जनकनन्दिनी की गाथा श्री सीतायण
डा. एम.गोविन्दराजन बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व हैं । आपकी सहृदयता एवं सौम्यता सहज ही आकर्षित करती है । विभिन्न भाषाओं पर पकड़ और उसमें रचनात्मक संलग्नता आपकी साहित्यिक उपलब्धि है । आप का जन्म १३.०७.१९४४ को तमिलनाडु के तंजाऊर शहर में हुआ । आपने मैसूर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिंदी) और रांची विश्वविद्यालय से पी.एच.डी (हिंदी) की उपाधि पाई । आपकी मातृ भाषा तमिल है और आप तमिल, हिंदी, अंग्रेजी के अलावा मलयालम भी जानते हैं ।
आपने तुलसी की ‘रामचरित मानस’, ‘विनय पत्रिका’, ‘जानकी मंगल’, ‘पार्वती मंगल’, ‘रामलला नहछू’, ‘वैराग्य संदीपनी’, ‘बरवै रामायण’, आदि कृतियों का तमिल में अनुवाद करके प्रकाशित किया । अतः आप को ‘तमिल के तुलसी’ नाम से संबोधित किया जाता है ।
तमिल में अनूदित आप का ‘अंजनै’ उपन्यास श्रेष्ट अनुवाद के लिए दो बार पुरस्कृत है ।
‘उदयणन कदै’, ‘श्री आण्डाल तिरुप्पावै’, और वलैयापति( कुण्डलकेशी आदि आप की तमिल से ंिहंदी में अनूदित साहित्यिक रचनाएँ हैं ।
‘सिलैयुम नाने शिर्पियुम नाने’, ‘सरवणनिन साहस सेयल’, और अरुणोदयम आदि आप की अंग्रेजी से तमिल में अनूदित रचनाएँ हैं ।
‘डा. गोविन्दराजन का निबन्ध संकलन’, ’तमिल साहित्य का संक्षिप्त इतिहास’, और तमिल रचना ‘उंगलिल ओरुवर उंगल मुन वरुवार’ आदि आप की मौलिक रचनाएँ हैं । ‘आल्वार एवं अष्टछाप के भक्ति काव्य का तुलनात्मक अध्ययन’ आप का शोध ग्रन्थ है ।
‘मैथिलीशरण गुप्त की जन्म शती स्मारिका’, ‘राष्ट्रीय चेतना के प्रांतीय स्वर’, ‘जानकी विजय’, ‘सीतायण’ आदि पुस्तकों का सम्पादन किया है ।
तमिल के प्राचीन संगम साहित्य ‘पत्तुप्पाट्टु’ और ‘एट्टुत्तोहै’ का हिंदी में पद्यात्मक अनुवाद करने की सरकारी योजना में आपने निदेशक के रूप में प्रशंसनीय सेवा की ।
राष्ट्रीय एकता की दिशा मेंँ उत्तर व दक्षिण की भाषा एवं संस्कृति पर आधारित पावर प्वाईन्ट प्रदर्शनियाँ प्रस्तुत करते रहते हैं । आप अनेक पुरस्कारों से सम्मानित होते रहे हैं ।
आपसे दो वर्ष पूर्व जनकपुरधाम में मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ था । उस वक्त आपने “सीतायण” की चर्चा की थी । “सीतायण” के सम्पादन का महत् कार्य आप कर रहे थे । हाल ही में “सीतायण” का लोकार्पण हुआ है ।
माँ सीता पर सीतायण महाकाव्य अवधी मूल एवं हिन्दी व्याख्या सहित आध्यात्मिक एवं हिन्दी साहित्यिक जगत को समर्पित है । यह काव्य तीन सौ साल पूर्व स्वामी श्री रामप्रियाशरण जी द्वारा रचित है जो मात्र जनकपुर धाम में केवल रसिक सम्प्रदाय वालों के बीच प्रचलित है । इसमें माँ सीता के जन्म से लेकर उनके विवाह तक का इतिहास वर्णित है । इसमें राग बिलावल, राग संकरावली, राग केदार, राग मालकौश, और संकरावलि तितोराताल आदि रागों में और हरिगीत, शुभगीत, सोरठा, दोहा, छप्पय, बड़वय, चौपाई, सवैया, सुगंधा आदि छन्दों में रचित मर्मस्पर्शी पद प्रयुक्त हैं । छः काण्डों और अड़तालीस मधुरताओं में विभक्त यह ग्रन्थ नौ सौ पचास पृष्ठों की है । मानस की तरह सीतायण भी हर घर के लिए मंकलकारी होगी यह उम्मीद है ।
अवधी मूल के इस ग्रन्थ के अनुवादक डा. केबी पाण्डेय हैं, संशोधक डा.शिवगोपाल मिश्र और संपादक डा.एम. गोविन्दराजन हैं । पुस्तक का मूल्य छः सौ रुपए है । डा. राजन को इस महत कार्य सम्पादन हेतु अनन्त साधुवाद और साहित्य जगत को इनकी रचनात्मकता प्राप्त होती रहे और आपकी यश वृद्धि की शुभकामना के साथ हार्दिक बधाई ।
प्रस्तुति, डा.श्वेता दीप्ति