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हरि शयनी एकादशी की विशेष एवं विस्तृत जानकारी एवं कथा

6 जुलाई रविवार को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाया जाएगा।
इसी एकादशी के दिन से चतुर्मास व्रत का भी आरंभ होता है। इस एकादशी की कथा का वर्णन पद्पुराण में किया गया है और इसके पुण्य एवं लाभ के बारे में बताया गया है।

*एकादशी व्रत की पूजन विधि*
एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण कर घर के मंदिर में पवित्र आसन लगा के जलपात्र में गंगाजल डाल के गंगा का आवाहन चंदन पुष्प डाल के गंगा का मानसिक पूजन कर आचमन, पवित्री, गायत्री जप, भूमि शुद्धि, भूमि पूजन, स्वयं को चंदन लगा के, दीप प्रज्वलन, पुनः पवित्री करण, पवित्री धारण, दिशा शुद्धि स्वस्ति वाचन, व्रत संकल्प, गणपति पूजन, कलश स्थापन, नवग्रह एवं पंच देवता पूजन कर सामने एक चौकी पर आसन बिछा के उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या शालिग्राम को स्थापित करें*
*पुनः भगवान विष्णु का ध्यान, आवाहन, स्थापन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, गंगाजल, पंचामृत, फिर गंगाजल से स्नान, वस्त्र, चंदन, फुल, फूलमाला, तुलसी पत्र, तिल, धूप, दीप, नैवेद्य, दक्षिणा अर्पण कर ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, मंत्र जप करें, विविध स्तोत्रों का पाठ करें, एकादशी व्रत कथा का श्रवण कर विशेष प्रार्थना और आरती करें।*

पुनः पवित्र फलाहार कर विश्राम करें एवं सायं में भी स्नान पूजन आरती कर रात्रि जागरण करें।

पुनः अगले दिन प्रातः काल ने स्नान कर श्री गणेश एवं श्री हरि विष्णु का उत्तर पूजन कर
*🌹जौ, चना दाल एवं तुलसी पत्र और गंगाजल लेकर भोग लगावें🌹*
और आरती करें एवं पुनः प्रार्थना पूर्वक नमस्कार कर लगाए गए भोग से व्रत का पारणा करें।
शयनी व्रत को देव शयनी और पद्मनाभ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्मपुराण में बताया गया है कि जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम और महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि आषाढ़ महीने में शुक्ल पक्ष की जो एकादशी होती है उस दिन से 4 महीने तक भगवान विष्णु अपने एक रूप में पाताल लोक में राजा बलि को दिए वचन के अनुसार निवास करते हैं और अपने चतुर्भुज रूप में बैकुंठ में शेषनाग की शैय्या पर शयन करते हैं। इस एकादशी के दिन से 4 महीने तक भगवान के शयन में चले जाने से इस एकादशी को शयनी, देवशयनी एकादशी, पद्मनाभ, महाएकादशी और थोली एकादशी कहते हैं।

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*देवशयनी एकादशी व्रत कथा*

देवशयनी एकादशी के विषय में पद्मपुराण में बताया गया है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु राजा बलि को दिए वचन को निभाने के लिए हर साल पाताल लोक में वामन रूप में पहुंचते हैं। और इसी रूप में पाताल में 4 महीने रहते हैं। दरअसल वामन अवतार के समय जब वामन बने भगवान विष्णु ने राजा बलि से चार पग सब कुछ ले लिया तब राजा बलि ने भगवान से कहा कि प्रभु सब कुछ मैंने आपको सौंप दिया है अब मुझ पर कृपा कीजिए। भगवान ने राजा बलि की दानशीलता और भक्ति को देखते हुए वरदान मांगने के लिए कहा। राजा बलि ने कहा कि प्रभु आप मेरे साथ पाताल लोक में निवास करें। भगवान भक्त की विनती को टाल नहीं पाए। और राजा बलि के साथ पाताल लोक में निवास करने लगे। इधर माता लक्ष्मी भगवान विष्णु का बहुत दिनों तक कोई सूचना न मिलने के कारण, ऐसे में देवी लक्ष्मी बहुत परेशान हो गईं और ऋषि नारद से उनकी खोज करने का आदेश दिया। फिर नारद ने उन्हें सारा वृतांत बताया। तब माता लक्ष्मी ने नारद जी से भगवान को पाने का मार्ग पूछा। फिर इन दोनों की गुप्त योजना में बहन बन कर राखी के बंधन में राजा बलि को बांधकर उन्होंने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त करवाया। इसी समय भगवान ने राजा बलि को वरदान दिया था कि वह हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल देव प्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में रहेंगे। इस समय को चतुर्मास कहते हैं।

