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ब्राह्म मुहर्त और हमारा शरीर:-रवीन्द्र झा शंकर’

प्रातः लगभग चार बजेसे सूर्योदयतक का समय ब्राहृम मुहर्त कहलाता है। ब्राहृम मुहर्ूतका भावार्थ है भगवान का समय। पूरे दिन -२४ घण्टां) में यह समय सर्वोत्तम है। इस



Aum
Aum (Photo credit: Wikipedia)

कालावधि में प्रकृति के पाँचो तत्त्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश सम अवस्था में रहता है। प्राकृतिक सौर्न्दर्य के अनुपम, भव्य और दिव्य दर्शन होते है। यह समय तन-मन और आत्मा के विकाश के लिए अति उत्तम एवं आनन्ददायी होता है। सम्पर्ूण्ा वातावरण पवित्रता, शुद्धता, शान्ति, प्रसन्नता, नवीनता एवं नीरवता से ओत-प्रोत रहता है। दिनभर के ध्वनि प्रदूषण के स्थानपर इस सुखद बेला में नीरवता तथा शान्ति की प्रधानता रहती है। हर प्रकार के बाहनों का आवागमन बन्द सा रहता है, अतः शोरगुल, चीख-पुकार, खट-खट, हड हड आदि की हानिकारक ध्वनियों से वातावरण मुक्त रहता है। वातावरण में मात्र पंक्षियों की चहचहाहट, हवा की सरसराहट सुनायी पडÞती है, जो सुहावनी लगती है। शीतल मन्द समीर बहता है। शुद्ध स्वास्थ्यवर्द्धक, जीवनदायी प्राणवायु र्सवत्र व्याप्त रहती है। ऋतु के अनुरुप पुष्पकी महक वातावरण को सुरभित कर देती है। जैसे-जैसे सूर्योदय का समय पास आता है, वनपस्पतियों, दूबो के कोमल-कोमल पतों को रंग अधेरी कलियां त्यागकर हरित हो जाता है। ऐसे में ओस से भीगी हरी-हरी दूब पर नंगे पाँव चलना सुखकर लगता है तथा कई प्रकार की व्याधियों से राहत मिलती है, नेत्र-ज्योति तेज होती है।
ब्राहृम मुहर्ूत के इस समय में हमारे शरीर में स्फूर्ति और ताजगी आती है। इस समय जो भी कार्य किया जाए, वह बहुत अच्छा होता है, इसी कारण से हमारे पर्ूवजो ने दिनचर्या का शुभारम्भ ब्राहृम मुहर्ूत से करनेका निर्देश दिया है। ब्राहृम मुहर्ूत में जागरण से दिनचर्या की एक योजनाबद्ध जीवनशैली निर्मित होती है, इसपर अमल करनेपर स्वास्थ्य की निःशुल्क सुरक्षा के साथ सद्गुणों का विकाश तथा दर्ुगुणों का त्याग होता है। आधुनिक धनप्रधान एवं इन्द्रिय प्रधान दोषका शमन भी इस में निहित है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति आलस्य छोडÞÞ प्रातः जल्दी जगता है, प्रातः कालीन सुरम्य समय में भ्रमण करता है, उचित व्यवहार पर लेन-देन द्वारा धन प्राप्त कर उसकी रक्षा और स्वयं भोग करता हुआ दूसरो को भी भोग कराता है, वह सुन्दर चरित्र का वीर पुरुष पुत्र पौत्रादि और आयु को बढÞाता है और निरन्तर सुखी रहता है।
आत्मानुशासन या आत्मसंयम या अपने आप पर नियन्त्रण का अभ्यास ब्राहृम मुहर्ूत में बिस्तर-त्यागसे हो जाता हैः क्योंकि उस समय वातावरण शान्त एवं शीतल रहता है। अतः निन्द्रा भी गहरी एवं अच्छी आती है। ऐसे में इच्छा नहीं होते हुए भी बिस्तर त्याग देना चाहिए। दर्ुगुणों, दोषों, प्रलोभनों से संर्घष्ा करने की शक्ति आत्मा में आती है। मनमर्जी तथा इन्द्रिय-दासता त्यागकर आत्म संयम अपनाने की प्रवृति होती है। अंग्रेजी में एक कहावत है- “अरली टू बेड एण्ड अरली टू राइज, मेक्स ए मैन हेल्थी-वेल्थी एण्ड वाइज” अर्थात् जल्दी सोना एवं प्राप्तः जल्दी उठना मनुष्य को स्वस्थ एवं बुद्धिमान बनाता है। आरोग्य एवं बल प्रदान करनेवाली र्सर्ूय की किरणों का लाभ प्रातः जल्दी उठनेवाले ही प्राप्त कर पाते है, जो सोते रहते हैं, वे इस लाभ से बंचित रहते हैं।
आयर्ुर्वेद के अनुसार ब्रहृम मुहर्ूत में उठने से वर्ण्र्ााकर्ीर्ति, मति, लक्ष्मी, स्वास्थ्य तथा आयु की प्राप्ति होती है, इससे शरीर कमल की तरह प्रफुल्लित हो जाता है-
वर्ण्र्ाार्ीर्ति मति लक्ष्मी स्वास्थ्यमायुश्च विन्दति।
ब्रहृम मुहर्ूते सञ्जाग्रच्छियं वा पंङ्कजंयथा।।
आरोग्यशास्त्र के अनुसार जो व्यक्ति सूर्योदय के पश्चात् देरतक सोते रहते है, उन्हें श्वास-प्रश्वास की समस्या, आलस्य, थकावट जैसी कई परेशानियों का सामना करना पडÞता है।
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