बीरगंज बिद्रोह- अलग राष्ट्र के रूप में मधेश में जमीनी तैयारी शुरू : मुरलीमनोहर तिवारी
मुरलीमनोहर तिवारी (सिपु), बीरगंज, २ सेप्टेम्बर | मधेश बिद्रोह १ में, जन प्रदर्शन में प्रहरी द्वारा गोली चलाई गई और शहादत हुई। जबकि मधेश बिद्रोह ३ में, प्रहरी के दमन के खिलाफ लड़ते, संघर्ष करते हुए शहादत हुई। दोनों हालात पर गौर करने से, पता चलता है, की मधेश में कितना आक्रोश है। मधेश अब ज्यादा निडर और परिपक्व हो गया है।
अब बिरोध का स्वरुप जहा पंहुचा है, वहा मधेशी दल गौण हो चुके है। ऐसा लग रहा है मधेशी जनता आंदोलन का सञ्चालन स्वयं कर रही है। पर्सा के पोखरिया नगरपालिका में एक आंदोलनकारी खुद को, मधेशी दल के कार्यकर्त्ता के रूप में परिचय देने पर, पूरा जनसैलाब उससे भीड़ गया। सब का एक ही नारा था, यहाँ किसी दल के नहीं सिर्फ और सिर्फ मधेश (मधेशी) से परिचय दो। एक ही दिन में पर्सा के आधे से ज्यादा शस्त्र और जनपद की चौकिया खाली हो गई या जला दी गई।
बिरगंज नारायणी अस्पताल के भीतर बिना किसी हंगामे के प्रहरी ने गोली चला दी, जिसमे प्रहरी और डॉक्टर को भी लगी। गोली चलाने वाला प्रहरी नशे में था। बंद के दौरान प्रहरी को पूरा नशा कराकर गोली चलवाने की बात भी सामने आई है। अस्पताल में ही अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार वादी संगठन के एक प्रतिनिधि ने बताया की आंदोलनकारी को जो गोली, बुलेट, और छारा लगी है वो नेपाल सरकार के आधिकारिक बैलेस्टिक से नहीं मिलाता। उसका तर्क था कि या तो अंतर्राष्ट्रीय जगत में दमन साबित ना हो इसलिए प्राइवेट गोलिया प्रशासन प्रयोग कर रहा है। या प्रहरी खुद में ही घुसपैठ करा कर मधेशी की हत्या करा रहा है। ये अवश्य की छानबीन का विषय है।
मधेशी दल और नेता के प्रति आक्रोश बढ रहा है। बिरगंज में इंजीनियरिंग के छात्र दिलीप चौरसिया के शहीद होने पर मधेशी मोर्चा के बड़े नेता जो की बिरगंज में ही थे देखने नहीं गए। सिर्फ राजेंद्र महतो ही देखने की हिम्मत कर पाएं। अब तक के आंदोलन में सदभावना ने ही मधेशी भावना को समझने का प्रयास किया है। अभी तक सत्ता मोह में इस्तीफा नहीं देना और एक मंच पर नहीं आना, मधेशी जनता को इन्ही के खिलाफ खड़ा होने को मजबूर कर रहा है। अफवाह है की उपेन्द्र यादव और महंथ ठाकुर सरकार से गुपचुप समझौता करने पहुच गए है। बारा में आंदोलन के क्रम में मधेशी मोर्चा के नेता और जनता में झड़प आक्रोश ही दिखता है। कुछ ऐसा ही माहौल जनकपुर में भी दिखा।
रौतहट और पर्सा में एमाले का पार्टी कार्यालय जलाया गया। पर्सा से एमाले सभासद जयप्रकाश थारु का घर तोड़ फोड़ हुआ। झलनाथ के धोती प्रदेश कहने से आक्रोश बढ़ना लाजिमी है। आंदोलन से पहले कांग्रेस के मधेशी नेता जो भी मधेश के समर्थन में बोलते दिखते थे सब बेनकाब होकर बिल में छुप गए है। माओवादी कभी हां कभी ना के चक्रव्यूह से निकल नहीं पाया।
पुरे आंदोलन में तराई मधेश राष्ट्रीय अभियान किसी मंच पर नहीं दिखा। परंतु आंदोलन के हरेक कार्यक्रम में उसकी अगुवाई देखी गई। चाहे जनकपुर में मधेशानंद का आमरण अनशन हो। चाहे मोरंग में सलीम अंसारी, जफ़र जमाली का आंदोलन हो। चाहे युवा नेता ललित का दिल्ली के जंतर मंतर में प्रदर्शन हो। चाहे आंदोलन में सीता चौधरी, सुरेन्द्र सह, शिवनाथ पटेल की सक्रियता हो। चाहे रौतहट, बारा, पर्सा या पश्चिम मधेश हो। हर जगह जमीनी संघर्ष में अभियान को देखा गया। इसका मूल कारण ये रहा की अभियान के स्थापना के समय से ही इसमें आंदोलनकारी को ही रखा और प्रशिक्षित किया गया। अगर मोर्चा से धोखा होता है तो भी आंदोलन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
जिस प्रकार सरकार , प्रशासन का पकड़ मधेश के सदर मुकाम में ही सिमित होते जा रहा है। राजा शासन में यही सेना, प्रहरी ने नेपाली जनता पर गोली चलाने से इंकार किया था, अब मधेशी पर गोली चलाने में इनके हाथ क्यों नहीं काँपते है रु इनकी गोली भी कमर के निचे नहीं, सीधे जान लेने के नियत से सिर में गोली चलाते है। इसका माक़ूल जबाब मिलेगा। अगर ये आंदोलन कुछ दिन और चला तो सरकार, प्रशासन का पकड़ सदर मुकाम से भी ख़त्म हो सकता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा तब आंदोलन अलग राष्ट्र का रूप अख्तियार कर ले। इसके लिए मधेश में जमीनी तैयारी शुरू हो चुकी है। अब ये सरकार पर निर्भर करता है वो कौन से मार्ग अपनाती है।