देश का विखण्डन मधेश के द्वारा नही,बल्कि पहाड़ी वर्ग की मानसिकता ही टुकड़े कर देगी : ‘समय–सन्दर्भ विचार श्रृंखला’ मे वक्ताओं का आरोप
काठमान्डौ, चैत्र १५ गते हिमालिनी हिन्दी मासिक पत्रिका के द्वारा देश की वर्तमान दशा और दिशा को ध्यान में रखते हुए ‘समय–सन्दर्भ विचार श्रृंखला’ की शुरुआत की गई है । सन्दर्भ था, संविधान निर्माण और आन्दोलन का औचित्य । कार्यक्रम अनामनगर स्थित भेटघाट रेस्टुरेन्ट में आयोजित किया गया । कार्यक्रम में श्री माथवर सिंह बस्नेत, श्री रामाषीश जी, श्री अमरदीप मोक्तान, श्री मति सरिता गिरि, श्री कृषण हछेथु, श्री युगनाथ शर्मा, श्री विजय कर्ण, श्री तुलानारायण साह, श्री दीपेन्द्र झा, श्री रवि जी और श्री युग पाठक जी की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही । कार्यक्रम का संचालन हिमालिनी की सम्पादक डा. श्वेता दीप्ति ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन हिमालिनी की महाप्रबन्धक कविता दास के द्वारा दिया गया, उन्होंने यह उम्मीद जतायी कि भविष्य में भी हिमालिनी ऐसे कार्यक्रम की आयोजना करेगी और अतिथियों का पूर्ण सहयोग हिमालिनी को मिलेगा ।
स्वागत मंतव्य के क्रम हिमालिनी की सम्पादक डा. श्वेता दीप्ति ने कहा कि देश की दशा और दिशा किसी ना किसी रूप में सबको प्रभावित कर रही है । सभी विचलित हैं । इतिहास गवाह है कि असंतोष ने विखण्डन को जन्म दिया है । उन्होंने कुछ मुख्य बिन्दु को सामने रखा जैसे क्या राजनीतिज्ञ सचमुच संविधान निर्माण करना चाहते हैं ? क्या देश के असंतुष्ट पक्ष को सम्बोधित करना सरकार का काम नहीं ? क्या संघीयता का मुद्दा इतना विकट है कि अब तक उसका समाधान नहीं निकल पा रहा ? वक्ताओं ने अपने मंतव्य में इन्हीं मुद्दों को समेटा और अपने महत्वपूर्ण विचारों को रखा । माननीय माथवर सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि संविधान बनने वाला नहीं है और अधिकार प्राप्ति के लिए आन्दोलन के अलावा कोई विकल्प भी नहीं है । उसी तरह अमर मोक्तान ने अपने विचारों को रखते हुए कहा कि जबतक जातिगत राजनीति होगी तब तक सुधार और संविधान बनने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही । श्री कृष्ण जी ने कहा कि एजेन्डा परिष्करण की आवश्यकता है । श्री तुलानारायण ने मधेश की स्थिति को स्पष्ट करते हुए जोरदार शब्दों में कहा कि जबतक शासन में हम नहीं हैं तबतक प्रशासन हमारे खिलाफ रहेगा इसलिए सर्वप्रथम असमानता को हटाना है तभी कुछ सम्भव हो पाएगा क्योंकि मधेशियों की उपस्थिति हर क्षेत्र में नगण्य है । इसी क्रम में युग पाठक ने कहा कि सोचने वाली बात यह है कि हमारी पुरानी पीढ़ी हमें क्या दे रही है, हम यही नहीं समझ पा रहे । जबतक नई पीढ़ी सामने नहीं आएगी या उन्हें अवसर नहीं दिया जाएगा नेपाल ऐसे ही पीछे पड़ता चला जाएगा । सरिता गिरि जी ने कहा कि बात उभर कर आ रही है कि मधेश में दो और पहाड़ में आठ प्रदेश अगर यह हुआ तो संघीयता का एजेन्डा ही फेल हो जाएगा । वहीं अधिवक्ता दीपेन्द्र झा ने अपने विचार को रखते हुए कहा कि विजेता और हारे हुए के बीच क्या समझौता हो सकता है ? जबतक असमानता है तबतक कोई सहमति की सम्भावना नहीं है । श्री विजय कर्ण ने भी इसी बात पर जोर दिया कि एक सुनिश्चित षड्यंत्र के तहत मधेश को कमजोर किया जा रहा है और इसे रोकने के लिए आन्दोलन तो होगा ही । विचार के क्रम में ही युगनाथ शर्मा जी ने जोरदार शब्दों में कहा कि देश का मधेश के द्वारा विखण्डन नहीं होगा बल्कि इसे पहाड़ी वर्ग और उसकी वर्चस्व की मानसिकता ही टुकड़े कर देगी और कोई शक नहीं कि कल का नेतृत्व सी.के.राउत के हाथ में चला जाय और अन्त में कपिलवस्तु से आए रवि जी ने भी युगनाथ जी की बातों का समर्थन किया और कहा कि अगर सोच नहीं बदली तो कल अगर विखण्डन होता है तो इसका सारा आरोप सत्ता को जाएगा ।
कुल मिला कर वक्ताओं के विचारों के मद्दे नजर यह बात सामने आई कि, अधिकार लेना है तो आन्दोलन का होना तय है क्योंकि सत्ता कुछ देने के हक में ही नहीं है और सत्ता की यह मानसिकता देश को विखण्डन के मोड़ पर ला रही है । हिमालिनी का यह प्रयास एक सार्थक प्रयास रहा जिसने एक मंच पर विभिन्न क्षेत्र से जुड़े विद्वानों को लाने की कोशिश की और उनके विचारों से अवगत हुई ।