हिंदी साहित्य की बहुआयामी प्रतिभा भीष्म साहनी जी
इस बार साहित्य की श्रृंखला में हम आत्म सात करेंगे हिंदी साहित्य की बहुआयामी प्रतिभा भीष्म साहनी जी से | तो आइए हिमालिनी पत्रिका ( नेपाल ) संग मैं मनीषा गुप्ता
भीष्म साहनी जी का जीवन …
जन्म: | ८ अगस्त १९१५ रावलपिंडी, (तत्कालनी) भारत, वर्तमान पाकिस्तान |
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मृत्यु: | ११ जुलाई २००३ दिल्ली भारत |
कार्यक्षेत्र: | अध्यापन, पत्रकारिता, लेखन |
राष्ट्रीयता: | भारतीय |
भाषा: | हिन्दी |
काल: | आधुनिक काल |
विधा: | गद्य |
विषय: | कहानी, उपन्यास, लघुकथा |
साहित्यिक आन्दोलन: |
प्रगतिवाद |
अध्यापन, अनुवादक |
भीष्म साहनी को हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है।[1] वे मानवीय मूल्यों के लिए हिमायती रहे और उन्होंने विचारधारा को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ-साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी आंखो से ओझल नहीं करते थे। आपाधापी और उठापटक के युग में भीष्म साहनी का व्यक्तित्व बिल्कुल अलग था। उन्हें उनके लेखन के लिए तो स्मरण किया ही जाएगा लेकिन अपनी सहृदयता के लिए वे चिरस्मरणीय रहेंगे। भीष्म साहनी हिन्दी फ़िल्मों के जाने माने अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। उन्हें १९७५ में तमस के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९७५ में शिरोमणि लेखक अवार्ड (पंजाब सरकार), १९८० में एफ्रो एशियन राइटर्स असोसिएशन का लोटस अवार्ड, १९८३ में सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड तथा १९९८ में भारत सरकार के पद्मभूषण अलंकरण से विभूषित किया गया। उनके उपन्यास तमस पर १९८६ में एक फिल्म का निर्माण भी किया गया था।
प्रमुख रचनाएँ
- उपन्यास – झरोखे, तमस, बसन्ती, मायादास की माडी, कुन्तो, नीलू निलिमा निलोफर
- कहानी संग्रह – मेरी प्रिय कहानियां, भाग्यरेखा, वांगचू, निशाचर
- नाटक – हनूश (१९७७), माधवी (१९८४), कबीरा खड़ा बजार में (१९८५), मुआवज़े (१९९३)
- आत्मकथा – बलराज माय ब्रदर
- बालकथा– गुलेल का खेल