस मुद्दे पर आगे क्या रुख अपनाया जाएगा, यह देखना बाकी है।

पवन बराइली, काठमांडू (नयाँ पत्रिका) से ।

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