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*देवशयनी एकादशी की दूसरी कथा*
शंखचूड़ की
एक अन्य कथा है कि भगवान विष्णु का शंखचूड़ नामक असुर से वर्षों युद्ध चला। इस युद्ध में भगवान काफी थक गए। तब देवताओं ने आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की और उनसे निवेदन किया कि आप काफी थक गए हैं अतः आप शयन करें और जब तक आप शयन करें सृष्टि का काम रूप को सौंप दें। देवताओं की विनती पर भगवान देवलोक के 4 प्रहर जो पृथ्वी के 4 महीने बराबर होता है शयन करने चले गए। इस घटना के बाद से हर साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी का व्रत पूजन किया जाने लगा।

*देवशयनी एकादशी की तीसरी कथा*
राजा मान्धाता की
देवशयनी एकादशी के प्रभाव और लाभ को लेकर एक कथा राजा मान्धाता की है। राजा बहुत ही धर्मात्मा थे लेकिन एक बार कई वर्षों तक इनके राज्य में बरसात नहीं हुई और सूखा पड़ गया। जनता व्याकुल हो गई और राजा परेशान। ऐसे में इन्हें एक ऋषि ने देवशयनी एकादशी व्रत करने की सलाह दी। राजा ने संपूर्ण प्रजा के साथ देवशयनी एकादशी का व्रत किया जिससे इनके राज्य में खूब बरसात हुई और फसलें लहलहा उठी। इसके बाद से राजा ने हर साल अपनी प्रजा से इस एकादशी के व्रत करने का आदेश दिया। तभी से आमजनों में इस एकादशी का व्रत प्रचलित हो गया।

*देवशयनी एकादशी व्रत का लाभ और पुण्य*
देवशयनी एकादशी के व्रत के लाभ और महत्व का वर्णन करते हुए पद्म पुराण में बताया गया है कि इसका पुण्य ऐसा है कि चार मुखों वाले ब्रह्माजी भी इसके पुण्य का वर्णन नहीं कर सकते हैं। जो व्यक्ति इस व्रत को करता है वह पाप मुक्त व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान पाने का अधिकारी बन जाता है। शयनी एकादशी का व्रत करने वाला महापुण्यवान होता है और इन्हें एक साथ कई यज्ञ और उत्तम-उत्तम वस्तुओं के दान का पुण्य प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो व्यक्ति देवशयनी एकादशी का व्रत करता है वह भगवान विष्णु का परम प्रिय होता है।

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देवशयनी चतुर्मास व्रत नियम
देवशयनी के दिन भगवान विष्णु पाताल में सोने चले जाते हैं इसलिए देवशयनी से देव प्रबोधिनी एकादशी तक मनुष्य को पलंग पर नहीं सोना चाहिए। इस समय में जो व्यक्ति भूमि पर शयन करता है और पलाश के पत्तों पर भोजन करता है। नियमित दीप दान करता है और ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह पाप मुक्त व्यक्ति बैकुंठ में स्थान पाता है और भगवान की सेवा में रहता है।
चरणों में भक्ति स्थान प्रदान करें।*
*आप सबके सभी मनोकामना पूर्णता और सर्व साफल्यता लिए श्री हरि विष्णु से मेरी विशेष प्रार्थना, और आपके सुखी जीवन की हार्दिक शुभकामना…*
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*हरि ॐ गुरुदेव..!*
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*ज्योतिषाचार्य आचार्य राधाकान्त शास्त्री*
*🌹शुभम बिहार यज्ञ ज्योतिष आश्रम🌹*
*राजिस्टार कालोनी, पश्चिम करगहिया रोड, वार्ड:- 2, नजदीक कालीबाग OP थाना, बेतिया पश्चिम चम्पारण, बिहार, 845449,*
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*सहायक शिक्षक:- राजकीयकृत युगल प्रसाद +2 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भैसही, चनपटिया,बेतिया बिहार*
*व्हाट्सअप एवं संपर्क:-*
*9934428775*
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*🌺(अहर्निशं सेवा महे)🌺*
*आवश्यक वार्तालाप का समय:- प्रातः 5 बजे से 9 बजे तक एवं सायं 4 बजे से रात्रि 11 बजे तक।*
*!!भवेत् सर्वेषां शुभ मंगलम्!!*

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