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भारतीय ने खरीदी गांधी के खून वाली मिट्टी

Mahatma Gandhi and Romain Rolland, 1931. Categ...
Mahatma Gandhi and Romain Rolland, 1931. Category:Media related to Mohandas Karamchand Gandhi (Photo credit: Wikipedia)
Mohandas Gandhi gave rise to a whole new gener...
Mohandas Gandhi gave rise to a whole new generation of nationalists, and a whole new form of revolution. (Photo credit: Wikipedia)

ब्रिटेन में एक नीलामी में महात्मा गांधी के खून वाली घास और मिट्टी, उनका चश्मा और उनका चरखा एक भारतीय ने खरीद ली है और समझा जा रहा है कि

Mahatma Gandhi Round Table Conference 1931
Mahatma Gandhi Round Table Conference 1931 (Photo credit: Wikipedia)

इसे भारत सरकार को लौटा दिया जाएगा.

इस नीलामी में महात्मा गांधी से जुड़ी कुल 29 चीज़ों को नीलाम किया गया और ये सारी चीज़ें कुल मिलाकर एक लाख पाउंड यानी लगभग 81 लाख रूपए में नीलाम हुईं.

घास और मिट्टी, चश्मा और चरखा एक ही खरीदार ने फोन पर बोली लगाकर खरीदा जो भारतीय हैं मगर उनकी पहचान अभी प्रकट नहीं की गई है.

लेकिन इन चीज़ों को नीलाम करवानेवाली संस्था मुलॉक्स के एक अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि उन्हें पूरा विश्वास है कि ये चीज़ें भारत लौट जाएँगी.

Gandhi during the Salt March, March 1930. Fran...
Gandhi during the Salt March, March 1930. Français : Gandhi pendant la Marche du Sel, mars 1930. मराठी: महात्मा गांधी दांडी यात्रेत. (Photo credit: Wikipedia)
लकड़ी की एक छोटी प्लेट पर गांधीजी के खून वाली घास और मिट्टी के टुकड़े(साभारः मुलॉक्स)

 

Mahatma Gandhi with textile workers at Darwen,...
Mahatma Gandhi with textile workers at Darwen, Lancashire, England, September 26, 1931. (Photo credit: Wikipedia)

30 जनवरी 1948 को गांधीजी की हत्या के समय वहाँ से उठाई गई घास और मिट्टी 10 हज़ार पाउंड यानी लगभग आठ लाख रूपए में बिकी.

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गांधी जी का चश्मा 34 हज़ार पाउंड यानी लगभग 27 लाख रूपए में बिका.

गांधी जी का चरखा 27 हज़ार पाउंड यानी लगभग 22 लाख रूपए में बिका.

इसके अतिरिक्त नीलामी में गांधीजी के हाथ की लिखी चिट्ठियाँ, उनके हस्ताक्षर वाली टंकित चिट्ठियाँ, उनकी निजी प्रार्थना पुस्तिका, उनके संदेश वाला एक

Seth Harchandrai in left with Mahatma Gandhi
Seth Harchandrai in left with Mahatma Gandhi (Photo credit: Wikipedia)

एलपी रिकॉर्ड और कुछ फ़ोटोग्राफ बिक्री हुए.

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ख़ून वाली घास

“वो पीढ़ी, जो ऐसी निशानियों को सम्मानपूर्वक रखती थी, अब नहीं रही. जिस पीढ़ी को ये चीजें उत्तराधिकार में मिली हैं, वो इसे एक व्यावसायिक नजरिए से देखती है”

तुषार गांधी

महात्मा गांधी की निशानियों की नीलामी ब्रिटेन के श्रॉपशायर में एक रेसकोर्स में हुई.

इस नीलामी में सबसे चर्चित निशानी वो घास और मिट्टी का कुछ अंश था जिसपर गांधीजी के ख़ून की बूँदें गिरी थीं.

तब एक सैनिक पीपी नाम्बियार ने दावा किया था कि गांधीजी की हत्या के बाद उन्हें वहाँ एक जगह गांधीजी के खून में सनी घास और मिट्टी मिली थी.

मुलॉक्स का कहना है कि उसे ये सामग्री पीपी नाम्बियार के पत्र के साथ मिली थी, जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे उन्होंने 30 जनवरी 1948 को घास और

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Rabindranath Tagore and Gandhi in 1940.
Rabindranath Tagore and Gandhi in 1940. (Photo credit: Wikipedia)

मिट्टी उठाई थी.

इस पत्र में नाम्बियार ने लिखा है- “मुझे घटनास्थल से घास पर खून की एक बूंद मिली, जो सूख चुकी थी. मैं घास को काटा और वहाँ की मिट्टी भी उठा ली. वही पड़े एक हिंदी अखबार के पन्ने में मैंने इसे लपेट लिया.”

“ये ऐसी चीज़ है जिसे इसको सहेजकर रखनेवाले लोगों ने पूरे आदर के साथ रखा हुआ था और ये कहीं से भी उन ईसाई संतों से जुड़ी स्मृतियों से ज़्यादा अप्रिय नहीं हैं जिनकी पूरी दुनिया के चर्चों और अन्य स्थलों पर पूजा की जाती है”

रिचर्ड वेस्टवुड ब्रूक्स, मुलॉक्स ऑक्शन हाउस

भारत में गांधी जी से जुड़ी चीज़ों और विशेष रूप से उनकी खून में सनी मिट्टी की नीलामी को लेकर असंतोष जताया गया था.

महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने समाचार एजेंसियों से बातचीत में कहा कि वे किसी को नीलामी से तो रोक नहीं सकते, लेकिन महात्मा गांधी के खून की कुछ बूंदों वाली मिट्टी और घास की बात निंदनीय लगती है.

महात्मा गांधी फाउंडेशन नाम की एक संस्था चलाने वाले तुषार गांधी ने कहा, “वो पीढ़ी, जो ऐसी निशानियों को सम्मानपूर्वक रखती थी, अब नहीं रही. जिस पीढ़ी को ये चीजें उत्तराधिकार में मिली हैं, वो इसे एक व्यावसायिक नजरिए से देखती है.”

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उन्होंने कहा कि सरकार हमेशा ऐसी नीलामियों से अनजान रहती है और नीलामी के बाद उसकी नींद खुलती है.

मुलॉक्स ऑक्शन हाउस में ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के एक विशेषज्ञ रिचर्ड वेस्टवुड ब्रूक्स ने कहा कि गांधी जी की मृत्यु से जुड़ी निशानियों की नीलामी को अप्रिय कहना सही नहीं होगा.

उन्होंने कहा,”ये ऐसी चीज़ है जिसे इसको सहेजकर रखनेवाले लोगों ने पूरे आदर के साथ रखा हुआ था और ये कहीं से भी उन ईसाई संतों से जुड़ी स्मृतियों से ज़्यादा अप्रिय नहीं हैं जिनकी पूरी दुनिया के चर्चों और अन्य स्थलों पर पूजा की जाती है”.

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