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मधेशी आवाम खुदी को वुलन्द करें, मधेश की पगड़ी निलामी नहीं होगी : मुरलीमनोहर तिवारी

 

मुरलीमनोहर तिवारी (सीपु), बीरगंज,6 फरबरी ।



बिरगंज नाका का टेन्ट जला दिया गया। नाका खुल गया। वो तो होना ही था। कुछ दिनों से नाका ख़ाली करने का तर्क-कुतर्क ज्यादा ही हो रहा था। मितेरी पुल पर कोई बैठने की ज़हमत नहीं कर रहा था। सुबह मोर्चा के कुछ नेता, रजिस्टर में अपना नाम लिखकर मीडिया में भेज देते थे, काम ख़त्म। सरकार को घुटने टेकाने की चुनौती देने वाला आंदोलन, चोर- उच्चकों के सामने बौना क्यों हुआ ? भला हो दो साधू का जो वहा टिके हुए थे, वे ही अपनी धूनी रमा कर आंदोलन की इज्जत बचा रहे थे।FB_IMG_1454741627779

पटना से लौटने के बाद ही राजेन्द्र महतो ने कहा, “या तो सब नाका बंद हो, नहीं तो बिरगंज नाका भी खोल दिया जाएं”। अब सवाल उठता है, ये बात उन्होंने कहा किससे ? क्या के.पी. ओली से नाका खोलने को बोले थे ? एक पक्ष मोर्चा है, तो बिपक्ष ओली सरकार है। अगर ओली से नहीं बोले तो बोले किससे ? क्योकि बंद कर्ता तो ये खुद है। इन्होंने इस बार भी सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश की है। मोर्चा के नेता पांच दिन साथ-साथ रहे, उस समय इन्हें इस पर बात करनी चाहिए थी, कुछ ठोस निर्णय लेना चाहिए था, सो तो हुआ नहीं, बाद में नक्कली आसु टपकाने का क्या फ़ायदा ?FB_IMG_1454741609968

राजेंद्र महतो ने उपेन्द्र यादव और महंथ ठाकुर से बाक़ी नाका खुलने का कारण क्यों नहीं पूछा ? पटना में क्या हुआ, ये मोर्चा ने नहीं बताया। महागठबंधन का क्या हुआ, ये भी नहीं बताया ? अब आंदोलन का क्या होगा ? कैसे मजबूती आएगी ? कैसे सफल होगा ? कुछ नहीं बताया, सिर्फ लीपापोती और खानापूर्ति हुई। किस निर्लज्जता से नाका खोलने को कहा गया ? अबकी लड़ाई आर-पार की कहने वाले इसी आर क्यों रह गए। यही करना था तो इतनी शहादत का क्या मोल रहा ? फिर इतना बलिदान क्यों ?

ओली ने कुछ दिनों पहले कहा था, जैसे भुत भगाया जाता से वैसे ही नाका का भुत भाग जाएगा। ठीक वैसा ही हुआ। ओली की भारत भ्रमण से पहले नाका खुलाने की शर्त थी। वास्तव में सब जगह से महागठबंधन का दबाव आ रहा था, मोर्चा के प्रभावशाली मददकार भी एक होने को कह रहे थे। मोर्चा बिल्कुल भी एक होने के पक्ष में नहीं है, साथ ही भारत का भी ओली भ्रमण तक नाका खोलने का दबाव है। इसी उद्देश्य से ओली ने राजेन्द्र महतो को फ़ोन किया, महतो बालुवाटार में बिरयानी खाकर आंदोलन समाप्त करने का सुपारी लेकर आए और नाका खुलवा दिया।FB_IMG_1454741357013

महागठबंधन से बचने और भारत को खुश करने के लिए मोर्चा ने नाका खोला। किसने रक्सौल में गुंडों को शराब पिलाकर नाका पर भेजा ? मोर्चा ने मधेश की पगड़ी को नीलाम कर दिया। ये दावा करते थे आंदोलन इनके हाथ में है। खुद बंद कराया, खुद तस्करी कराइ, खुद बंद खोला, मधेश को क्या मिला, बाबाजी का ठुल्लू ? इन्हें शर्म तक नहीं आती, निर्लज्ज, स्वार्थी, गद्दार। अरे ! सूअर भी अपना खोबार बचा कर रहता है। इन्होंने तो अपना खोबार ही बेच दिया। धिक्कार है, धिक्कार।

आंदोलन जितना लम्बा चला, जितनी ऊचाई पाया,  विश्व जगत में पहचान और समर्थन मिला, एक झटके में सब सुपुर्द-ए-खाक हो गया। हम नज़रे मिलाने लायक नहीं रहे। हम हँसी के पात्र बन कर रह गए। अब अंगूठा दिखाते हुए कांग्रेस- एमाले वाले आएंगे। हम भीगी बिल्ली की तरह छुपते नजऱ आएंगे। गलती सिर्फ इनकी ही नहीं है, ये गलती मधेशी आवाम की भी है। क्यों हमने मधेश का ठेका इन्हें दिया ? जब ये जनता का आंदोलन था, तो इसकी खबरदारी भी जनता को ही करनी चाहिए थी।

हमें अभी भी हार नहीं मानना है। नर हो, न निराश करो मन को। दिन के पीछे रात है, रात के पीछे दिन है। बस अपनो को आज़माते चले, ग़ैरों से भी दोस्ती हो जाएंगी। मधेशी आवाम अपनी खुदी को बुलंद करें, आंदोलन फिर होगा और सफल भी होगा। मधेश की पगड़ी नीलाम नहीं होगी। स्व. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की पंक्तिया दोहराता हूँ।
क्या हार में, क्या जीत मेँ,
किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्षपथ पर जो मिले,
यह भी सही वह भी सही,
यह हार एक विराम है,
जीवन महासंग्राम है,
तिल तिल मिटूंगा पर,
दया की भीख मैं लूंगा नहीं,
वरदान मागूंगा नहीं । 
वरदान मागूंगा नहीं।।
                 जय मधेश।।

 

 



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