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जेठ १४ की मध्यरात में जब संविधान सभा के कार्यकाल को बढाए जाने की बात चल रही थी, उस समय हमारी पार्टर्ीीे तरफ से लडाकुओं के हथियार सौंपे जाने की मांग कर रहे थे । लेकिन अचानक माओवादी के तरफ से उलटा ही प्रस्ताव रखने जाने से हम सभी सन्न थे । माओवादी लडाकुओं के हथियार को सौंपने की बात तो दूर प्रचण्ड जी ने नेपाली सेना के ही हथियार और गोला बारुद को कंटेनर में जमा करने की मांग करने लगे । हमने कडÞा प्रतिवाद किया । इसी के बाद वार्ता के दौरान कुछ देर तक तो तनाव ही उत्पन्न हो गया ।
पार्टर्ीीे सभापति सुशील कोइराला जेठ १४ से पहले गोकर्ण्र्ााे लेकर सिंहदरबार के शांति मंत्रालय तक में हुए वार्ता के दौरान यह बात स्पष्ट कर दी थी माओवादी में व्यहारात्मक परिवर्तन नहीं आने तक बातचीत का कोई औचित्य ही नहीं है । और जब तक माओवादी में सुधार नहीं आएगा तब तक शांति प्रक्रिया पूरा नहीं हो सकता है । तथा शांति प्रक्रिया के पूरा ना होने तक संविधान भी नहीं बन सकता है, यह निश्चित है ।
संवधान सभा की समय सीमा बढÞाए जाने को लेकर प्रचण्ड जी ने ६ महीने का प्रस्ताव किया था । लेकिन हमारी पार्टर्ीीी भी लाईन स्पष्ट थी । विश्वास का आधार तैयार नहीं होने तक इतना समय बढÞाने का कोई भी फायदा नहीं है । माओवादी पर विश्वास करने का कोई भी आधार नहीं थी । क्योंकि उनके तरफ से पिछले तीन सालों में कई बार हमने धोखा खाया है ।
जेठ १४ की रात को भी माओवादी शांति प्रक्रिया की आड में रहे अडचन को दूर करने के पक्ष में नहीं दिख रही थी । ना तो लडÞाकु समायोजन के मुद्दे पर और ना ही हथियार सौंपने के मुद्दे पर माओवादी सकारात्मक दिख रही थी । प्रचण्ड जी का तर्क था ये सब काम तत्काल पूरा नहीं हो सकता है । जब हमने इससे पीछे ना हटने की बात कही और उन्हें आग्रह किया कि इसी समय पूरा नहीं हो सकता है तो क्या हुआ इसकी शुरुआत तो हो ही सकती है । माओवादी नेताओं की देाहरी सुरक्षा हर्टाई जा सकती है । कंटेनर में रखे हथियारों का चाभी तो दी जा सकती है । हमने कहा कि सरकार आपलोगों की ही है, गृहमंत्री आपके ही हैं । तो फिर आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए । हमने स्पष्ट कहा कि सरकार परिवर्तन हमारे लिए प्राथमिक मुद्दे नहीं है । लेकिन इतना होने के बावजूद माओवादी में लचकता आने के बजाए वो सरकार और कडÞे रुप में प्रस्तुत होने लगे । हथियार सौंपना तो दूर नेपाली सेना का ही हथियार कंटेनर में जमाकर विशेष समिति के मातहत लाने का उलटा ही प्रस्ताव रखा । ये रात नौ बजे की बात है । इस प्रस्ताव के बाद बैठक में काफी देर तक तनाव बना रहा । स्थिति गंभीर होती गई । इसके बाद हमारी पार्टर्ीीे तरफ से कडÞा प्रतिवाद किया गया । नेपाली सेना तो विशेष समिति के मातहत नहीं है । नेपाली सेना कानून, संविधान व मंत्रिपरिषद के मातहत है । नेपाली सेना का तो समायोजन नहीं करना है । ऐसे प्रस्ताव से नेपाली सेना के ऊपर गंभीर अविश्वास जैसा होगा । हमने स्पष्ट कह दिया कि यदि आपलोगों को ऐसा लगता है तो आप सरकार से निर्ण्र्ााकरने के लिए कहिए उसके बाद हम सोचेंगे । माओवादी के तरफ से ऐसा प्रस्ताव आने के बाद कांग्रेस के अलावा एमाले नेताओं ने भी खासकर माधव कुमार नेपाल ने भी कडÞा विरोध किया ।
हम सबके कडेÞ विरोध के बाद आखिरकार माओवादी को झुकना पडÞा । माओवादी द्वारा ६ महीने के प्रस्ताव पर पार्टर्ीीभापति सुशील कोइराला ने कहा कि शांति प्रक्रिया को पूरा करने में जितना समय लगेगा, उतना ही समय बढÞाया जाए । शुरु में तो माओवादी नहीं माने लेकिन बाद में उन्हें झुकना पडÞा । हमने माओवादी एमाले के बीच हुए ७ सूत्रीय समझौते को खारिज करने की मांग भी की लेकिन ये प्रचण्ड जी को रास नहीं आया । इससे ना सिर्फप्रचण्ड जी बल्कि खनाल जी के भी सम्मान को ठेस पहुँचने जैसा था । इसलिए कुछ लचकता अपनाते हुए हमने राष्ट्रीय सहमति के लिए प्रधानमंत्री के इस्तीफे की बात को समझौते में लिखने के लिए कहा ।
शांति प्रक्रिया पूरा करने के लिए माओवादी व एमाले भी तीन महीने के कार्यकाल को बढÞाने के लिए तैयार हर्ुइ । एक बात मैं क्या स्पष्ट कहना चाहूँगा कि कांग्रेस को जितना अडान लेना चाहिए था, वह हम नहीं ले पाए । यदि हम थोडÞा और अडÞ जाते तो माओवादी को और भी झुकाया जा सकता था । कम से कम माओवादी के पास रहे हथियार को वापस करने पर हमे अडिग रहना चाहिए था । लेकिन हमारी पार्टर्ीीे ही कुछ नेताओं की जल्दबाजी के कारण वह मौका जो हमने खो दिया, वह हमारी कमजोरी के कारण ही है । और इस बात को कहने में मुझे कोई झिझक नहीं है । लेकिन इसके लिए मैं किसी को दोष नहीं दूँगा । हाँ कुछ लोगों ने मेरे ऊपर ही संविधान सभा विघटन करने का षड्यंत्र में रहने का आरोप भी लगाया लेकिन में इन आरोपों से विचलित नहीं हूँ । माओवादी को शांति प्रक्रिया में लाने से लेकर अब तक मैं अपनी भूमिका से संतुष्ट हूँ । माओवादी द्वारा बार-बार किए गए समझौते के उलंघन का मैंने हमेशा ही प्रतिकार किया और आगे भी करता रहूँगा ।
इसके बावजूद वार्ता के क्रम में हमारी अपनी ही कमजोरी के कारण माओवादी कडÞे रुप में प्रस्तुत हुए । ये पार्टर्ीीी कमजोरी है, इसमें मैं किसी खास नेता को दोषी नहीं मानता हूँ । शांति प्रक्रिया पर कांग्रेस व एमाले ने जो संयुक्त प्रस्ताव बनाया था यदि हम उसी पर अडिग रहते तो बात ही कुछ और होती । लेकिन ऐसा नहीं हो पाया ।       िि
-िनेपाली कांग्रेस के महामंत्री रहे सिटौला के बातचित पर आधारित)



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