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वार्ता का ढोंग जारी है, मधेश चाहिए मधेशी नहीं-सत्ताधारियों की सोच : श्वेता दीप्ति

श्वेता दीप्ति, काठमांडू, २५ अक्टूबर |



माना जाता है कि गेन्डे की खाल बहुत मोटी होती है और उतनी ही असंवेदनशील भी । नेताओं के लिए भी अक्सर यह उपमा दी जाती है और आज नेपाल के सत्तारूढ़ नेताओं के लिए यह उपमा अक्षरशः सत्य प्रतीत हो रही है । असंवेदनशीलता का अतिक्रमण तो पिछले कई महीनों से दिखाई दे रहा है, पर अब तो हद हो गई । ना जाने किस ख्याली पुलाव को पकाने में सत्ता मशगूल है । क्या उन्हें यह लग रहा कि मधेश की जनता थक कर पीछे हट जाएगी ? मान लिया जाय कि हट भी गई, तो यह आग फिर नहीं सुलगेगी इसकी क्या गायरन्टी है ? क्योंकि पीढ़ी दर पीढ़ी अपमान और अवहेलना की जिस पीड़ा को मधेश ने झेला है वह अब इतनी आसानी से नई पीढ़ियों के दिमाग से निकलने वाली नहीं है ।
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भारत के तथाकथित नाकाबन्दी पर जितनी भड़ास निकालनी थी वह भी निकाली जा चुकी है, जितनी गालियाँ देनी थी, जितने पुतले जलाने थे वो सभी कार्य सम्पन्न हो चुके हैं । वैसे भी इसमें नया क्या था लेकर भूल जाने का अपना ही आनन्द होता है और यही यहाँ होता आया है, बस आज उसी आदत की पुनरावृत्ति हुई है । कितने मजे की बात है कि पर्दे के पीछे झाँका जा रहा है, पर सामने की सच्चाई नजर नहीं आ रही । वस्तुगत स्थिति को नजरअंदाज करते हुए सत्तासीन नेता और सत्ता से प्रभावित मीडिया या फिर यह कहें कि एक समुदाय विशेष की सोच से ग्रसित मीडिया और समुदाय सरेआम मधेश की नाकाबन्दी को भारत की नाकाबन्दी कहते आ रहे हैं, परन्तु सच को स्वीकार और समस्या के समाधान के प्रति इनकी कोई दिलचस्पी नहीं दिख रही है । वार्ता का ढोंग भी जारी है, पर परिणाम वही ढाक के तीन पात । सीमा पर बैठे लोग भारतीय नहीं हैं और न ही वो दसगजा में बैठकर आन्दोलन कर रहे हैं, वो जहाँ बैठे हैं वह मधेश की धरती है और सम्भवतः मधेश नेपाल ही है । सम्भवतः शब्द का प्रयोग इसलिए किया जा रहा है क्योंकि अगर वह नेपाल ही है, तो क्यों उस धरती के लोगों के मर्म को सत्ता नहीं समझ पा रही है ? ये बार–बार यह साबित करने पर क्यों लगे हुए हैं कि मधेश चाहिए मधेशी नहीं ? अपने एकाधिकार को खोने का डर खसवादी सोच पर इस कदर हावी हो गया है कि उसने सम्पूर्ण देश के भविष्य को ही दाँव पर लगा दिया है । उन्हें सिर्फ और सिर्फ वही मुट्ठी भर समुदाय दिख रहा है जिसका वो प्रतिनिधित्व कर रहे हैं । देश के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री को सिर्फ अपना क्षेत्र दिखा और वहाँ का भ्रमण भी वो सम्पन्न कर चुके हैं । परन्तु विडम्बना यह है कि अब भी उन्हें वो जनता नहीं दिख रही जो अपने ही देश में अपने अधिकारों के लिए लड़ रही है और दिखे भी क्यों, वो जनता तो उन्हें कभी पड़ोसी राष्ट्र के दिखते हैं, तो कभी आम या पत्ते, तो कभी मक्खियाँ । जिस क्षेत्र की जनता के अस्तित्व को वो स्वीकार करने की मनोदशा में नहीं हैं, उनकी समस्याओं या उन्हें अधिकार देने की प्रतिबद्धता वो भला क्यों करेंगे ?

दो महीने से अधिक की हड़ताल और एक महीने की नाकाबन्दी ने देश के एक हिस्से की नहीं बल्कि सम्पूर्ण देश की आर्थिक व्यवस्था को जर्जर कर दिया है । प्रधानमंत्री के झापा दौरे के बाद स्थिति और भी तनावग्रस्त हो गई है । खबर है कि बीती रात राजमार्ग में स्कर्टिंग कर के लाती हुई गाड़ियों के विरोध में अवरोध करती हुए आन्दोलनकर्ताओं पर कई राऊंड गोलियाँ चली हैं जिसमें २० से अधिक लोग घायल हो गए हैं । स्थिति दिनप्रतिदिन बिगड़ती जा रही है । नेता हैं कि उनकी भाषा असंतोष की आग को और भी भड़का रही है । अभिभावकत्व तो कहीं भी नजर नहीं आ रहा । सत्तानसीन नेताओं की बात कहीं जाकर खत्म हो रही है तो चीन पर । उड़ती सी खबर आ रही है कि चीन सरकार नेपाल पर अपनी अनुकम्पा बरसाते हुए निःशुल्क हजार मेट्रिक टन इंधन अनुदान सहयोगस्वरूप भेज रही है । एक जो सवाल जो जेहन को परेशान कर रहा है वह यह कि अनुदान क्यों ? क्या सती से शापित इस देश की अनुदान लेने और माँगकर खाने की आदत हो गई है ? क्या यहाँ कथित राष्ट्रवादिता की क्षय नहीं हो रही ? खैर बीते महीनों में पहाड़ की जनता के लिए कई ऐसी उम्मीद से भरी खबरें सामने आई हैं, जिसे सच होते नहीं देखा गया है । देखना ये है कि यह भी कहीं कपोल कल्पित तो नहीं । परन्तु इन सभी बातों के बाद भी सवाल यही है कि क्या इस देश की समस्या सिर्फ तेल, डीजल, पेट्रोल या गैस सिलेन्डर ही है या दो महीनों से अधिक आन्दोलनरत जनता की माँग का समाधान ?

kurmi-3रविवार को होने वाली वार्ता पर नजरें हैं । आज सत्ताधारी नेताओं ने जिस प्रकार की अभिव्यक्ति दी है उससे लगता नहीं है की इनकी नीयत ठीक है | फिरभी वार्ता सफल हो यह शुभकामना है और इसमें ईमानदारी से मधेश की माँगों को समेटा जाय । सीमांकन, समानुपातिक समावेशी, निर्वाचन प्रणाली में जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्र कायम करना, नेपाली सेना और न्यायपालिका में समानता का अधिकार और प्रतिनिधित्व इन सभी मुद्दों पर सार्थक वार्ता हो, वार्ता का ढोंग नहीं । यथाशीघ्र मधेश की आन्दोलनरत जनता भी दीपावली मनाए यह शुभेच्छा है ।



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